विक्रम मोंट्रोज़, सरलता और संगीत के महारथी

करन निम्बार्क: मुंबई :

अभी २२ जुलाई को अपना जन्मदिन मनाया है इन्होंने । पिछले वर्ष प्रदर्शित हुई फिल्म “संजु” में अपने गीत “कर हर मैदान फतेह” से अपनी पहचान बनाने वाले विक्रम से हुई भेंट के कुछ अनमोल अंश प्रस्तुत हैं :

संजय दत्त से उनकी पहचान वर्ष २०१२ से है और संजय दत्त उनके दोस्त, भाई और फिल्म जगत में मार्गदर्शक की तरह हैं । संजय ने ही विक्रम को राजकुमार हिरानी से मिलने के लिए कहा था और उस समय हिरानी “संजु” फिल्म की तैयारी कर रहे थे । चूँकि विक्रम और संजय के बीच बहुत ही अच्छी दोस्ती है । जब संजय कारावास में थे तब भी विक्रम उनसे चिट्ठियों के माध्यम से संपर्क में थे । इसलिए जब हिरानी “संजु” फिल्म के लिए एक ऐसा गीत चाहते थे जो फिल्म और पटकथा से, संजय के संघर्ष से मेल खाए तो विक्रम उनकी उम्मीदों पर खरा उतरे ।
विक्रम बताते हैं कि वे हमेशा से पुरानी फिल्मी गीतों को, खासकर शंकर जयकिशन साहब को सुनते आए हैं । वे यह बात भलीभाँति समझते हैं कि समय के साथ हर बात बदलती है वैसे ही संगीत में भी बदलाव आवश्यक है । उनसे बातें करके, हमें पता लगा कि इतना शानदार संगीत देने वाले, पहली ही हिन्दी फिल्म से अपनी छाप छोड़ने वाले विक्रम असल जीवन में बहुत ही सरल और सुलझे हुए व्यक्ति हैं । इतनी छोटी उम्र में भी उन्होंने जीवन की गहराइयों को, सरलता को समझ लिया है । अतिशयोक्ति नहीं होगी कहना कि आप जितनी बार विक्रम से मिलेंगे कुछ ना कुछ अच्छी बात अवश्य सिखेंगे । उनकी सरलता और सफलता के पीछे कारण है, जीवन के प्रति उनकी सोच ।

विक्रम ने बहुत सरलता से उनके जीवन जीने का तरीका बता दिया कि, हम जैसा खाते हैं वैसा ही हमारा शरीर हो जाता है, अच्छा पौष्टिक खाने पर निरोगी और युवा दिखते हैं । ठीक वैसे ही हमें हमारे मन-मस्तिष्क को भी अच्छा खाना देना पड़ता है । सकारात्मक सोचना, किसी से स्पर्धा या ईर्ष्या  नहीं करना, काम में मस्त रहना, परिवार को महत्त्व देना, अच्छा पढ़ना आदि-आदि । और सच में दो घंटों की बातचीत में एक बार भी, ना किसी की बुराई हुई, ना फिल्म जगत या राजनीति में जो बुराइयाँ हैं उस पर बात हुई । बातें तो ढेर सारी हुई और ऐसा लगा जैसे कोई मंथन हुआ हो विचारों का ।

चूँकि विक्रम को अच्छी पुस्तकें, विचार पढ़ने में बहुत रूची है तो “मैदान फतेह” ये शब्द उनके मन में पहले से थे और जब हिरानी ने “संजु” फिल्म में संजु बाबा के लिए संगीत बनाने का अवसर दिया तो बस बना दिया एक बेहतरीन प्रोत्साहित करने वाला गीत । विक्रम बड़ी सादगी और सच्चाई से यह भी बताते हैं कि कैसे निर्देशक हिरानी ने भी गीत में एक-दो पंक्तियाँ जोड़कर उसे और बेहतरीन बनाया ।

पुराने गीतों के बोल को लेकर नए पाश्चात्य संगीत के मिश्रण पर विक्रम मानते हैं कि हर तरह के संगीत की आवश्यकता भी है और उसके लिए श्रोता की अलग श्रेणी भी है । विक्रम स्वयं भी उनका पसंदीदा गीत को नए संगीत के साथ मिश्रित करना चाहते हैं परंतु वे तब तक उसे नहीं छेड़ेंगे जब तक वे स्वयं को उस योग्य नहीं समझते ।

विक्रम नहीं मानते कि संगीतकार या रचनाकार बनने के लिए बाहरी व्यक्तित्व को सजाना आवश्यक है । रचना तो अंदर से पैदा होती है, बाहरी दिखावे या सजावट से नहीं । आजकल फिल्म, कला, संगीत सब कुछ जैसे पैसे कमाने का माध्यम हो गए हैं और ऐसे में निर्माता अपने हिसाब से रचनात्मक कार्य में हस्तक्षेप करना चाहते हैं लेकिन वे यह नहीं समझते कि दर्शकों के हिसाब से आप कुछ नहीं बना सकते क्योंकि कोई गीत अच्छा है तो बस है, उसमें कोई गणित नहीं है कि गीत में ऐसा संगीत था, या शब्द ये थे इसलिए अच्छा बना । हाँ उन्होंने यह अवश्य बताया कि आजकल के गीतों में लय हो सकती है परंतु पहली पंक्ति और अंतिम पंक्ति के मध्य कोई कड़ी, कोई संबंध, कोई तारतम्यता नहीं होती, शायद इसलिए कुछ ही दिनों बाद गीत के बोल हवा हो जाते हैं ।  

एक बहुत बड़ी बात जो विक्रम ने कही और करन निम्बार्क भी हमेशा से यही मानते हैं कि कोई भी लेखक, कवि, कलाकार, संगीतकार किसी कलात्मक कार्य का सृजन नहीं करता । हम जो भी लिखते हैं या बनाते हैं वह इसी जगत से, अपने अनुभव से, पर्यावरण से हमने लिया है और अपनी प्रतिभा अनुसार उसे ढाला है । विक्रम ने संजय दत्त की आनेवाली फिल्म “प्रस्थानम” में भी अपना संगीत दिया हैं और शीघ्र ही सितंबर में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो जाएगी ।

अंत में यही कहना चाहूँगा कि पूरी तरह से कर्म में विश्वास रखनेवाले, बड़े सपनों की बातें ना करने वाले व्यक्तित्व के धनी हैं विक्रम मोंट्रोज़ । देशहीत में सोशल मीडिया पर सवाल करने के बदले, टिप्पणियाँ लिखने के बदले हम जो काम करते हैं उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देकर भी देश के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है और विक्रम की इसी ऊँची विचारधारा के साथ हम इस लेख को भी पूर्ण करते हैं ।       

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