मेरी हर सुबह हो बस तुझी से,ये ही एक सपना देखता हूँ मैं: युवाकवि अरमान राज़

मेरी कलम से...
हाथों की लकीरों सा इश्क़ मेरा,
  साफ़ हूँ पर खुद में उलझा सा हूँ मैं।।
क्षितिज पर ही सही पर मिलूं तुझमें,
 
बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

खानाबदोश सा जी रहा,
  तुझमें ठिकाना ढूंढता हूँ मैं।।
रास्ता हर तुझ पर जा रुके,
  बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

मेरी हर सुबह हो बस तुझी से,
  ये ही एक सपना देखता हूँ मैं।।
हर रात जब आंखें बंद करता हूँ,
  बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

यूँ तो ख्वाबों का कोई अंत नहीं पर,
  अपनी शुरुआत में ही खो चुका हूँ मैं।।
पा लूं खुद को ज़रा सा तुझ में,
  बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

बातें भी हों नाराज़गी भी पर,
  अनकहा सा खुद को सुनता हूँ मैं।।
सुन लूँ बस तुझे ही हर लम्हा,
  बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।
बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

मेरी कलम से...
हाथों की लकीरों सा इश्क़ मेरा,
  साफ़ हूँ पर खुद में उलझा सा हूँ मैं।।
क्षितिज पर ही सही पर मिलूं तुझमें,
  बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

खानाबदोश सा जी रहा,
  तुझमें ठिकाना ढूंढता हूँ मैं।।
रास्ता हर तुझ पर जा रुके,
  बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

मेरी हर सुबह हो बस तुझी से,
  ये ही एक सपना देखता हूँ मैं।।
हर रात जब आंखें बंद करता हूँ,
  बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

यूँ तो ख्वाबों का कोई अंत नहीं पर,
  अपनी शुरुआत में ही खो चुका हूँ मैं।।
पा लूं खुद को ज़रा सा तुझ में,
  बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

बातें भी हों नाराज़गी भी पर,
  अनकहा सा खुद को सुनता हूँ मैं।।
सुन लूँ बस तुझे ही हर लम्हा,
  बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।

बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।
बस एक उम्मीद रखता हूँ मैं।।।


युवाकवि अरमान राज़

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