राष्ट्रीय सेवा योजना एक ऐसा नाम जो जिंदगी ही बदल दी

पता नहीं कब एक आम छात्र को पहले स्वयंसेवक फिर समाज सेवक बना दिया.....।

प्रवीण कुमार कुशवाहा
यह घटना ज्यादा नहीं केवल 2 वर्ष पुरानी है जब B.A. की पढ़ाई कर रहे एक छात्र को यह लगने लगा था कि इस महाविद्यालय में अब कुछ नहीं है यह तो मेरे स्कूल से भी 100 गुना पीछे है जहाँ पानी पीने तक कि व्यवस्था नहीं है अब किसी और महाविद्यालय प्रवेश ले लेना चाहिए। लेकिन उसी दिन प्राचार्य ( डॉ धनंजय वर्मा )के पास एक पत्र आया जिसमें राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई खोलने की बात लिखी गई थी पहले तो मन में यह आया सरकार की कोई स्कॉलरशिप की योजना होगी।

इसीलिए मैं भी उसमें रजिस्ट्रेशन करवा लिया "शायद किस्मत को भी मंजूर था" लेकिन समय बीतते चला गया और उसी योजना के माध्यम से महाविद्यालय में तरह तरह के कार्यक्रम होना प्रारंभ हो गए अब लगने लगा था महाविद्यालय में कुछ अलग हो रहा है धीरे-धीरे उन कार्यक्रमों में भाग लेता चला गया बाद में पता चला है या योजना नहीं बल्कि समाज सेवा के द्वारा व्यक्तित्व का विकास करना इसका उद्देश्य है। जिसका सिद्धांत वाक्य *मैं नहीं आप* था और इस योजना की मुख्य अधिकारी डॉ तैयबा खातून थी जो मेरी समाजशास्त्र की प्राध्यापक भी थी वह सबसे अलग थी मुझे अपने बच्चे की तरह मानती थी और मेरे जीवन की सबसे अच्छी शिक्षक भी है। "इस बात के लिए तो मैं उस ईश्वर को भी धन्यवाद करना चाहूंगा शायद मैं नसीब वाला था।" उन्हीं के मार्गदर्शन में मैं पढ़ाई के साथ साथ राष्ट्रीय सेवा योजना भी करता रहा और कभी-कभी स्वयंसेवक से स्वयंमसेवको का दलनायक भी बन जाता। 

कुछ इस तरह व्यक्तित्व विकास हुआ कि कभी माइक पर बोलने से डर लगता था तो आज बेफिक्र होकर बोले चला जाता हूं सिर्फ इतना ही नहीं आज पत्रकारिता कर पा रहा हूं तो राष्ट्रीय सेवा योजना एवं मेरी गुरु तैयबा खातून की वजह से जिन्होंने मुझे इतना काबिल बनाया। राष्ट्रीय सेवा योजना मुझे कुछ ऐसे अनमोल मित्र, घनिष्ठ मित्र दिए हैं जो शायद कहीं मिल पाते। इतना ही नहीं इसकी वजह से लोगों से  प्रेम,स्नेह,आदर,सम्मान मिला।आज स्वर्ण जयंती पूरी होने पर आभारी हूं 

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