औरत के दो रूप देखे आज तक,
एक रूप में बहन दिखी तो दुसरे में माँ।।
हँसी भी लुटा कर जो हँस सके वो बहन,
और जान लुटा कर भी जी सके वो माँ।।
मिली है मुझे यूं तो ज़िन्दगी एक ही,
हासिल भी मुझे सब कुछ इस जहां में।।
इबादत के रूप में मिली बहन तो,
मिली उस खुदा के रूप में वो माँ।।
सुलाया मुझे गद्दे पर हमेशा,
कांटो की सेज पर लेटी वो बहन।।
बहन ने दी मुझे ये स्नेह की ज़मीन तो,
वात्सल्य के आसमां रूप में मिली वो माँ।।।
जीवन पथ पर चला हूँ जब से,
साथ में हमेशा मिली बहन।।
जो कभी हुई कोई भूल मुझसे,
आईने के रूप में मिली वो माँ।।।
हज़ार नज़ारे देखे इस जहां के,
हमेशा मुस्कुराया कभी रोया नहीं।।
भावना के आंसुओ का रूप बहन का था,
और आंसुओं को रोकने वाली पलक के रूप में माँ।।।
हाँ देखे हैं बहुत दुःख भी मैंने,
साथ छूटा दोस्तों और रिश्तों का।।
परछाई ने भी साथ छोड़ दिया कभी,
उस वक़्त में जब कोई नहीं मिला।।।
मुस्कान के रूप में मिली बहन,
हिम्मत और जज्बे के रूप में मिली वो माँ।।।
युवाकवि अरमान राज़

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