
तू एक ख़्वाब है या ख़्वाहिश,
कोई हक़ीक़त है या साज़िश।।
खुली फ़िज़ा सी या काली घटा सी,
हर पल तुझे महसूस करता हूँ मैं।।।
तस्वीर को तेरी कल्पना कहूँ,
या कल्पना को ही तस्वीर मान लूं।।
कल्पना भी कैसी कहूँ इसे,
हर पल जो साकार करता रहता हूँ मैं।।।
नमकीन सा लगे मुझे इश्क़ तेरा,
और मिठास भी ख़ुद में समेटे हुए।।
स्वाद भी जाने कैसा कहूँ इसे,
हर पल इसे जो चखता रहता हूँ मैं।।।
लिखता हूँ रोज़ अधूरी सी ग़ज़लें,
लिखता भी हूँ और मिटा भी देता हूँ।।
भूल जाता हूँ गीत ग़ज़ल सब कुछ,
हर पल तुम्हे जो सोचता रहता हूँ मैं।।।
पता तो तेरा पता नहीं मुझे,
हर पता तुझमें ढूंढता रहता हूँ।।
शायद ये बस एक इंतज़ार है,
अक़्सर आज कल जो करता रहता हूँ मैं।
युवाकवि अरमान राज़
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