लंगर भंडारों में सेवा देते हुए दिखते हैं वो, जिन्हें ख़बर नहीं अपने बड़ों की :युवाकवि अरमान राज़


उम्रदराज़ हो रहे हैं सभी यहाँ,
  तज़ुर्बे भी सभी के अज़ीब ही हैं।।
किसी को भरी गरीबी में भी अमीर देखा,
  तो कुछ सब कुछ पाकर भी गरीब ही हैं।।।

लंगर भंडारों में सेवा देते हुए दिखते हैं वो,
  जिन्हें ख़बर नहीं अपने बड़ों की।।
पानी मुरझाये पेडों को देते हुए दिखते हैं वो,
  जिन्हें सुध नहीं अपनी जड़ों की।।।

चाहता हूँ बनी रहे छाँव वात्सल्य की मुझपर,
  इसलिए समझदारी छोड़ देता हूँ मैं।।
हर कदम पर लेने वाले निर्णयों को,
  मेरे बुज़ुर्गों की तरफ मोड़ देता हूँ मैं।।।

कभी मज़ाक तो कभी गंभीरता से,
  कैसे भी उन्हें वक़्त दे देता हूँ मैं।।
उस दिए हुए वक़्त के एवज़ में,
  बहुत सी सीखें उनसे ले लेता हूँ मैं।।।

कहीं टूटे तो कहीं बिखरे ये रिश्ते,
  हृदय की गहराई में कहीं जोड़ लेता हूँ मैं।।
बिछा कर उन सीखों का बिछौना,
  अपनेपन की चादर ओढ़ लेता हूँ मैं।।।

रिश्तों के टूटकर बिखरने के युग में,
  अपनों से नाता जोड़ लो तुम।।
दिखावे के मोहजाल में फंसे हो सब,
  अपनी जड़ों से रिश्ता जोड़ लो तुम।।।

नहीं काम आने वाला ये मोहजाल,
  ना ही काम आयेगी दिखावे की दुनिया।।
चैन से जीना नसीब में नही किसी के,
  तो सुकून से मरने की कोशिश कर लो तुम।।।
युवाकवि अरमान राज़

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