Ramesh Ramawat जरूरत मंद बच्चों के हाथों में कटोरे की जगह कलम थमा रहे है कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़
किसी ने सच ही कहा है नेकी करनें की भावनाएँ ओर जज्बा हो तो सब कुछ संभव हो जाता है ।
आज तक आई. एस. ओर आईपीएस भी नही कर पाए वो नेकी कर दिखाई थाने के एक कांस्टेबल ।
जयपुर। राजस्थान में सबसे अधिक सर्दी व गर्मी के लिए पहचाने जाने वाले चूरू में धर्मवीर जाखड़ और आपणी पाठशाला किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। पुलिस कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़ भीख मांगने वाले बच्चों के हाथों में कटोरे की जगह कलम थमा कर और उन्हें पढ़ा-लिखाकर काबिल बना रहा है। अब इस नेक काम में न केवल पुलिस महकमा बल्कि पूरा चूरू जिला भागीदारी निभा रहा है। साढ़े तीन साल पहले महज 5 बच्चों से शुरू हुई आपणी पाठशाला में वर्तमान छात्र संख्या 180 है। वन इंडिया डॉट कॉम पर जानिए आपणी पाठशाला की पूरी कहानी खुद कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़ की जुबानी कि पुलिस कांस्टेबल के मन में झुग्गी झोपड़ियों के बच्चों की जिंदगी संवारने का विचार कैसे आया और उसे किस तरह से आपणी पाठशाला में बदला गया।
पुलिस लाइन में भीख मांगने आए थे बच्चे
28 दिसम्बर 2015 की सुबह हांड कंपकंपा देने वाली सर्दी पड़ रही थी। मैं पुलिस लाइन के ए ब्लॉक में बने 33 नंबर के अपने क्वार्टर में पढ़ रहा था। द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती की परीक्षा की तैयारी के लिए अवकाश ले रखा था। करीब दस बज रहे थे। कुछ बच्चों की आवाज सुनाई दी। ये झुग्गी झोपड़ियों से पुलिस लाइन में भीख मांगने रोजाना आने वाले बच्चे थे, जिन्हें क्वाटरों में रहने वाले पुलिसकर्मियों के परिवार रोटी दिया करते थे। इन बच्चों हांथों में रोटी के चंद टुकड़े और ठिठुरते बदन पर चंद कपड़े देख उनसे भीख मांगने की वजह जाननी चाही तो जवाब मिला कि गरीब हैं। मम्मी पापा भी नहीं हैं। उनकी बेबसी देख दिल पसीज गया और उनकी जिंदगी संवारने का विचार आया।
1 जनवरी 2016 से शुरू हुई आपणी पाठशाला
गरीबी और बिन मां-बाप के बच्चों की सच्चाई का पता लगाने के लिए शाम को साथी दिनेश सैनी, ओमप्रकाश भूकल, सुनित गुर्जर को लेकर झुग्गी झोपड़ियों में गया। उन बच्चों की बातें सही थी। कइयों के माता-पिता का बीमारी से निधन हो चुका था, मगर झुग्गी झोपड़ियों में कई बच्चे ऐसे भी थे, जिनके माता-पिता जिंदा होते हुए भी वे भीख मांगकर पेट भर रहे थे। तब हम चारों साथियों ने झुग्गी झोपड़ियों वाले बच्चों की जिंदगी संवारने की ठानी और उसका सिर्फ एक ही जरिया था शिक्षा। दो दिन में हम पढ़ाई की सामग्री व ब्लैकबोर्ड खरीदकर लाए और नए साल 2016 के पहले दिन 1 जनवरी से झुग्गी झोपड़ियों में बच्चों को पढ़ाने का नया काम हाथ में लिया। शुरुआत पांच बच्चों से की और एक घंटे पढ़ाते थे।
ऐसे बढ़ा आपणी पाठशाला में नामांकन
उस समय मैं चूरू के महिला पुलिस थाने में तैनात था। मेरी ड्यूटी लगी होने पर साथियों ने बच्चों को पढ़ाना जारी रखा। फिर चुनौती थी बच्चों का नामांकन बढ़ाने और जो पढ़ने आ रहे हैं उन्हें प्रेरित करने की। इसके लिए हमने पुलिस लाइन में रहने वाले परिवार से पुराने कपड़े, खिलोने जुटाए। फिर तय किया जो बच्चा नियमित आएगा, साफ सुथरे कपड़े पहनेगा और मन लगाकर पढ़ेगा उसे कपड़े-खिलोने उपहार में मिलेंगे। कभी-कभी खुद की तनख्वाह व लोगों के सहयोग से बिस्किट, गाजर, मूली, केले भी खरीदकर देने लगे। हमारी यह सोच काम कर गई। नतीजा यह रहा कि 15-20 दिन में ही आपणी पाठशाला में छात्र संख्या 5 से बढ़कर 25-30 हो गई। ऐसे में एक घंटे की बजाय दो घंटे पढ़ाने लगे।
बच्चे बढ़े तो समाज भी जुड़ा
अब आपणी पाठशाला को चलते दो माह हो चुके थे। बच्चों की संख्या 40 को पार कर गई थी और चूरू शहर के लोगों की जानकारी में आ चुका था कि एक कांस्टेबल व शहर के कुछ युवा झुग्गी झोपड़ियों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। शहर के लोग अपने जन्मदिन और खुशी के अन्य मौका का जश्न झुग्गी झोपड़ियों में संचालित आपणी पाठशाला के बच्चों के साथ मनाने पहुंचने लगे। बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जुड़कर पढ़ने में मजा आने लगा। लोग उन्हें कपड़े,कॉपी-किताब, पेंसिल और बैग वितरित करने लगे। भोजन की व्यवस्था भी करने लगे। अब रोज सुबह भीख का कटोरा उठाने की बजाय ये बच्चे स्कूल का बैग उठाकर आपणी पाठशाला पहुंचने लगे।
महिला पुलिस थाने में भी संचालित हुई आपणी पाठशाला
रंग लाने लगे। महिला पुलिस थाना चूरू के तत्कालीन थानाधिकारी विक्रम सिंह ने थाने में ही बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दे दी। 15 दिन तक आपणी पाठशाला थाने में संचालित होती रही। फिर इन बच्चों को झुग्गी झोपड़ियों के पास मेडिकल कॉलेज चूरू की दीवार की छांव में खुले आसमां तले ही पढ़ाना शुरू किया। गर्मियां शुरू हुई तो चूरू के बाबू पाटिल ने इन बच्चों के लिए टेंट मुहैया करवाया। मई-जून में टेंट के नीचे आपणी पाठशाला चली। तब तक बच्चों की संख्या 80 तक पहुंच गई थी। फिर आंधी तूफान आया तो वो टेंट फट गया था और बारिश का सीजन भी शुरू हो गया था।
फिर औषद्यि भंडार में पढ़ाया 180 बच्चोंं को
आंधी में आपणी पाठशाला का टेंट फट गया तो फिर औषद्यि भंडार के डॉ. सुनील जादू ने दरियादिली दिखाई। उन्होंने औषद्यि भंडार के खाली हॉल में बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दी। डेढ़ साल तक आपणी पाठशाला की कक्षाएं औषद्यि भंडार चूरू के खाली हॉल में लगीं। तब तक बच्चों की संख्या 80 से बढ़कर 180 हो गई थी और शहर के लोग इनके लिए नियमित रूप से भोजन, कपड़े और पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने लगे थे।
जाकिर हुसैन स्कूल में प्रवेश
हो गया था तब ऐसे 80 बच्चे चुने जो पढ़ने में होशियार और बड़े हों। फिर चूरू के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक राहुल बारहठ की मदद से चूरू के निजी स्कूल जाकिर हुसैन में उन बच्चों को शपथ पत्र के आधार पर दाखिला दिलवाया। जाकिर हुसैन स्कूल चूरू के प्रबंधन ने न केवल आपणी पाठशाला के बच्चों की फीस माफ की बल्कि उनके आने-जाने के लिए स्कूल वैन की सुविधा भी प्रदान की।
पुलिस लाइन में लगी आपणी पाठशाला
अब तक आपणी पाठशाला के बच्चों की पढ़ाई को लेकर लग्न, कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़, चूरू के युवाओं व आमजन के प्रयास चर्चा का विषय बन चुके थे। तत्कालीन चूरू एसपी राहुल बारहठ ने तय किया कि बच्चों को औषद्यि भंडार के खाली हॉल की बजाय पुलिस लाइन में खाली पड़े बैरक में पढ़ाया जा सकता है। पिछले सवा साल से आपणी पाठशाला की कक्षाएं अब पुलिस लाइन चूरू के बैरक में ही लग रही हैं। वर्तमान में यहां पौने दो सौ बच्चे अध्ययनरत हैं।
आपणी पाठशाला के जरिए झुग्गी झोपड़ियों के बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की रोशनी में लाने में सबसे बड़ी भूमिका पुलिस विभाग की है। वर्तमान में कांस्टबेल धर्मवीर जाखड़, दिनेश सैनी, ओमप्रकाश भूकल, सुनित गुर्जर के साथ-साथ बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी चूरू पुलिस की तीन महिला कांस्टेबलों की भी है। इसके लिए चूरू जिले की पहली महिला एसपी तेजस्वनी गौतम ने महिला कांस्टेबल विकास, गीता और सुनीता की भी आपणी पाठशाला में ड्यूटी लगा रखी है, जो पुलिस की ड्यूटी निभाने के साथ-साथ आपणी पाठशाला के बच्चों को पढ़ाती भी हैं।पांचवीं तक चलने वाली आपणी पाठशाला के बच्चों की तमाम सुविधाएं जन सहयोग से जुटाई जा रही हैं। पिछले दिनों शिक्षा विभाग के समग्र अभियान के तहत आपणी पाठशाला के 150 बच्चों को राजकीय नवीन स्कूल से जोड़ा गया। ताकि इन बच्चों का नाम व जन्म तिथि से संबंधित कोई सरकारी रिकॉर्ड हो। अब आपणी पाठशाला सुबह नौ से अपराह्न तीन बजे तक लगती है।
कौन हैं कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़
धर्मवीर जाखड़ चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के गांव खारियावास के रहने वाले हैं। वर्ष 2011 में राजस्थान पुलिस में भर्ती हुए। पिछले पांच साल से महिला पुलिस थाना चूरू में पदस्थापित थे। दस दिन पहले ही इनका तबादला थाने से पुलिस लाइन में हो गया। धर्मवीर जाखड़ बताते हैं कि उनका प्रयास है कि आपणी पाठशाला स्थायी हो। इसके पास भी खुद का भवन हो। साथ ही अन्य जिला मुख्यालयों पर भी इस तरह की पहल हो।
किसी ने सच ही कहा है नेकी करनें की भावनाएँ ओर जज्बा हो तो सब कुछ संभव हो जाता है ।
आज तक आई. एस. ओर आईपीएस भी नही कर पाए वो नेकी कर दिखाई थाने के एक कांस्टेबल ।
जयपुर। राजस्थान में सबसे अधिक सर्दी व गर्मी के लिए पहचाने जाने वाले चूरू में धर्मवीर जाखड़ और आपणी पाठशाला किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। पुलिस कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़ भीख मांगने वाले बच्चों के हाथों में कटोरे की जगह कलम थमा कर और उन्हें पढ़ा-लिखाकर काबिल बना रहा है। अब इस नेक काम में न केवल पुलिस महकमा बल्कि पूरा चूरू जिला भागीदारी निभा रहा है। साढ़े तीन साल पहले महज 5 बच्चों से शुरू हुई आपणी पाठशाला में वर्तमान छात्र संख्या 180 है। वन इंडिया डॉट कॉम पर जानिए आपणी पाठशाला की पूरी कहानी खुद कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़ की जुबानी कि पुलिस कांस्टेबल के मन में झुग्गी झोपड़ियों के बच्चों की जिंदगी संवारने का विचार कैसे आया और उसे किस तरह से आपणी पाठशाला में बदला गया।
पुलिस लाइन में भीख मांगने आए थे बच्चे
28 दिसम्बर 2015 की सुबह हांड कंपकंपा देने वाली सर्दी पड़ रही थी। मैं पुलिस लाइन के ए ब्लॉक में बने 33 नंबर के अपने क्वार्टर में पढ़ रहा था। द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती की परीक्षा की तैयारी के लिए अवकाश ले रखा था। करीब दस बज रहे थे। कुछ बच्चों की आवाज सुनाई दी। ये झुग्गी झोपड़ियों से पुलिस लाइन में भीख मांगने रोजाना आने वाले बच्चे थे, जिन्हें क्वाटरों में रहने वाले पुलिसकर्मियों के परिवार रोटी दिया करते थे। इन बच्चों हांथों में रोटी के चंद टुकड़े और ठिठुरते बदन पर चंद कपड़े देख उनसे भीख मांगने की वजह जाननी चाही तो जवाब मिला कि गरीब हैं। मम्मी पापा भी नहीं हैं। उनकी बेबसी देख दिल पसीज गया और उनकी जिंदगी संवारने का विचार आया।
1 जनवरी 2016 से शुरू हुई आपणी पाठशाला
गरीबी और बिन मां-बाप के बच्चों की सच्चाई का पता लगाने के लिए शाम को साथी दिनेश सैनी, ओमप्रकाश भूकल, सुनित गुर्जर को लेकर झुग्गी झोपड़ियों में गया। उन बच्चों की बातें सही थी। कइयों के माता-पिता का बीमारी से निधन हो चुका था, मगर झुग्गी झोपड़ियों में कई बच्चे ऐसे भी थे, जिनके माता-पिता जिंदा होते हुए भी वे भीख मांगकर पेट भर रहे थे। तब हम चारों साथियों ने झुग्गी झोपड़ियों वाले बच्चों की जिंदगी संवारने की ठानी और उसका सिर्फ एक ही जरिया था शिक्षा। दो दिन में हम पढ़ाई की सामग्री व ब्लैकबोर्ड खरीदकर लाए और नए साल 2016 के पहले दिन 1 जनवरी से झुग्गी झोपड़ियों में बच्चों को पढ़ाने का नया काम हाथ में लिया। शुरुआत पांच बच्चों से की और एक घंटे पढ़ाते थे।
ऐसे बढ़ा आपणी पाठशाला में नामांकन
उस समय मैं चूरू के महिला पुलिस थाने में तैनात था। मेरी ड्यूटी लगी होने पर साथियों ने बच्चों को पढ़ाना जारी रखा। फिर चुनौती थी बच्चों का नामांकन बढ़ाने और जो पढ़ने आ रहे हैं उन्हें प्रेरित करने की। इसके लिए हमने पुलिस लाइन में रहने वाले परिवार से पुराने कपड़े, खिलोने जुटाए। फिर तय किया जो बच्चा नियमित आएगा, साफ सुथरे कपड़े पहनेगा और मन लगाकर पढ़ेगा उसे कपड़े-खिलोने उपहार में मिलेंगे। कभी-कभी खुद की तनख्वाह व लोगों के सहयोग से बिस्किट, गाजर, मूली, केले भी खरीदकर देने लगे। हमारी यह सोच काम कर गई। नतीजा यह रहा कि 15-20 दिन में ही आपणी पाठशाला में छात्र संख्या 5 से बढ़कर 25-30 हो गई। ऐसे में एक घंटे की बजाय दो घंटे पढ़ाने लगे।
बच्चे बढ़े तो समाज भी जुड़ा
अब आपणी पाठशाला को चलते दो माह हो चुके थे। बच्चों की संख्या 40 को पार कर गई थी और चूरू शहर के लोगों की जानकारी में आ चुका था कि एक कांस्टेबल व शहर के कुछ युवा झुग्गी झोपड़ियों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। शहर के लोग अपने जन्मदिन और खुशी के अन्य मौका का जश्न झुग्गी झोपड़ियों में संचालित आपणी पाठशाला के बच्चों के साथ मनाने पहुंचने लगे। बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जुड़कर पढ़ने में मजा आने लगा। लोग उन्हें कपड़े,कॉपी-किताब, पेंसिल और बैग वितरित करने लगे। भोजन की व्यवस्था भी करने लगे। अब रोज सुबह भीख का कटोरा उठाने की बजाय ये बच्चे स्कूल का बैग उठाकर आपणी पाठशाला पहुंचने लगे।
महिला पुलिस थाने में भी संचालित हुई आपणी पाठशाला
रंग लाने लगे। महिला पुलिस थाना चूरू के तत्कालीन थानाधिकारी विक्रम सिंह ने थाने में ही बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दे दी। 15 दिन तक आपणी पाठशाला थाने में संचालित होती रही। फिर इन बच्चों को झुग्गी झोपड़ियों के पास मेडिकल कॉलेज चूरू की दीवार की छांव में खुले आसमां तले ही पढ़ाना शुरू किया। गर्मियां शुरू हुई तो चूरू के बाबू पाटिल ने इन बच्चों के लिए टेंट मुहैया करवाया। मई-जून में टेंट के नीचे आपणी पाठशाला चली। तब तक बच्चों की संख्या 80 तक पहुंच गई थी। फिर आंधी तूफान आया तो वो टेंट फट गया था और बारिश का सीजन भी शुरू हो गया था।
फिर औषद्यि भंडार में पढ़ाया 180 बच्चोंं को
आंधी में आपणी पाठशाला का टेंट फट गया तो फिर औषद्यि भंडार के डॉ. सुनील जादू ने दरियादिली दिखाई। उन्होंने औषद्यि भंडार के खाली हॉल में बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दी। डेढ़ साल तक आपणी पाठशाला की कक्षाएं औषद्यि भंडार चूरू के खाली हॉल में लगीं। तब तक बच्चों की संख्या 80 से बढ़कर 180 हो गई थी और शहर के लोग इनके लिए नियमित रूप से भोजन, कपड़े और पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने लगे थे।
जाकिर हुसैन स्कूल में प्रवेश
हो गया था तब ऐसे 80 बच्चे चुने जो पढ़ने में होशियार और बड़े हों। फिर चूरू के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक राहुल बारहठ की मदद से चूरू के निजी स्कूल जाकिर हुसैन में उन बच्चों को शपथ पत्र के आधार पर दाखिला दिलवाया। जाकिर हुसैन स्कूल चूरू के प्रबंधन ने न केवल आपणी पाठशाला के बच्चों की फीस माफ की बल्कि उनके आने-जाने के लिए स्कूल वैन की सुविधा भी प्रदान की।
पुलिस लाइन में लगी आपणी पाठशाला
अब तक आपणी पाठशाला के बच्चों की पढ़ाई को लेकर लग्न, कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़, चूरू के युवाओं व आमजन के प्रयास चर्चा का विषय बन चुके थे। तत्कालीन चूरू एसपी राहुल बारहठ ने तय किया कि बच्चों को औषद्यि भंडार के खाली हॉल की बजाय पुलिस लाइन में खाली पड़े बैरक में पढ़ाया जा सकता है। पिछले सवा साल से आपणी पाठशाला की कक्षाएं अब पुलिस लाइन चूरू के बैरक में ही लग रही हैं। वर्तमान में यहां पौने दो सौ बच्चे अध्ययनरत हैं।
आपणी पाठशाला के जरिए झुग्गी झोपड़ियों के बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की रोशनी में लाने में सबसे बड़ी भूमिका पुलिस विभाग की है। वर्तमान में कांस्टबेल धर्मवीर जाखड़, दिनेश सैनी, ओमप्रकाश भूकल, सुनित गुर्जर के साथ-साथ बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी चूरू पुलिस की तीन महिला कांस्टेबलों की भी है। इसके लिए चूरू जिले की पहली महिला एसपी तेजस्वनी गौतम ने महिला कांस्टेबल विकास, गीता और सुनीता की भी आपणी पाठशाला में ड्यूटी लगा रखी है, जो पुलिस की ड्यूटी निभाने के साथ-साथ आपणी पाठशाला के बच्चों को पढ़ाती भी हैं।पांचवीं तक चलने वाली आपणी पाठशाला के बच्चों की तमाम सुविधाएं जन सहयोग से जुटाई जा रही हैं। पिछले दिनों शिक्षा विभाग के समग्र अभियान के तहत आपणी पाठशाला के 150 बच्चों को राजकीय नवीन स्कूल से जोड़ा गया। ताकि इन बच्चों का नाम व जन्म तिथि से संबंधित कोई सरकारी रिकॉर्ड हो। अब आपणी पाठशाला सुबह नौ से अपराह्न तीन बजे तक लगती है।
कौन हैं कांस्टेबल धर्मवीर जाखड़
धर्मवीर जाखड़ चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के गांव खारियावास के रहने वाले हैं। वर्ष 2011 में राजस्थान पुलिस में भर्ती हुए। पिछले पांच साल से महिला पुलिस थाना चूरू में पदस्थापित थे। दस दिन पहले ही इनका तबादला थाने से पुलिस लाइन में हो गया। धर्मवीर जाखड़ बताते हैं कि उनका प्रयास है कि आपणी पाठशाला स्थायी हो। इसके पास भी खुद का भवन हो। साथ ही अन्य जिला मुख्यालयों पर भी इस तरह की पहल हो।
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