कार्तिक पूर्णिमा अद्भुत संयोग में पड़ रही है होगा धन लाभ करे शिव और नारायण का पूजन

कार्तिक पूर्णिमा ,त्रिपुरारी पूर्णिमा ,महालक्ष्मी , केदार ,ओर वेशि योग में अद्भुत संयोग में पड़ रही है होगा धन लाभ करे शिव और नारायण का पूजन


भगवान विष्णु (श्रीहरि नारायण )को प्रिय कार्तिक मास की पूर्णिमा मंगलवार 12 नवंबर को है। कार्तिक मास को पुण्य मास माना जाता है। इससे कार्तिक पूर्णिमा पर  सर्वाधिक महत्व तीर्थराज पुष्करकुंड में स्नान,तर्पण ,एवं भगवान श्रीब्रह्मा जी के पूजन का माना गया है गंगा स्नान व दान का खास महत्व है। इस तिथि पर सनातन धर्मावलम्बियों सहित पूरे देश में स्थित तीर्थ  व अन्य नदियों  में लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाएंगे। कार्तिक पूर्णिमा पर हरिहर  पूजा व स्नान का विशेष महत्व है। इसलिए नारायण एवं शिव जी के साथ भगवान ब्रम्हा जी के पूजन में लोग स्नान व पूजन हेतु तीर्थ सरोवर जलाशयों पवित्र नदियों में पर्व मनाने के लिए पहुचते  हैं।
कार्तिक मास को दामोदर के नाम से भी जाना जाता है और दामोदर भगवान विष्‍णु का ही एक नाम है।


कार्तिक पूर्णिमा पर महालक्ष्मी ,केदार और वेशि योग का संयोग बन रहा है। चंद्रमा से मंगल के सप्तम भाव में रहने से महालक्ष्मी योग बनेगा। सभी ग्रहों के चार स्थानों पर रहने से केदार योग और सूर्य से द्वितीय भाव में शुभ ग्रह शुक्र के रहने से वेशि योग का संयोग है। मान्यता है कि कुश लेकर इस तिथि पर गंगास्नान या स्नान करने से सात जन्म के पापों का नाश हो जाता है। चर्मरोग व कर्ज से मुक्ति मिलने के साथ वैवाहिक संबंधों में आनेवाली परेशानियां भी दूर होती हैं।


कार्तिक पूर्णिमा
सोमवार सोमवार शाम 6.05 बजे से मंगलवार शाम 7.14 बजे तक
कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान का मुहूर्त-
सुबह :6:59 से 9.16बजे
दोपहर 12 से 2.38 बजे

कार्तिक मास में सारे देवता जलाशयों में छिप कर निवासरत रहते  हैं इसलिये कार्तिक स्नान पर गंगादि नदियों में स्नान दीपदान किया जाता है।

भगवान श्रीहरि भी पाताल में निवास करते हैं।

इस तिथि पर गंगा स्नान से एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ वाजस्नेय यज्ञ के समान फल प्रापट्टिया।

सालभर के गंगास्नान और पूर्णिमा स्नान का फल मिलता है।

दीप दान से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं

 कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा आदि पवित्र नदियों में या तुलसी के समीप दीप जलाने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।  देव दीपावली भी मनायी जाती है। इस तिथि को ही महादेव ने त्रिपुरासूर नामक राक्षस का संहार किया था। इससे प्रसन्न होकर देवताओं ने गंगा में दीप दान किया था। इसलिए इस तिथि पर गंगादि पवित्र नदियों , सरोबार या जलाशयों में दीप जलाकर देव दीपावली मनायी जाती है।

कार्तिक पूर्ण‍िमा का महत्व सिख धर्म में भी बहुत है. माना जाता है कि इस दिन सिखों के पहले गुरु, गुरुनानक देव जी का जन्म हुआ था. इस दिवस को सिख धर्म में प्रकाशोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है. इसे गुरु नानक जयंती भी कहते हैं. गुरु नानक जयंती पर गुरुद्वारों में खास पाठ का आयोजन होता है. सुबह से शाम तक की‍र्तन चलता है और गुरुद्वारों के साथ ही घरों में भी खूब रोशनी की जाती है।

भगवान नारायण के मत्स्य अवतार का भी प्राकट्य आज ही हुआ था

कार्तिक पूर्णिमा को ही तुलसी का अवतरण हुआ था। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय हैं।

भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा पर  हरिहर क्षेत्र गंडक नदी के किनारे ग्राह को मारकर अपने दो द्वारपालों को शापमुक्त कराया था।

पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।

तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनीं. चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने. इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बनें. हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें. भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव. इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव।

भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया. इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा. यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।

हरिहर मिलन की सभी सनातन साधको  को अनंत मंगल शुभकामनाएं

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
9926910965



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