कार्तिक पूर्णिमा पर ही क्यों होती है भगवान श्रीब्रह्माजी की पूजा?

कार्तिक पूर्णिमा पर ही क्यों होती है परमपिता, भगवान श्रीब्रह्माजी की पूजा और तीर्थराज पुष्कर का क्या है महत्व

नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे
सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम


तीर्थराज कहने के अलावा देश का पांचवां धाम भी कहा जाता है। पुष्कर सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा पर पर्व स्नान का बड़ा महत्व माना गया है क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा पर ही ब्रह्मा जी का वैदिक यज्ञ संपन्न हुआ था। तब यहां सम्पूर्ण देवी-देवता एकत्र हुए थे। उस पावन अवसर पर पर्व स्नान की परम्परा सदियों से चली आ रही है। जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को पुष्कर राज कहा जाता है। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं।

भगवान ब्रह्मा के एकमात्र मंदिर के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। इसे भगवान ब्रह्मा का निवास स्थान भी कहा जाता है। मन्दिर के निकट में ही एक मनोहर झील है जिसे पुष्कर झील के नाम से जाना जाता है।

पुष्कर का अर्थ है ऐसा तालाब जिसका निर्माण फूल से हुआ। पद्म पुराण के अनुसार पुष्कर झील का निर्माण उस समय हुआ जब यज्ञ के स्थान को सुनिश्चित करते समय ब्रह्मा जी के हाथ से कमल का फूल पृथ्वी पर गिर पड़ा। इससे पानी की तीन बूदें पृथ्वी पर गिर गयी, जिसमें एक बूंद पुष्कर में गिर गयी। इसी बूंद से पुष्कर झील का निर्माण हुआ।

तीर्थराज कहने के अलावा देश का पांचवां धाम भी कहा जाता है। पुष्कर सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा पर पर्व स्नान का बड़ा महत्व माना गया है क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा पर ही ब्रह्मा जी का वैदिक यज्ञ संपन्न हुआ था। तब यहां सम्पूर्ण देवी-देवता एकत्र हुए थे। उस पावन अवसर पर पर्व स्नान की परम्परा सदियों से चली आ रही है। जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को पुष्कर राज कहा जाता है। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं।

पुष्कर एक प्रसिद्ध नगर है। यह नगर यहाँ स्थित प्रसिद्ध पुष्कर सरोवर या पुष्कर झील के लिए जाना जाता है। इसी प्रसिद्ध सरोवर के कारण ही नगर को यह नाम मिला है। पुष्कर झील या सरोवर को हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ माना जाता है।  पुष्कर को तीर्थो का गुरु कहा गया है। इसलिए लोग इस तीर्थ को पुष्करराज भी कहते है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों में होती है। जो इस प्रकार है– पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, गंगाजी तथा प्रभास। इसके अलावा इस महान तीर्थ की गणना पंच सरोवरों में भी होती है। जो इस प्रकार है—- मानसरोवर, पुष्कर, बिंदु सरोवर, नारायण सरोवर तथा पंपासरोवर।

पुष्कर को इस क्षेत्र में तीर्थराज कहे जाने का गौरव इसलिए प्राप्त है क्योंकि यहां समूचे ब्रह्मांड के रचयिता माने जाने वाले ब्रह्मा जी का निवास है। पुष्कर के महत्व का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। इसके अनुसार एक समय ब्रह्मा जी को यज्ञ करना था। उसके लिए उपयुक्त स्थान का चयन करने के लिए उन्होंने धरा पर अपने हाथ से एक कमल पुष्प गिराया। वह पुष्प अरावली पहाड़ियों के मध्य गिरा और लुढ़कते हुए दो स्थानों को स्पर्श करने के बाद तीसरे स्थान पर ठहर गया। जिन तीन स्थानों को पुष्प ने धरा को स्पर्श किया, वहां जलधारा फूट पड़ी और पवित्र सरोवर बन गए। सरोवरों की रचना एक पुष्प से हुई, इसलिए इन्हें पुष्कर कहा गया। प्रथम सरोवर कनिष्ठ पुष्कर, द्वितीय सरोवर मध्यम पुष्कर कहलाया। जहां पुष्प ने विराम लिया वहां एक सरोवर बना, जिसे ज्येष्ठ पुष्कर कहा गया। ज्येष्ठ पुष्कर ही आज पुष्कर के नाम से विख्यात है। पुष्कर में लगभग चार सौ मंदिर हैं, इसीलिए इसे मंदिर नगरी भी कहा जाता है।

विश्व मे सिर्फ पुष्कर में हैं ब्रह्मा मंदिर

पुराणों के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी हाथ में कमल का फूल लिए हुए अपने वाहन हंस पर सवार होकर अग्नि यज्ञ करने के लिए उचित जगह की तलाश कर रहे थे, तभी एक जगह पर उनके हाथ से कमल का फूल गिर गया। फूल के धरती पर गिरते ही धरती पर एक झरना बन गया और उस झरने से तीन सरोवर बन गए। जिन जगहों पर वो तीन झरने बने उन्हें ब्रह्म पुष्कर, विष्णु पुष्कर और शिव पुष्कर के नाम से जाना जाता है। यह देखकर ब्रह्मा जी ने इसी जगह यज्ञ करने का निर्णय लिया।

चंद्र नदी के उत्तर, सरस्वती नदी के पश्चिम, नंदन स्थान के पूर्व तथा कनिष्ठ पुष्कर के दक्षिण के मध्यवर्ती क्षेत्र को यज्ञवेदी बनाया। इस यज्ञवेदी में उन्होंने ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर, तथा कनिष्ठ पुष्कर, ये तीन पुष्कर तीर्थ बनाए। ब्रह्माजी के यज्ञ मे सभी देवता तथा ऋषि पधारे। ऋषियों ने आसपास अपने आश्रम बना लिए। भगवान शंकर भी कपालधारी बनकर पधारे।

पुषकर के किनारों पर गौघाट, ब्रह्मघाट, कपालमोचन घाट, यज्ञ घाट, बदरीघाट, रामघाट, और कोटितीर्थ घाट पक्के बने है। पुष्कर सरोवर से सरस्वती नदी निकलती है, जो साबरमती से मिलने के बाद लूनी नदी कही जाती है।

पुष्कर से जुड़ी कई ओर भी है पौराणिक कथाएं

पद्मपुराण मे वर्णित है पुष्कर में जाना बडा कठिन है। पुष्कर में तपस्या दुष्कर है। पुष्कर का दान भी दुष्कर है और पुष्कर मे वास करना तो और भी दुष्कर है। पापों के नाशक, दैदीप्यमान तीन पुष्कर क्षेत्र है, इनमें सरस्वती बहती है। यह आदिकाल से सिद्ध तीर्थ है।

जिस प्रकार देवताओं में मधुसूदन सर्वश्रेष्ठ है, वैसे ही तीर्थों में पुष्कर आदितीर्थ है। सौ वर्षों से लगातार कोई अग्निहोत्र की उपासना करे या कार्तिकी पूर्णिमा की एक रात पुष्कर में वास करे, दोनों का फल समान है।

पद्मपुराण के अनुसार सृष्टि के आदि में पुष्कर तीर्थ के स्थान में वज्रनाभ नामक राक्षस रहता था। वह बच्चों को मार दिया करता था। उसी समय ब्रह्मा जी के मन यज्ञ करने की इच्छा हुई। वे भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल से जहां प्रकट हुए थे, उस स्थान पर आए और वहां अपने हाथ के कमल को फेंकर उन्होंने उससे वज्रनाभ राक्षस खो मार दिया। ब्रह्मा जी के हाथ का कमल जहां गिरा था, वहां सरोवर बन गया। उसे पुष्कर कहते है।

पुलस्त्य ऋषि ने भीष्म पितामह को विभिन्न तीर्थों का वर्णन करते हुए पुष्कर तीर्थ को सबसे अधिक पवित्र बताया है। उन्होंने पुष्करतीर्थ को सर्वप्रथम और सबसे अधिक महत्वपूर्ण बताया है। कहा जाता है कि अन्य तीर्थो का फल तब तक अपूर्ण ही रहता है।

परमपिता श्रीब्रह्मा जी के मानस पुत्रो में परात्पर ,परब्रम्ह भगवान श्री चित्रगुप्त एवं भगवान ,  परात्पर ,परब्रम्ह भगवान श्रीरुद्र  (श्री शंकर)

 मन से मरी‍चि,  नेत्र से अत्रि,  मुख से अंगिरस,  कान से पुलस्त्य,  नाभि से पुलह,  हाथ से कृतु,  त्वचा से भृगु,  प्राण से वशिष्ठ,  अंगुष्ठ से दक्ष,  छाया से कंदर्भ,  गोद से नारद,  इच्छा से सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार,  शरीर से स्वायंभुव मनु और शतरुपा , क्रोध से रुद्र ( शंकर ) अंत में  ध्यान से परब्रम्ह श्री चित्रगुप्त।

महाभारत में तीर्थ राज पुष्कर  के बारे में लिखा है कि तीनों लोकों में मृत्यु लोक महान है और मृत्यु लोक में देवताओं का सर्वाधिक प्रिय स्थान पुष्कर है। चारों धामों की यात्रा करके भी यदि कोई व्यक्ति पुष्कर सरोवर में डुबकी नहीं लगाता है तो उसके सारे पुण्य निष्फल हो जाते हैं। यही कारण है कि तीर्थ यात्री चारों धामों की यात्रा के बाद पुष्कर की यात्रा जरूर करते हैं। तीर्थ राज पुष्कर को पृथ्वी का तीसरा नेत्र भी माना जाता है। पुष्कर नगरी में विश्व का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर है तो दूसरी तरफ दक्षिण स्थापत्य शैली पर आधारित रामानुज संप्रदाय का विशाल बैकुंठ मंदिर है। इनके अलावा सावित्री मंदिर, वराह मंदिर के अलावा अन्य कई मंदिर हैं। पास में ही एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की मूर्ति और एक मन्दिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियां हैं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा सृष्टिकर्म करने से इन्कार किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें रोषपूर्वक शाप दे दिया कि— तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है, अत: मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे। तब नारद ने भी दु:खी पिता ब्रह्मा को शाप दिया—तात! आपने बिना किसी कारण के सोचे-विचारे मुझे शाप दिया है। अत: मैं भी आपको शाप देता हूं कि तीन लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा। तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा-अर्चना होती है।

परमपिता श्री ब्रह्मा पूजा के प्रयोग का परामर्श लंबी आयु, स्वास्थ्य, ज्ञान, कलात्मकता, रचनात्मकता, सृजनात्मकता, सुख, समृद्धि, आध्यात्मिक विकास, श्री ब्रह्म कृपा तथा अन्य बहुत सी मनोकामनाओं की पूर्ति सहज होती हैं तथा इस पूजा को विधिवत करने वाले अनेक जातक अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त कर पाने में सफल होते हैं

साधारणतया लंबी आयु, स्वास्थ्य, ज्ञान, कलात्मकता, रचनात्मकता, सृजनात्मकता, सुख, समृद्धि, आध्यात्मिक विकास, श्री ब्रह्म कृपा तथा अन्य बहुत सी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए होता है।

कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर भगवान ब्रह्मा के इस दिव्य तीर्थ के विषय में आप हम ने चिंतन किया आप सभी को बहुत-बहुत मंगलमय शुभकामनाएं एवं भगवान ब्रह्मा से प्रार्थना करता हूं सभी के जीवन में दिव्य विज्ञान भर दे सब का जीवन मंगलमय हो सभी का जीवन कल्याण मय हो आनंद मय हो।

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
9926910965

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