-करीब 92 साल
की
उम्र
में
हुआ
देहांत
-बालूदा गांव की धरती को अपनी मेहनत से सींचते रहे श्री जगदीश प्रशाद
-बालूदा गांव की धरती को अपनी मेहनत से सींचते रहे श्री जगदीश प्रशाद
गुरुग्राम।
है
काम
आदमी
का
औरों
के
काम
आना,
जीना
तो
है
उसी
का
जिसने
ये
राज
जाना...। इस गीत
की
इन
लाइनों
को
अपने
जीवन
में
आत्मसात करके
जीने
वाले
जगदीश
प्रशाद
शर्मा
गुरूजी
को
ऐसे
ही
गुरूजी
का
तमगा
नहीं
मिला।
चाहे
अपनी
जन्मभूमि को
या
कर्मभूमि, दोनों
को
ही
उन्होंने पूजनीय
माना।
वहां
के
लोगों
के
बीच
समाजसेवा के
जरिये
लोकप्रियता हासिल
की।
इंसान
हो
या
जीव-जन्तु, सभी के
लिए
उनके
दिल
में
हमेशा
प्रेम
की
भावना
रही।
इसलिए
उनके
जाने
पर
न
केवल
परिजन,
बल्कि
उनके
जानने
वाले
भी
अपनी
अश्रुधारा नहीं
रोक
पाये।
बुधवार
की
सुबह
करीब
92 साल
की
उम्र
में
श्री
जगदीश
शर्मा
गुरूजी
ने
इस
संसार
से
विदाई
ली।
वे
अपने
पीछे
भरा-पूरा परिवार छोड़
गये
हैं।
श्री
जगदीश
प्रशाद
शर्मा
पिछले
काफी
समय
से
बीमार
चले
रहे
थे।
धर्म-कर्म के क्षेत्र के
साथ-साथ सामाजिक क्षेत्र में
उनका
काफी
नाम
था।
उन्होंने गांव
के
मंदिर
में
कमरों
का
निर्माण कराने
के
साथ
और
भी
कई
सामाजिक कार्यों में
रुचि
लेकर
अमलीजामा पहनाया। जब
तक
वे
स्वस्थ
रहे,
खुद
आगे
बढ़कर
समाजहित में
कार्य
किये।
अस्वस्थ होने
के
बाद
भी
उनकी
सोच
समाज
के
प्रति
सकारात्मक रही।
वे
हमेशा
समाज
के
कार्यों को
अहमियत
देते
थे।
स्वर्गीय जगदीश
प्रशाद
शर्मा
भरा-पूरा परिवार छोड़
गये
हैं।
परिवार
में
बड़े
पुत्र
मदनलाल,
जयप्रकाश शर्मा
और
पत्रकार महेश
शर्मा,
एक
बेटी
के
अलावा
कई
पौत्र,
पौत्रियों, पुत्रवधु, पौत्रवधु, पड़पौत्र, पड़पौत्रियां शामिल
हैं।
मंगलवार सांय
उनका
अंतिम
संस्कार गांव
में
ही
कर
दिया
गया।
इसमें
काफी
संख्या
में
राजनीतिक से
जुड़े
लोग,
सामाजिक लोगों
के
अलावा
ग्रामीणों ने
पहुंचकर दिवंगत
आत्मा
की
शांति
के
लिए
प्रार्थना की।
बुजुर्गों की सेवा की मिसाल बना उनका परिवार
परिवार की तरफ से बीमारी के दौरान जो बुजुर्ग जगदीश प्रशाद शर्मा की सेवा की गई, वह भी अपने आप में समाज के सामने एक उदाहरण है। जिस समाज में लोग अपने माता-पिता के बुजुर्ग होते ही अनाथालयों या वृद्ध आश्रमों में छोड़कर पाप के भागी बनते हैं, उस समाज में स्वर्गीय जगदीश प्रशाद शर्मा खुद को सदा स्वर्ग में ही महसूस करते रहे। क्योंकि परिवार के हर छोटे-बड़े सदस्य ने उनको हमेशा सिर-आंखों पर रखा। कभी भी न तो उनको बोझ समझा और न ही खुद कोई परेशानी महसूस की। पिता, दादा, परदादा के जाने का दुख तो पूरे परिवार को है, लेकिन सभी खुद को किस्मत के धनी समझ रहे हैं कि उनकी चार-चार पीढिय़ों ने अपने बुजुर्ग को अपनी बीच पाया।
बचपन में ही मां का निधन होने के चलते परिवार में मां की कमी तो हमेशा खली, लेकिन पिता ने सभी बच्चों को पिता और मां दोनों का प्यार देकर उस कमी को हमेशा पूरा करने का प्रयास किया। सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर कामयाब इंसान बनाया। उसी अच्छी शिक्षा की बदौलत ही परिवार ने उन्हें सदा वो मान-सम्मान दिया, जो एक परिवार में बुजुर्गों को मिलना चाहिये। उनके हर बोल पर, हर आह पर परिवार एकजुट होकर खड़ा रहा। हमेशा संयुक्त परिवार के रूप में श्री जगदीश प्रशाद शर्मा रहे। परिवार ने जो अपने बुजुर्ग के लिए नेकी से काम किया, वह बहुतों की जुबान से सुना भी गया। इस कलयुग में अपने बुजुर्गों को किस तरह से रखा जाता है, अगर यह बात, यह रीत सीखनी हो तो स्वर्गीय जगदीश प्रशाद शर्मा के परिवार से बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता। हमारी कामना है कि भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
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