3 मार्च तक कर लें सारे शुभ काम, नहीं तो करना होगा इस दिन तक इंतजार
होलाष्टक में, संक्राति, ग्रहण काल आदि में शुभ विवाह कार्यों को वर्जित किया गया है।
होलाष्टक दोष शुभ कार्यों के लिए वर्जित काल:
03 मार्च 2020 से 09 मार्च 2020 पर्यन्तम्
भारतीय मुहूर्त विज्ञान व ज्योतिष शास्त्र प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मुहूर्तों का शोधन कर उसे करने की अनुमति देता है। कोई भी कार्य यदि शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो वह उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है। इस धर्म धुरी भारतीय भूमि में प्रत्येक कार्य को सुसंस्कृत समय में किया जाता है। अर्थात् ऐसा समय जो उस कार्य की पूर्णता के लिए उपयुक्त हो।
इस प्रकार प्रत्येक कार्य की दृष्टि से उसके शुभ समय का निर्धारण किया गया है। जैसे गर्भाधान, विवाह, पुंसवन, नामकरण, चूड़ाकरन विद्यारम्भ, गृह प्रवेश व निर्माण, गृह शान्ति, हवन यज्ञ कर्म, स्नान, तेल मर्दन आदि कार्यों का सही और उपयुक्त समय निश्चित किया गया है। इस प्रकार होलाष्टक को ज्योतिष की दृष्टि एक होलाष्टक दोष माना जाता है। जिसमें विवाह, गर्भाधान, गृह प्रवेश, निर्माण, आदि शुभ कार्य वर्जित हैं।
इस वर्ष विक्रम संवत् 2076 और शक संवत 1941 तथा इस वर्ष 2020 का होलाष्टक 03 मार्च ; फाल्गुन शुक्ल पक्ष ; अष्टमी तिथि, दिन मङ्गलवार को प्रारंभ हो रहा है जो 09 मार्च होलिका दहन के साथ ही समाप्त हो जाएगा अर्थात् आठ दिनों का यह होलाष्टक दोष रहेगा।जिसमें सभी शुभ कार्य वर्जित है।नौ मार्च को गोधूलि वेला में होली दहन होगा। 10 मार्च को ही होला मेला (होला - मोहल्ला श्री आनन्दपुर साहिब वह पाओंटा साहिब ),वसन्तोत्सव , ध्वजारोहण , धूलिवन्दन ,धुलण्डी, होलिका विभूति धारण होगा।
होलाष्टक के प्रथम दिन अर्थात फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है। इस वजह से इन आठों दिन में मानव मस्तिष्क तमाम विकारों, शंकाओं और दुविधाओं आदि से घिरा रहता है, जिसकी वजह से शुरू किए गए कार्य के बनने के बजाय बिगड़ने की संभावना ज्यादा रहती है।
विशेष रूप से इस समय विवाह, नए निर्माण व नए कार्यों को आरंभ नहीं करना चाहिए। ऐसा ज्योतिष शास्त्र का कथन है। अर्थात् इन दिनों में किए गए कार्यों से कष्ट, अनेक पीड़ाओं की आशंका रहती है तथा विवाह आदि संबंध विच्छेद और कलह का शिकार हो जाते हैं या फिर अकाल मृत्यु का खतरा या बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है।
इस बार होलिका दहन की तारीख 9 मार्च है और रंग वाली होली 10 मार्च को खेली जायेगी। होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है।होली का पर्व दो दिन मनाया जाता है। एक दिन होलिका दहन किया जाता है तो दूसरे दिन रंग वाली होली खेली जाती है। इस बार होलिका दहन की तारीख 9 मार्च है और रंग वाली होली 10 मार्च को खेली जायेगी। होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पवित्र अग्नि जलाकर उसमें सभी तरह की बुराई, अहंकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है।
घर में सुख शांति और समृद्धि के लिए छोटी होली पर महिलाएं होली की पूजा करती हैं। जिसकी तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू कर दी जाती हैं। होलिका दहन के लिए कुछ दिन पहले से ही कांटेदार लकड़ियों को इकट्ठा करने का काम शुरू हो जाता है फिर होली वाले दिन इसे शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा जाता है।
होलिका दहन मुहूर्त : होलिका दहन सोमवार, 9 मार्च को
गोधूलि वेला में होली दहन करना श्रेष्ठ माना गया है। फिर भी निम्नांकित समय में होलिका दहन कर सकते हैं।
होलिका दहन मुहूर्त – 06:26 PM से 08:52 PM
अवधि – 02 घण्टे 26 मिनट्स
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ:
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 09, 2020 को 03:03 am बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 09, 2020 को 11:17 pm बजे
रंग वाली होली: 10 मार्च को रंग वाली होली खेली जायेगी। ये हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। जिसे रंगों के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। खुशियों से भरा ये त्योहार भगवान कृष्ण का काफी प्रिय माना जाता है। इसलिए इस त्योहार की खास रौनक मथुरा वृन्दावन में देखने को मिलती है। बरसाना की लट्ठमार होली तो दुनिया भर में विख्यात है। कई जगह रंगवाली होली को धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है। पुराने गिले शिकवे मिटाने के लिए ये पर्व खास माना जाता है। इस दिन बच्चे-बड़े सभी मिलकर हंसते-गाते एक दूसरे के साथ होली खेलते हैं। घरों में तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं।
होली की कहानी: पौराणिक कथा के अनुसार, शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप था, वह खुद को भगवान मनाता था और चाहता था कि हर कोई भगवान की तरह उसकी पूजा करे। वहीं अपने पिता के आदेश का पालन न करते हुए हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करनी शुरू कर दी। इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी जिनसे वह प्रभावित नहीं हुआ।
इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई की वह प्रह्लाद के साथ चिता पर बैठेगी। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता, दूसरी तरह प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी न था। जैसे ही आग जली, वैसे ही वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर प्रह्लाद के ऊपर चला गया। इसी तरह प्रह्लाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई। यही कारण है होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
होलिका दहन वाली रात को आध्यात्मिक दृष्टि से भी खास माना जाता है। मान्यता है कि होलिका दहन की रात जप, ध्यान और साधना के लिए अत्यंत शुभ है।
पंचांग के मुताबिक होलिका दहन के दिन भद्रा पूंछ का समय सुबह 9.37 मिनट से लेकर 10.38 मिनट तक है। जबकि भद्रा मुख का समय 10 बजकर 38 मिनट से लेकर 12 बजकर 19 मिनट तक है। पूर्णिमा तिथि का आरंभ 9 मार्च 03 बजकर 03 मिनट पर है।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
9926910965
होलाष्टक में, संक्राति, ग्रहण काल आदि में शुभ विवाह कार्यों को वर्जित किया गया है।
होलाष्टक दोष शुभ कार्यों के लिए वर्जित काल:
03 मार्च 2020 से 09 मार्च 2020 पर्यन्तम्
भारतीय मुहूर्त विज्ञान व ज्योतिष शास्त्र प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मुहूर्तों का शोधन कर उसे करने की अनुमति देता है। कोई भी कार्य यदि शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो वह उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है। इस धर्म धुरी भारतीय भूमि में प्रत्येक कार्य को सुसंस्कृत समय में किया जाता है। अर्थात् ऐसा समय जो उस कार्य की पूर्णता के लिए उपयुक्त हो।
इस प्रकार प्रत्येक कार्य की दृष्टि से उसके शुभ समय का निर्धारण किया गया है। जैसे गर्भाधान, विवाह, पुंसवन, नामकरण, चूड़ाकरन विद्यारम्भ, गृह प्रवेश व निर्माण, गृह शान्ति, हवन यज्ञ कर्म, स्नान, तेल मर्दन आदि कार्यों का सही और उपयुक्त समय निश्चित किया गया है। इस प्रकार होलाष्टक को ज्योतिष की दृष्टि एक होलाष्टक दोष माना जाता है। जिसमें विवाह, गर्भाधान, गृह प्रवेश, निर्माण, आदि शुभ कार्य वर्जित हैं।
इस वर्ष विक्रम संवत् 2076 और शक संवत 1941 तथा इस वर्ष 2020 का होलाष्टक 03 मार्च ; फाल्गुन शुक्ल पक्ष ; अष्टमी तिथि, दिन मङ्गलवार को प्रारंभ हो रहा है जो 09 मार्च होलिका दहन के साथ ही समाप्त हो जाएगा अर्थात् आठ दिनों का यह होलाष्टक दोष रहेगा।जिसमें सभी शुभ कार्य वर्जित है।नौ मार्च को गोधूलि वेला में होली दहन होगा। 10 मार्च को ही होला मेला (होला - मोहल्ला श्री आनन्दपुर साहिब वह पाओंटा साहिब ),वसन्तोत्सव , ध्वजारोहण , धूलिवन्दन ,धुलण्डी, होलिका विभूति धारण होगा।
होलाष्टक के प्रथम दिन अर्थात फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है। इस वजह से इन आठों दिन में मानव मस्तिष्क तमाम विकारों, शंकाओं और दुविधाओं आदि से घिरा रहता है, जिसकी वजह से शुरू किए गए कार्य के बनने के बजाय बिगड़ने की संभावना ज्यादा रहती है।
विशेष रूप से इस समय विवाह, नए निर्माण व नए कार्यों को आरंभ नहीं करना चाहिए। ऐसा ज्योतिष शास्त्र का कथन है। अर्थात् इन दिनों में किए गए कार्यों से कष्ट, अनेक पीड़ाओं की आशंका रहती है तथा विवाह आदि संबंध विच्छेद और कलह का शिकार हो जाते हैं या फिर अकाल मृत्यु का खतरा या बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है।
इस बार होलिका दहन की तारीख 9 मार्च है और रंग वाली होली 10 मार्च को खेली जायेगी। होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है।होली का पर्व दो दिन मनाया जाता है। एक दिन होलिका दहन किया जाता है तो दूसरे दिन रंग वाली होली खेली जाती है। इस बार होलिका दहन की तारीख 9 मार्च है और रंग वाली होली 10 मार्च को खेली जायेगी। होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पवित्र अग्नि जलाकर उसमें सभी तरह की बुराई, अहंकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है।
घर में सुख शांति और समृद्धि के लिए छोटी होली पर महिलाएं होली की पूजा करती हैं। जिसकी तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू कर दी जाती हैं। होलिका दहन के लिए कुछ दिन पहले से ही कांटेदार लकड़ियों को इकट्ठा करने का काम शुरू हो जाता है फिर होली वाले दिन इसे शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा जाता है।
होलिका दहन मुहूर्त : होलिका दहन सोमवार, 9 मार्च को
गोधूलि वेला में होली दहन करना श्रेष्ठ माना गया है। फिर भी निम्नांकित समय में होलिका दहन कर सकते हैं।
होलिका दहन मुहूर्त – 06:26 PM से 08:52 PM
अवधि – 02 घण्टे 26 मिनट्स
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ:
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 09, 2020 को 03:03 am बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 09, 2020 को 11:17 pm बजे
रंग वाली होली: 10 मार्च को रंग वाली होली खेली जायेगी। ये हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। जिसे रंगों के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। खुशियों से भरा ये त्योहार भगवान कृष्ण का काफी प्रिय माना जाता है। इसलिए इस त्योहार की खास रौनक मथुरा वृन्दावन में देखने को मिलती है। बरसाना की लट्ठमार होली तो दुनिया भर में विख्यात है। कई जगह रंगवाली होली को धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है। पुराने गिले शिकवे मिटाने के लिए ये पर्व खास माना जाता है। इस दिन बच्चे-बड़े सभी मिलकर हंसते-गाते एक दूसरे के साथ होली खेलते हैं। घरों में तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं।
होली की कहानी: पौराणिक कथा के अनुसार, शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप था, वह खुद को भगवान मनाता था और चाहता था कि हर कोई भगवान की तरह उसकी पूजा करे। वहीं अपने पिता के आदेश का पालन न करते हुए हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करनी शुरू कर दी। इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी जिनसे वह प्रभावित नहीं हुआ।
इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई की वह प्रह्लाद के साथ चिता पर बैठेगी। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता, दूसरी तरह प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी न था। जैसे ही आग जली, वैसे ही वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर प्रह्लाद के ऊपर चला गया। इसी तरह प्रह्लाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई। यही कारण है होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
होलिका दहन वाली रात को आध्यात्मिक दृष्टि से भी खास माना जाता है। मान्यता है कि होलिका दहन की रात जप, ध्यान और साधना के लिए अत्यंत शुभ है।
पंचांग के मुताबिक होलिका दहन के दिन भद्रा पूंछ का समय सुबह 9.37 मिनट से लेकर 10.38 मिनट तक है। जबकि भद्रा मुख का समय 10 बजकर 38 मिनट से लेकर 12 बजकर 19 मिनट तक है। पूर्णिमा तिथि का आरंभ 9 मार्च 03 बजकर 03 मिनट पर है।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
9926910965
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