गुरुग्राम: सैक्टर 9 में एक कार्यक्रम का अयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रगान से की गयी तथा इस अवसर पर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हे याद किया गया। इस अवसर पर प्रेम जी द्वारा संगठन के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए बताया कि अगर देश को बदलना चाहते हैं तो हमें अपनो की तरफ मुड़ना होगा। देशहित सर्वोपरि है, इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।
चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। 17 वर्ष के चंद्रशेखर आज़ाद क्रांतिकारी दल हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में सम्मिलित हो गए। दल में उनका नाम क्विक सिल्वर (पारा) तय पाया गया। सांडर्स वध, सेण्ट्रल असेम्बली में भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वाइसराय की ट्रेन बम से उड़ाने की चेष्टा, सबके नेता वही थे। इससे पूर्व उन्होंने प्रसिद्ध काकोरी कांड में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए।
किसी बड़े अभियान में चन्द्रशेखर आज़ाद सबसे पहले काकोरी डक़ैती में सम्मिलित हुए। इस अभियान के नेता रामप्रसाद बिस्मिल थे। उस समय चन्द्रशेखर आज़ाद की आयु कम थी और उनका स्वभाव भी बहुत चंचल था। इसलिए रामप्रसाद बिस्मिल उसे क्विक सिल्वर (पारा) कहकर पुकारते थे। 9 अगस्त, 1925 को क्रान्तिकारियों ने लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान पर सहारनपुर - लखनऊ सवारी गाड़ी को रोककर उसमें रखा अंगेज़ी ख़ज़ाना लूट लिया। बाद में एक–एक करके सभी क्रान्तिकारी पकड़े गए; पर चन्द्रशेखर आज़ाद कभी भी पुलिस के हाथ में नहीं लगे।
चन्द्रशेखर आज़ाद घूम–घूमकर क्रान्ति प्रयासों को गति देने में लगे हुए थे। आख़िर वह दिन भी आ गया, जब किसी मुखबिर ने पुलिस को यह सूचना दी कि चन्द्रशेखर आज़ाद अल्फ़्रेड पार्क में अपने एक साथी के साथ बैठे हुए हैं। वह 27 फ़रवरी, 1931 का दिन था। चन्द्रशेखर आज़ाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ बैठकर विचार–विमर्श कर रहे थे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस अधीक्षक नाटबाबर ने आज़ाद को इलाहाबाद के अल्फ़्रेड पार्क में घेर लिया।
बहुत देर तक आज़ाद ने जमकर अकेले ही मुक़ाबला किया। उन्होंने अपने साथी सुखदेवराज को पहले ही भगा दिया था। आख़िर पुलिस की कई गोलियाँ आज़ाद के शरीर में समा गईं। उनके माउज़र में केवल एक आख़िरी गोली बची थी। उन्होंने सोचा कि यदि मैं यह गोली भी चला दूँगा तो जीवित गिरफ्तार होने का भय है। अपनी कनपटी से माउज़र की नली लगाकर उन्होंने आख़िरी गोली स्वयं पर ही चला दी। 27 फ़रवरी, 1931 को चन्द्रशेखर आज़ाद के रूप में देश का एक महान क्रान्तिकारी योद्धा देश की आज़ादी के लिए अपना बलिदान दे गया। उनका एक लोकप्रिय नारा: दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,
आज़ाद ही रहें है, आज़ाद ही रहेंगे।
इस अवसर पर विकाश, प्रमोद, सुनिल, सूजन, हितेश, ईश्वर, उत्तम आदि का सहयोग रहा।
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