जानिए क्या हमें अंगदान करना चाहिए? और किसको अंगदान करना चाहिए?


आज हम एक ऐसे विषय पर अपने विचार रख रहे हैं जिस पर कोई भी विद्वान धार्मिक या ज्योतिषीय दृष्टिकोण से चर्चा करने में उत्सुक नहीं हैं। कारण एकमात्र यही है कि यह विषय विवादास्पद है। संभव है कि बहुत से मित्रों को हमारा यह लेख रुचिकर ना लगे और यह भी संभव है कि आप में से कुछ मित्र हम पर संकीर्ण मस्तिष्क का होने का आरोप लगा दें परन्तु हमें यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण भी लगा इसलिए यह लेख हम लिख रहे हैं।

हमारे विचार से जब मनुष्य किसी चिकित्सालय में अपनी देह दान करता है, तो उस जीव को मुक्ति ओर मोक्ष प्राप्त नहीं होता। वह प्रेत योनी मे रहकर तडपता है जब तक कि उसकी देह पंचतत्व मे विलीन नहीं हो जाती। यहाँ आप का यह समझना आवश्यक है कि जिस प्रकार मनुष्य को अपने घर से प्रेम होता है उसी प्रकार आत्मा को इस शरीर से अथाह प्रेम होता है। इसी कारण जब तक देह पूर्ण रूप से पंचतत्वों में विलीन न हो मुक्ति संभव नहीं है।

आप उसी वस्तु का दान कर सकते हैं ,जो आपने अपने कर्म और पुरुषार्थ से कमाया है, जिसे मनुष्य ने अपने लिए प्राप्त किया है , मनुष्य अपनी देह का दान कैसे कर सकता है , देह को उसने कमाया या बनाया वह तो भगवान ने आत्मा को रहने के लिए दिया है। जिस प्रकार कोई किरायेदार दसियों सालों तक मकान में रहने के बाद  उस मकान का मालिक नहीं हो सकता उसी प्रकार भगवान ने यह शरीर आत्मा को रहने के लिए दिया है , जब आत्मा शरीर से निकल जाती है तो शरीर पर मात्र शिव का ही अधिकार होता है।

जीवन देने वाला और जीवन लेने वाले सदाशिव ही हैं  जीवित शरीर से रक्तदान करना अच्छा है परन्तु क्या  कोई दानदाता जीवित शरीर के अंग दान कर सकता है ?
आज वह समय है जब मनुष्य लालच एवं आवश्यकता के चलते किडनी बेचने और ख़रीदने में लगे हैं। निशुल्क किडनी दान कितने मनुष्य करते हैं।

विभिन्न विषयों पर आपको विद्वानों के भिन्न भिन्न व्यक्तव्य मिलते हैं क्योंकि सभी का अपना-अपना मत है,  परन्तु शास्त्र वेद पुराण गीता भी अपना विशेष स्थान रखते हैं।
 कुछ लोग धर्म का पालन करने वाले होते है, कुछ अधर्म का सबकी मानसिकता पिछले जीवन के आधार पर ईश्‍वर निर्धारित कर देता है । कौन सा मनुष्य पापी विचारधारा वाला होगा, कौन धार्मिक विचारधारा का यह भी पिछले कर्म के आधार पर निर्धारित होती है ।

हमारे स्वयं के विचारानुसार किसी भी जीव को पूर्ण गति उसकी देह के पंचतत्वों में विलीन होने के पश्चात ही मिलती है और सनातन संस्कृति इस विषय में विशुद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी रखती है।

आप स्वयं विचार करें कि सनातन धर्मावलंबियों में भूत प्रेत इत्यादि होने की संभावना सदैव आंशिक ही रहती आयी है। वही जीव भूत प्रेत की योनि में जाता है जिस की देह का विधि-विधान से संस्कार नहीं होता। यही एकमात्र कारण है कि भूत प्रेत की उपस्थिति अधिकांशतः कब्रिस्तानों और विरानों में ही होती है जहाँ शव दफ्नाए गये हों।

हम देह अथवा देह के अंगों को दान देने के विरुद्ध नहीं हैं क्योंकि हम स्वयं किसी अन्य के प्राणों की रक्षा के लिए किए गए किसी भी कार्य को अत्यंत उत्कृष्ट कर्म मानते हैं जो अतुलनीय एवं मोक्षकारी है। हमारे ग्रंथों में महार्षि दधीचि के विषय में एक कथा है कि उन्होंने समस्त विश्व के कल्याण के लिए और असुरों के संहार हेतु देवताओं को अपनी अस्थियों का दान दिया था जिनसे देवराज इंद्र के महान अस्त्र वज्र का निर्माण किया गया। उनके इस कर्म ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया।
परन्तु यहाँ दानकर्ता के लिए आवश्यक है कि वह ऐसा दान करते समय यह भी सुनिश्चित करें कि उनकी देह अथवा देह का अंश जिसे वह दान कर रहे हैं उसका एक समय के पश्चात संस्कार अवश्य हो और उस दान को लेने वाले की जीवनशैली दानकर्ता के धार्मिक क्रियाकलापों के विपरीत न हो। क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि अधर्मी को दिया गया दान कभी भी शुभ फलकारक नहीं होता।

यहाँ हमारे कथन का पूर्ण तात्पर्य यह है कि आप यह सुनिश्चित("एस्ट्रो मुनीष")करें कि आपके देह त्याग के पश्चात आपकी देह के अंशों को आपके धर्म से संबंधित मनुष्यों को ही दान दिया जाए वह भी यह सुनिश्चित करने के पश्चात कि उस मनुष्य के कर्म न्यायोचित एवं धार्मिक हैं। जिससे जीव को कुछ अंतराल के पश्चात ही सही परन्तु मुक्ति एवं दान का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।

यह हमारे मौलिक विचार हैं आप सभी अपनी राय हमें दें कि आप इनसे सहमत हैं अथवा नहीं। जहाँ तक हमारा प्रश्न है तो हम अपने कथन से पूर्णतः सहमत हैं और हम स्वयं अपनी देह के अंशों के दान के लिए उपरोक्त नियमों के साथ सहमति प्रदान कर चुके हैं।
                       ।। इति।।
एस्ट्रो मुनीष"
📞07503400999

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