सर्वार्थ सिद्धि योग एवं गजकेसरी योग में मनाए होलिका का पावन पर्व होगा घर में सब मंगल

सर्वार्थ सिद्धि योग एवं गजकेसरी योग में मनाए होलिका का पावन पर्व होगा घर में सब मंगल

इस बार होलिका दहन की तारीख 9 मार्च है और रंग वाली होली 10 मार्च को खेली जायेगी। होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है।होली का पर्व दो दिन मनाया जाता है। एक दिन होलिका दहन किया जाता है तो दूसरे दिन रंग वाली होली खेली जाती है। इस बार होलिका दहन की तारीख 9 मार्च है और रंग वाली होली 10 मार्च को खेली जायेगी। होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पवित्र अग्नि जलाकर उसमें सभी तरह की बुराई, अहंकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है।

घर में सुख शांति और समृद्धि के लिए छोटी होली पर महिलाएं होली की पूजा करती हैं। जिसकी तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू कर दी जाती हैं। होलिका दहन के लिए कुछ दिन पहले से ही कांटेदार लकड़ियों को इकट्ठा करने का काम शुरू हो जाता है फिर होली वाले दिन इसे शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा जाता है।

होलिका दहन मुहूर्त :होलिका दहन सोमवार, 9 मार्च को

गोधूलि वेला में होली दहन करना श्रेष्ठ माना गया है। फिर भी निम्नांकित समय में होलिका दहन कर सकते हैं।
होलिका दहन मुहूर्त – 06:26 pm से 08:52 pm
अवधि – 02 घण्टे 26 मिनट्स

होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ:---

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 09, 2020 को 03:03 am बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 09, 2020 को 11:17 pm बजे

रंग वाली होली: 10 मार्च को रंग वाली होली खेली जायेगी। ये हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। जिसे रंगों के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। खुशियों से भरा ये त्योहार भगवान कृष्ण का काफी प्रिय माना जाता है। इसलिए इस त्योहार की खास रौनक मथुरा वृन्दावन में देखने को मिलती है। बरसाना की लट्ठमार होली तो दुनिया भर में विख्यात है। कई जगह रंगवाली होली को धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है। पुराने गिले शिकवे मिटाने के लिए ये पर्व खास माना जाता है। इस दिन बच्चे-बड़े सभी मिलकर हंसते-गाते एक दूसरे के साथ होली खेलते हैं। घरों में तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं।

होली की कहानी: पौराणिक कथा के अनुसार, शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप था, वह खुद को भगवान मनाता था और चाहता था कि हर कोई भगवान की तरह उसकी पूजा करे। वहीं अपने पिता के आदेश का पालन न करते हुए हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करनी शुरू कर दी। इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी जिनसे वह प्रभावित नहीं हुआ।

इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई की वह प्रह्लाद के साथ चिता पर बैठेगी। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता, दूसरी तरह प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी न था। जैसे ही आग जली, वैसे ही वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर प्रह्लाद के ऊपर चला गया। इसी तरह प्रह्लाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई। यही कारण है होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

त्यौहार का अपना एक रंग होता है जिसे आनंद या उल्लास कहते हैं लेकिन हरे, पीले, लाल, गुलाबी आदि असल रंगों का भी एक त्यौहार पूरी दुनिया में हिंदू धर्म के मानने वाले मनाते हैं। यह है होली का त्यौहार इसमें एक और रंगों के माध्यम से संस्कृति के रंग में रंगकर सारी भिन्नताएं मिट जाती हैं और सब बस एक रंग के हो जाते हैं वहीं दूसरी और धार्मिक रूप से भी होली बहुत महत्वपूर्ण हैं। मान्यता है कि इस दिन स्वयं को ही भगवान मान बैठे हरिण्यकशिपु ने भगवान की भक्ति में लीन अपने ही पुत्र प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका के जरिये जिंदा जला देना चाहा था लेकिन भगवान ने भक्त पर अपनी कृपा की और प्रह्लाद के लिये बनाई चिता में स्वयं होलिका जल मरी। इसलिये इस दिन होलिका दहन की परंपरा भी है। होलिका दहन से अगले दिन रंगों से खेला जाता है इसलिये इसे रंगवाली होली और दुलहंडी भी कहा जाता है।

होलिका दहन वाली रात को आध्यात्मिक दृष्टि से भी खास माना जाता है। मान्यता है कि होलिका दहन की रात जप, ध्यान और साधना के लिए अत्यंत शुभ है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गज मतलब हाथी, केसरी मतलब शेर, हाथी और शेर का संबंध मतलब राजसी सुख. 9 मार्च को गुरु और शनि अपनी-अपनी राशि में होंगे. ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, होली के दिन यह योग सुख, समृद्धि और शांति लाने वाला है. इस दिन बृहस्पति-मंगल साथ होंगे. इस संयोग से पूरे साल मांगलिक कार्य होंगे.

सर्वार्थ सिद्धि योग

होलिका दहन के वक्त भद्रा नहीं होगी. सर्वार्थ सिद्धि योग में होलिका दहन होगा. होलिका दहन के लिए शाम 6:30 से 6:50 बजे तक का समय श्रेष्ठ माना गया है.
पंचांग के अनुसार होलिका दहन के दिन भद्रा पूंछ का समय सुबह 9.37 मिनट से लेकर 10.38 मिनट तक है। जबकि भद्रा मुख का समय 10 बजकर 38 मिनट से लेकर 12 बजकर 19 मिनट तक है। पूर्णिमा तिथि का आरंभ 9 मार्च 03 बजकर 03 मिनट पर है।

होलिका दहन का पूजन प्रदोषकाल में शास्त्रसम्मत है तभी पूजन करना चाहिए। प्राय: महिलाएं पूजन कर ही भोजन ग्रहण करती हैं।
– पूजा सामग्री: रोली, कच्चा सूत, पुष्प, हल्दी की गांठें, खड़ी मूंग, बताशे, मिष्ठान्न, नारियल, बड़बुले आदि।
– विधि: यथाशक्ति संकल्प लेकर गोत्र-नामादि का उच्चारण कर पूजा करें। सबसे पहले भगवान गणेश व गौरी का पूजन करें। ‘ॐ होलिकायै नम:’ मंत्र से होली का पूजन करें। फिर ‘ॐ प्रहलादाय नम:’ से प्रहलाद का पूजन करें।
– इसके पश्चात ‘ॐ नृसिंहाय नम:’ से भगवान नृसिंह (भगवान विष्णु के अवतार) का पूजन करें, तत्पश्चात अपनी समस्त मनोकामनाएं कहें। एक कच्चा सूत लेकर होलिका पर चारों तरफ लपेटकर 3 परिक्रमा कर लें आप चाहें तो 7 बार भी कर सकते हैं।
– अंत में लोटे का जल चढ़ाकर ‘ॐ ब्रह्मार्पणमस्तु’ कहें।

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
9926910965

Post a Comment

0 Comments