गंगा सप्तमी , वैशाख शुक्ल सप्तमी का पौराणिक महत्व

गंगा सप्तमी , वैशाख शुक्ल सप्तमी का पौराणिक महत्व

गंगासप्तमी
माँ गंगा के जन्मोत्सव के लिए उस दिन को चुना गया है जिस दिन गंगा जह्नु के कर्णरन्ध्र से निर्गत हुई थी। यह दिन वैशाख शुक्ल सप्तमी है। कहा गया है कि जह्नु सर्वमेध यज्ञ कर रहे थे कि गंगा ने जह्नु को पति रूप में प्राप्त करने के लिए उनके यज्ञ मण्डप को आप्लावित कर दिया। इस पर जह्नु क्रुद्ध हो गए और गंगा का पान कर लिया। ऋषियों के अनुरोध पर जह्नु ने गंगा को अपने दक्षिण कर्णरन्ध्र से अपनी दुहिता के रूप में पुनः प्रकट किया। अतः वैशाख शुक्ल सप्तमी को गंगा का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

नारदपुराण के अनुसार

वैशाखशुक्लसप्तम्यां जह्नुना जाह्नवी स्वयम् ।
क्रोधात्पीता पुनस्त्यक्ता कर्णरंध्रात्तु दक्षिणात् ।। ११६-११ ।।
तां तत्र पूजयेत्स्नात्वा प्रत्यूषे विमले जले ।
गंधपुष्पाक्षताद्यैश्च सर्वैरेवोपचारकैः ।। ११६-१२ ।।
ततो घटसहस्रं तु देयं गंगाव्रतेत्विदम् ।
भक्त्या कृतं सप्तकुलं नयेत्स्वर्गमसंशयः ।। ११६-१३ ।।

वैशाख शुक्ल सप्तमी को राज जह्नु ने स्वयं क्रोधवश गंगाजी को पी लिया था और पुनः अपने दाहिने कान के छिद्र से उनका त्याग किया था। अतः वहां प्रातःकाल स्नान करके निर्मल जल में गन्ध, पुष्प, अक्षत आदि सम्पूर्ण उपचारों द्वारा गंगाजी का पूजन करना चाहिए। तदन्तर एक सहस्त्र घट दान करना चाहिए। ‘गंगाव्रत’ में यही कर्तव्य है। यह सब भक्तिपूर्वक किया जाए तो गंगाजी सात पीढ़ियों को निःसन्देह स्वर्ग में पहुँचा देती हैं।

पद्मपुराण पातालखंड के अनुसार

स्नातुं गंतुं च गंगायां न कथावसरोऽधिकः ४७
प्राप्तोऽय माधवो मासः पुण्यो माधववल्लभः
तस्यापि सप्तमी शुक्ला गंगायामतिदुर्ल्लभा ४८
वैशाख शुक्ल सप्तम्यां जाह्नवी जह्नुना पुरा
क्रोधात्पीता पुनस्त्यक्ता कर्णरंध्रात्तु दक्षिणात् ४९
तस्यां समर्चयेद्देवीं गंगां गगनमेखलाम्
स्नात्वा सम्यग्विधानेन स धन्यः सुकृती नरः ५०
तस्यां यस्तर्पयेद्देवान्पितॄन्मर्त्यो यथाविधि
साक्षात्पश्यति तं गंगा स्नातकं गतपापकम् ५१

वैशाख शुक्ल सप्तमी को गंगा स्नान अतिदुर्लभ है। पूर्वकाल में राजा जह्नु ने वैशाख शुक्ल सप्तमी को क्रोध में आकर गंगाजी को पी लिया था और फिर अपने दाहिने कान के छिद्र से उन्हें कान से बाहर निकाला था अतः जह्नु की कन्या होने के कारण गंगा को जाह्नवी कहते हैं।

जो वैशाख शुक्ल सप्तमी को गंगा में देवताओं और  पितरों का तर्पण करता है उसे गंगादेवी कृपा दृष्टि से देखती हैं और वह स्नान के बाद सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

पद्मपुराण, पाताल खण्ड

गंगा गंगेति गंगेति यैस्त्रिसंध्यमितीरितम्
सुदूरस्थैश्च तत्पापं हंति जन्मत्रयार्जितम् ५८
योजनानां सहस्रेषु गंगां यः स्मरते नरः
अपि दुष्कृतकर्मासौ लभते परमां गतिम् ५९
वैशाखे शुक्ल सप्तम्यां दुर्ल्लभा सा विशेषतः
प्राप्यते जगतीपाल हरि विप्र प्रसादतः ६०

जो लोग दूर रहकर भी तीनों समय 'गङ्गा गङ्गा गङ्गा' इस प्रकार उच्चारण करते हैं उनके तीन जन्मों का पाप गंगाजी नष्ट कर देती हैं। जो मनुष्य हजार योजन दूर से भी गङ्गा का स्मरण करता है वह पापी होने पर भी उत्तम गति को प्राप्त होता है।
राजन! वैशाख शुक्ल सप्तमी को गङ्गा का दर्शन विशेष दुर्लभ है। भगवान श्रीविष्णु और ब्राह्मणों की कृपा से उस दिन उनकी प्राप्ति होती है।

हर हर गङ्गे
जय माँ गङ्गे
नमामि गङ्गे

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
9926910965

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