राहु ग्रह के रहस्यमयी प्रभाव नक्षत्र एवं द्वादश भाव मे फल एवं स्तोत्र ,कवच एवं उपाय से पाये अचूक सफलता

राहु ग्रह के रहस्यमयी प्रभाव नक्षत्र एवं द्वादश भाव मे फल एवं स्तोत्र ,कवच एवं उपाय से पाये अचूक सफलता


ज्योतिष में राहु ग्रह को एक पापी ग्रह माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में राहु ग्रह को कठोर वाणी, जुआ, यात्राएं, चोरी, दुष्ट कर्म, त्वचा के रोग, धार्मिक यात्राएं आदि का कारक कहते हैं। जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका में राहु अशुभ स्थान पर बैठा हो, अथवा पीड़ित हो तो यह जातक को इसके नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ज्योतिष में राहु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।
राहु : छाया ग्रह क्यों?
27 नक्षत्रों में राहु आद्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्रों का स्वामी है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, राहु एक छाया ग्रह है जिसका कोई भी भौतिक स्वरूप नहीं है। दरअसल, सूर्य और पृथ्वी के बीच जब चंद्रमा आता है और चंद्रमा का मुख सूर्य की तरफ होता है तो पृथ्वी पर पड़ने वाली चंद्रमा की छाया राहु ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है।
राशियों से संबंध...
 ज्योतिष में राहु को एक पापी ग्रह माना गया है। ज्योतिष में राहु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।
ऐसे समझें राहु काल
हिन्दू पंचांग के अनुसार, राहु ग्रह के प्रभाव से दिन में एक अशुभ समयावधि होती है जिसमें शुभ कार्यों को करना वर्जित माना गया है। इस अवधि को राहु काल कहते हैं। यह अवधि लगभग डेढ़ घण्टे की होती है और स्थान व तिथि के अनुसार इसमें अंतर देखने को मिलता है।
राहु ग्रह का असर
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु ग्रह मजबूत होता है तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है तथा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। राहु ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है।
जबकि इसके विपरीत यदि किसी जातक की कुंडली में राहु की स्थिति कमज़ोर होती है अथवा वह पीड़ित है तो जातक के लिए यह अच्छा नहीं माना जाता है। वहीं राहु अपने शत्रु ग्रहों के साथ कमज़ोर होता है।
राहु के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव :
सकारात्मक प्रभाव - यदि राहु किसी जातक की कुंडली में शुभ हो तो व्यक्ति के मस्तिष्क में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं जिससे वह अच्छे कार्यों को अंजाम देता है। यदि किसी जातक की बुद्धि सही दिशा में लगे वह ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकता है। राहु के सकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति बुद्धि से काम लेता है और यदि कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि के कार्य करता है तो बड़े से बड़ा पहाड़ हिला सकता है।
नकारात्मक प्रभाव - किसी व्यक्ति की कुंडली में कमज़ोर राहु के कारण उसे कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएं मानसिक और शारीरिक रूप से भी हो सकती हैं। पीड़ित राहु के कारण हिचकी, पागलपन, आंतों की समस्या, अल्सर, गैस्ट्रिक आदि की समस्याएं जन्म लेती हैं।
आइए जानते हैं राहु का असर (मान्यता के अनुसार) : सभी 12 भावों के अनुसार...
1. राहू का पहले भाव में फल :
पहला घर या भाव यानि लग्न कहलाता है, जो जातक के स्वभाव से लेकर उसकी कद काठी सहित बहुत सी चीजों के बारे में बताता है। वहीं पहले घर को मंगल और सूर्य से प्रभावित माना जाता है, यह घर किसी सिंहासन की तरह होता है। पहले घर में बैठा ग्रह सभी ग्रहों का राजा माना जाता है।
यहां उच्च का होने पर जातक अपनी योग्यता से बड़ा पद प्राप्त करेगा। उसे सरकार से भी अच्छे परिणाम मिलेंगे। इस घर में राहू उच्च के सूर्य के समान परिणाम देगा। लेकिन सूर्य जिस भाव में बैठा है, उस भाव के फल प्रभावित होंगे। यदि मंगल, शनि और केतू कमजोर हैं तो राहू बुरे परिणाम देगा अन्यथा यह पहले भाव में अच्छे परिणाम देगा। यदि राहू नीच का हो तो जातक को कभी भी ससुराल वालों से बिजली के उपकरण या नीले कपड़े नहीं लेने चाहिए, अन्यथा उसके पुत्र पर बुरा प्रभाव पडता है। मान्यता है कि राहू के दुष्परिणाम 42 साल की उम्र तक मिलते हैं।
उपाय:
(1) बहते पानी में 400 ग्राम सुरमा बहाएं।
(2) गले में चांदी पहनें।
(3) 1:4 के अनुपात में जौ में दूध मिलाए और बहते पानी में बहाएं।
(4) बहते पानी में नारियल बहाएं।

2. राहू का दूसरे भाव में फल :
कुंडली का दूसरा घर जिसे धन या विचार भाव कहते हैं, जो जातक की संपत्ति व उसके विचारों सहित बहुत सी चीजों के बारे में बताता है। ऐसे में यदि दूसरे घर में राहू शुभ अवस्था में हो तो जातक पैसा और प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और किसी राजा की तरह जीवन जीता है। जातक दीर्घायु होता है।
दूसरा भाव बृहस्पति और शुक्र से प्रभावित होता है। यदि बृहस्पति शुभ हो तो जातक अपनी प्रारंभिक अवस्था में धन से युक्त व आराम भरी जिन्दगी जीता है। यदि राहू नीच का हो तो जातक गरीब होता है, उसका पारिवारिक जीवन खराब होता है। वह पेट के विकारों से परेशान होता है। माना जाता है कि ऐसा जातक पैसे बचाने में असमर्थ होता है और उसकी मृत्यु किसी हथियार से होती है। वहीं उसके जीवन के दसवें, इक्कीसवें और बयालीसवें वर्ष में चोरी आदि माध्यमों से उसका धन खो जाता है।
उपाय:
(1) चांदी की एक ठोस गोली अपनी जेब में रखें।
(2) बृहस्पति से सम्बंधित चीजें जैसे सोना, पीले कपड़े और केसर आदि उपयोग में लाएं।
(3) माँ के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखें।
(4) शादी के बाद ससुराल वालों से कोई बिजली का उपकरण न लें।
3. राहू का तीसरे भाव में फल :
कुंडली का तीसरा घर जिसे पराक्रम भाव भी कहते हैं, ये जातक के पराक्रम सहित उसके भाई बहनों व मामा आदि के बारे में बताता है।
इस भाव को राहु का पक्का घर माना जाता है। तीसरा घर बुध और मंगल से प्रभावित होता है। यदि यहां राहू शुभ हो तो, बहुत धन दौलत वाला और दीर्घायु होता। वह एक निडर और वफादार दोस्त होता है। वह सपनों के माध्यम से भविष्य देख सकेगा।
कहा जाता है कि ऐसा जातक कभी नि:संतान नहीं होगा। वह शत्रुओं पर विजय पाने वाला होगा। वह कभी भी कर्जदार नहीं रहेगा। वह अपने पीछे सम्पत्ति छोड जाएगा। अपने जीवन के 22वें वर्ष में वह प्रगति करेगा। लेकिन अगर राहू तीसरे घर में अशुभ है तो उसके भाई और रिश्तेदार अपने पैसे बर्बाद करेंगे। वह किसी को पैसे उधार देगा तो वापस नहीं मिलेंगे। जातक में वाणी दोष होगा और वह नास्तिक होगा। मान्यता के अनुसार यदि सूर्य और बुध भी राहू के साथ तीसरे घर में हों, तो उसकी बहन अपनी उम्र के 22वें या 32वें साल में विधवा हो सकती है।
उपाय:
(1) घर में कभी भी हाथीदांत या हाथीदांत की वस्तुएं न रखें।

4. राहू का चौथे भाव में फल :
कुंडली का चौथा घर इसे सुख या मां का भाव भी कहते हैं,यह घर चंद्रमा का है जो कि राहू क शत्रु है। जब इस घर में रहु शुभ हो तो जातक बुद्धिमान, अमीर और अच्छी चीजों पर पैसे खर्च करने वाला होगा। तीर्थ यात्रा पर जाना जातक के लिए फायदेमंद होगा।
यदि शुक्र भी शुभ हो तो शादी के बाद जातक के ससुराल वाले भी अमीर हो जाते हैं और जातक को उनसे भी लाभ मिलता है। यदि चंद्रमा उच्च का हो तो जातक बहुत अमीर हो जाता है और बुध से संबंधित कामों से बहुत लाभ कमाता है। यदि राहू नीच का या अशुभ हो और चंद्रमा कमजोर हो तो जातक गरीब होता है और जातक की मां परेशान होती है। कोयले का एकत्रीकरण, शौचालय फेरबदल, जमीन में तंदूर बनाना और छ्त में फेरबदल करना हानिकारक होगा।
उपाय:
(1) चांदी पहनें।
(2) 400 ग्राम धनिया या बादाम दान करें अथवा दोनो को पानी में बहाएं।

5. राहू का पांचवें भाव में फल :
कुंडली का पांचवा घर जिसे बुद्धि या संतान भाव भी कहते हैं,यह पांचवां घर सूर्य का होता है जो पुरुष संतान का संकेतक है। यदि राहू शुभ हो तो जातक अमीर, बुद्धिमान और स्वस्थ होता है। वह अच्छी आमदनी और अच्छी प्रगति का आनंद पाता है।
जातक भक्त या दार्शनिक होता है। यहां स्थित नीच का राहू संतान में बाधा दिखाता है। पुत्र के जन्म के बाद जातक की पत्नी को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी संभव है। यदि बृहस्पति भी पांचवें भाव में स्थित हो तो जातक के पिता को कष्ट होगा।
उपाय:
(1) अपने घर में चांदी से बना हाथी रखें।
(2) शराब, मांशाहार, अण्डे के सेवन और व्यभिचार से बचें।
(3) अपनी जीवनसाथी से ही दो बार शादी करें।
6. राहू का छठें भाव में फल :
कुंडली का छठां घर जिसे शत्रु या रोग भाव भी कहते हैं, इस घर में बुध या केतु से प्रभावित होता है। राहू यहां उच्च का होता है और अच्छे परिणाम देता है। जातक सभी प्रकार की झंझटों या मुसीबतों के मुक्त होगा। जातक कपड़ों पर पैसा खर्च करेगा।
जातक बुद्धिमान और विजेता होगा। जब राहु अशुभ हो तो वह अपने भाइयों या दोस्तों को नुकसान पहुंचाएगा। जब बुध या मंगल ग्रह बारहवें भाव में हों तो राहु बुरा परिणाम देता है। जातक विभिन्न बीमारियों या धनहानि से ग्रस्त होता है। किसी काम पर जाते समय छींक का होना जातक के लिए अशुभफलदायी होगा।
उपाय:
(1) एक काला कुत्ता पालें।
(2) अपनी जेब में काला सुरमा रखें।
(3) भाइयों / बहनों को कभी नुकसान न पहुंचाएं।
7. राहू का सातवें भाव में फल :
कुंडली का सातवां घर विवाह भाव कहलाता है, ऐसा जातक अमीर होगा लेकिन पत्नी बीमार होगी। वह अपने दुश्मनों पर विजयी होगा। उम्र के इक्कीस साल से पहले शादी का होना अशुभ होगा। जातक के सरकार के साथ अच्छे संबंध होंगे।
लेकिन यदि जातक राहू से संबंधित व्यवसाय जैसे बिजली के उपकरणों के व्यापार से जुडेगा तो उसे नुकसान होगा। जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा। यदि बुध शुक्र अथवा केतू ग्यारहवें भाव में हों तो राहू बहन, पत्नी या बेटे को नष्ट करेगा।
उपाय:
(1) 21 साल की उम्र के पहले शादी न करें।
(3) नदी में छह नारियल प्रवाहित करें।
8. राहू का आठवें भाव में फल :
कुंडली के आठवें घर को आयु भाव भी कहते हैं, आठवें घर का संबध शनि और मंगल ग्रह से होता है। इसलिए इस भाव का राहू अशुभ फल देता है। जातक अदालती मामलों में बेकार में पैसे खर्च करता है।
परिवारिक जीवन भी प्रतिकूलता से प्रभावित होता है। यदि मंगल ग्रह शुभ हो तथा पहले या आठवें घर में हो अथवा शुभ शनि आठवें घर में हो तो जातक बहुत अमीर होगा।
उपाय:
(1) चांदी का एक चौकोर टुकड़ा पास रखें।
(2) सोते समय तकिये के नीचे सौंफ रखें।
(3) बिजली का काम या बिजली विभाग में काम न करें।

9. राहू का नौवें भाव में फल :
कुंडली का नौंवा घर जिसे भाग्य भाव भी कहते हैं,ये नौवां घर बृहस्पति से प्रभावित होता है। यदि जातक का अपने भाइयों और बहनों के साथ अच्छा संबंध है तो यह यह फायदेमंद होगा, अन्यथा जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा। यदि जातक धार्मिक स्वभाव का नहीं है, तो जातक की संतान जातक के लिए बेकार रहेगी।
शनि से संबंधित व्यापार फायदेमंद रहेगा। यदि बृहस्पति पांचवें या ग्यारहवें घर में हो तो यह निष्प्रभावी होगा। यदि राहू अशुभ होकर नौवें भाव में हो तो पुत्र प्राप्ति की संभावनाएं कम रहती हैं, खासकर तब और जब जातक अपने किसी सगे रिश्तेदार कि खिलाफ कोई अदालती मामला दायर करता है। यदि राहू नौवें भाव में हो और पहला भाव खाली हो तो जातक का स्वास्थ्य पीड़ित होता है और जातक उम्र में बडे लोगों के द्वारा अपमानित होता है और मानसिक रूप से प्रताड़ित होता है।
उपाय:
(1) प्रतिदिन केसर का तिलक लगाएं।
(2) सोना पहनें।
(3) हमेशा घर में एक कुत्ता पालें (इससे आपकी संतान का बचाव होगा)।
(4) ससुराल वालों से अच्छे संबंध बनाकर रखें।

10. राहू का दसवें भाव में फल :
कुंडली का दसवां घर जिसे कर्म या विद्या भाव भी कहते हैं, ये जातक के कर्म यानि व्यवसाय व उसकी शिक्षा आदि के बारे में बताता है। सिर के ऊपर कुछ न पहनना दसम भाव में स्थित दुर्बल राहु का प्रभाव देता है। राहू का अच्छा या बुरा परिणाम शनि की स्थिति पर निर्भर करेगा। यदि शनि शुभ है तो जातक बहादुर, दीर्घायु, और अमीर होता है तथा उसे सभी प्रकार से सम्मान मिलता है।
यदि दसवें भाव में राहू चन्द्रमा के साथ हो तो यह राज योग बनाता है। जातक अपने पिता के लिए भाग्यशाली होता है। यदि यहां पर राहू अशुभ हो तो जातक की मां पर बुरा असर पडता है और जातक का स्वास्थ्य भी खराब होगा। यदि चंद्रमा चतुर्थ भाव में अकेला हो तो जातक की आंखों पर बुरा प्रभाव पडेगा। जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा और उसे किसी काले व्यक्ति के द्वारा धन हानि होगी।
उपाय:
(1) नीली या काली टोपी पहनें।
(2) सिर को ढक कर रखें।
(3) किसी मंदिर में 4 किलो या 400 ग्राम खांड चढाएं अथवा पानी में बहाएं।
(4) अंधे लोगों को खाना खिलाएं।

11. राहू का ग्यारहवें भाव में फल :
कुंडली का ग्यारहवां घर जिसे आय भाव भी कहा जाता हैं, ये जातक की आय से जुड़े कई राज बताता है। जानकारों के अनुसार ग्यारहवां घर शनि और बृहस्पति दोनों के प्रभाव में होता है। जब तक जातक के पिता जीवित हैं तब तक जातक अमीर होगा। वहीं पिता की मृत्यु के बाद जातक को गले में सोना पहनना चाहिए।
वैकल्पिक रूप से, बृहस्पति की वस्तुएं रखना सहयोगी सिद्ध होंगी। जातक के दोस्त अच्छे नहीं होंगे। उसे मतलबी लोगों से पैसा मिलेगा। यदि राहू के साथ नीच का मंगल ग्यारहवें भाव में हो तो जातक के जन्म के समय घर में सारी चीजें होंगी लेकिन धीरे धीरे करके सारी चीजें बरबाद होनें लगेंगी।
यदि ग्यारहवें भाव में अशुभ राहू हो तो जातक के अपने पिता सम्बंध ठीक नहीं होंगें यहां तक की जातक उन्हें मार भी सकता है। दूसरे भाव में स्थित ग्रह शत्रु की तरह कार्य करेंगे। यदि बृहस्पति या शनि तीसरे या ग्यारहवें भाव में हों तो शरीर में लोहा पहनें और चांदी की गिलास में पानी पिएं। पांचवें भाव में स्थित केतू बुरे परिणाम देगा। कान, रीढ़, मूत्र से संबंधित समस्याएं या रोग हो सकते हैं। केतु से संबंधित व्यापार में नुकसान हो सकता है।
उपाय:
(1) लोहा पहनें और पीने के पानी के लिए चांदी का गिलास का प्रयोग करें।
(2) कभी भी कोई बिजली का उपकरण उपहार के रूप में न लें।
(3) नीलम, हाथीदांत या हाथी का खिलौने से दूर रहें।
12. राहू का बारहवें भाव में फल :
कुंडली का बारहवां घर जिसे व्यय भाव भी कहा जाता हैं, ये बारहवां घर भी बृहस्पति से संबंधित माना जाता है। यह शयन सुख का घर होता है। यहां स्थित राहु मानसिक परेशानियां और अनिद्रा देता है। यह बहनों और बेटियों पर अत्यधिक व्यय भी करवाता है।
यदि राहु शत्रु ग्रहों के साथ हो तो आप कितनी भी मेहनत कर लें आपके खर्चे आपकी आमदनी से अधिक ही रहेंगे। यह झूठे आरोप भी लगवाता है। ऐसा जातक आत्महत्या की चरमसीमा तक जा सकता है। जातक मानसिक चिंताओं से घिरा रहता है। झूठ बोलना, दूसरों को धोखा आदि देना राहु को और भी हानिकर बानाता है। किसी भी नए काम की शुरुआत में अशुभ परिणाम मिलते हैं। चोरी, बामारी और झूठे आरोपों के लगने का भय रहता है। यदि यहां राहू के साथ मंगल भी हो तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।
उपाय:
(1) रसोई में बैठ कर ही भोजन करें।
(2) रात में अच्छी नींद के लिए तकिये के नीचे सौंफ और खांड रखें।

राहु ग्रह न होकर ग्रह की छाया है, हमारी धरती की छाया या धरती पर पड़ने वाली छाया। छाया का हमारे जीवन में बहुत असर होता है। ... इसी तरह ग्रहों की छाया का हमारे जीवन में असर होता है। राहु ग्रह हमारी बुद्धि का कारण है, लेकिन जो ज्ञान हमारी बुद्धि के बावजूद पैदा होता है उसका कारण राहु है।

राहु का नक्षत्र भ्रमण फल


पुराणों के अनुसार, असुरराज हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाह विप्रचिर्ती नामक दानव के साथ हुआ था। इन दोनों के योग से राहु का जन्म हुआ। जन्मजात शूर-वीर, मायावी राहु प्रखर बुद्धि का था। कहा जाता है कि उसने देवताओं की पंक्ति में बैठकर समुद्र मंथन से निकले अमृत को छल से प्राप्त कर लिया। लेकिन इस सारे घटनाक्रम को सूर्यदेव तथा चंद्रदेव देख रहे थे। उन्होंने सारा घटनाक्रम भगवान विष्णु को बता दिया। तब क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। किंतु राहु अमृतपान कर चुका था, इसलिए मरा नहीं, बल्कि अमर हो गया। उसके सिर और धड़ दोनों ही अमरत्व पा गए। उसके धड़ वाले भाग का नाम केतु रख दिया गया। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्र से शत्रुता रखते हैं और दोनों छाया ग्रह बनकर सूर्य व चंद्र को ग्रहण लगाकर प्रभावित करते रहते हैं।

कभी-कभी हम सोचते हैं कि हमारा राहु उच्च राशि में विराजमान है और हमें लाभ दे रहा है परन्तु नक्षत्रों के खेल में जब राहु जम जाता है तब उच्च का राहु भी हमें हानि पहुंचाने से नहीं चूकता है।

ज्योतिष शास्त्रों में राहु केतु को छाया ग्रह, तमो ग्रह, नैसर्गिक पाप ग्रह एवं सूर्य चन्द्र को ग्रहण लगाने वाला ग्रह माना गया है। राहु के मित्र बुध-शुक्र और शनि है केतु के मंगल सूर्य मित्र है वही मंगल-राहु का शत्रु सूर्य, चन्द्र , गुरू सम कहे गये है। राहु के दोष बुध दुर करता है। राहु का फल शनि वत है।

राहु तमो ग्रह होने से काली व बुरी वस्तुओं का स्वामी है- आलस्य, मलिनता कृशता, अवसाद आदि दोष राहु के माने जाते हैं चोरी, डकैती काला जादू, भूत प्रेत से कार्य कराने में राहु सक्षम है जन हानि में राहु का दोष माना जाता है।राहु का स्नेह प्रेम, सहयोग में बिलकुल यकिन नहीं इसे किसी प्रकार के बन्धन में बाधना भी सम्भव नहीं है, सामाजिक पारिवारिक, धार्मिक राजनैतिक व नैतिक सम्बन्धों में विरोधाभास स्थतियों को पैदा करने में राहु को गर्व महसूस होता है।

राहु प्रधान व्यक्ति अवमानना और अवज्ञा जैसे कार्य करने से पिछे नहीं हटते हैं।राहु स्वार्थी, सुख लिप्सा व उच्चाकांक्षा व्यक्ति के मन में उत्पन्न करता है राहु प्रधान वाले व्यक्ति सदैव अपने हित लाभ के विषय में ही सोचते हैं। राहु कि धातु शीशा है यह दक्षिण दिशा का स्वामी है।

 राहु को भौतिक सुख व महत्वाकाक्षी मानने के साथ-साथ कुन्डली में 3.6.10.11 भाव में शुभ माना गया है अन्य भावों में यह अनिष्टा प्रदान करता है। कुछ विद्वान राहु का गुरू व शुक्र के साथ सम्बन्धों का लाभ प्रद मानते हैं। आप अपनी जन्म कुन्डली में राहु के नक्षत्र का ज्ञान कर निम्न लिखित स्थितियों से अवगत हो सकते हैं कि राहु आपके लिये किस स्थितियों में विराजमान है।

सूर्य के नक्षत्र में स्थित राहु
सूर्य के नक्षत्र कृत्तिका, उत्तर फाल्गुनी या उत्तराषाढ़ा पर यदि राहु हो तो जातक को राहु की दशा या अंतर्दशा में उच्च ज्वर, हृदय रोग, सिर में चक्कर, शरीर में झुनझुनाहट, संक्रामक रोग, शत्रुवृद्धि धन हानि, गृह-कलह आदि का सामना करना पड़ता है। उसके मन में अपने भागीदारों के प्रति शंका रहती है। उसका स्थान परिवर्तन, दूर गमन, संक्रामक रोग आदि होते हैं। सूर्य, जो नक्षत्रेश है, के साथ राहु के होने तथा सूर्य के अशुभ 6, 8, 12 स्थान में होने से ऐसा होता है। लेकिन, सूर्य जब शुभ स्थिति में हो तो प्रोन्नति, राज लाभ, प्रसिद्धि, यश तथा नाम प्रतिष्ठा एवं सम्मान में वृद्धि होती है। सूर्य के साथ राहु होने से ग्रहण का योग का निर्माण होता है यदि 6, 8, 12 भाव में ये योग बने और दशा हो तो सर्वाधिक अनिष्ट की आशंका बनी रहती है।

चंद्र के नक्षत्र में स्थित राहु
चंद्र स्वयं अशुभ स्थिति 6, 8, 12 भाव में विराजमान हो और राहु उसके नक्षत्र में हो तो राहु के चंद्र के नक्षत्र रोहिणी, हस्त तथा श्रवण में अशुभ फल मिलता है। ऐसी स्थिति में जातक की जल में डूबने से मृत्यु, शीत रोग, टी. बी. या स्नोफिलियां हो सकता है। इसके अतिरिक्त पत्नी के रोग ग्रस्त होने या उसकी अकाल मृत्यु के साथ-साथ जातक के अंगों में सूजन अनचाहे स्थान पर स्थानांतरण राजभय की संभावना रहती है।
यदि राहु चन्द्र के साथ 6, 8, 12 भाव में विराजमान हो या किसी भी भाव में चन्द्रमा के साथ राहु के होने से ग्रहण योग का निर्माण होता है जो अशुभ माना गया है यदि मंगल साथ है तो कष्ट कुछ कम हो जाते हैं।

मंगल के नक्षत्र में राहु
राहु मंगल के नक्षत्र मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा पर होता है तो धन की हानि, अग्नि, चोर तथा डाकू के द्वारा नुकसान, मुकदमे में पराजय तथा पैसे की बर्वादी होती है। इस अवधि में किसी से शत्रुता, मित्र अथवा पार्टनर से धोखा मिलना, पुलिस या अन्य उच्चाधिकारी से विवाद आदि होते हैं। लेकिन मंगल यदि शुभ स्थिति में हो तो भूमि, भवन, और वाहन का लाभ, निर्माण कार्य, ठेकेदारी, बीमा, एजेंसी, जमीन जायदाद के कारोबार आदि से लाभ होता है।

बुध के नक्षत्र में राहु
राहु बुध के नक्षत्र आश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती पर हो तो व्यक्ति लोकप्रिय होता है, उसकी आय के कई साधन होते हैं, शासन सत्ता की प्राप्ति, दूर-दराज के लोगों से परिचय तथा उनके साथ कार्य करने की स्थिति बनती है। उसे संतान, वाहन आदि का सुख मिलता है। यदि बुध दुःस्थान 6, 8, 12 भाव में हो तो व्यक्ति को धोखेबाज, छली तथा कपटी बना देता है। उसकी बात पर लोग विश्वास नहीं करते। उसे थायरायड रोग भी हो सकता है।

बृहस्पति के नक्षत्र में राहु
राहु के बृहस्पति के नक्षत्र पुनर्वसु विशाखा या पूर्वभाद्र पर अवस्थित होने से शत्रु पर विजय और चुनाव में जीत होती है। इसके अतिरिक्त लक्ष्मी का आगमन, संतान की उत्पत्ति, परिवार में हर्ष, उल्लास, उमंग एवं सुख में वृद्धि आदि फल मिलते हैं। किंतु बृहस्पति के अशुभ भाव 6, 8, 12 या प्रभाव में होने पर व्यक्ति को अपमान, पराजय, संपत्ति की हानि, कार्य में बाधा बलात्कार जैसे आरोपों आदि का सामना करना पड़ता है।

शुक्र के नक्षत्र में राहु
राहु जब शुक्र के नक्षत्र भरणी, पूर्व फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ा पर हो तो वाहन तथा मूल्यवान और सुंदर वस्तुओं का क्रय सुंदर फर्नीचर आदि से घर की सज्जा, आभूषण आदि का क्रय, संबंधियों से मधुर संबंध, स्त्री सुख, धन-आगमन, आदि परिणाम मिलते हैं। कन्या संतान सुख भी इसी अवधि में होता है। लेकिन शुक्र अशुभ स्थिति 6, 8, 12 में हो तो किसी स्त्री के द्वारा ब्लैकमेलिंग, बलात्कार के आरोप यौन रोग, स्त्री के कारण धन की क्षति आदि की संभावना रहती है।

शनि के नक्षत्र में राहु
राहु जब शनि के नक्षत्र पुष्य, अनुराधा या उत्तरभाद्र पर हो तो व्यक्ति अपयश, चोट, किसी गंभीर रोग, गठिया या वात से पीड़ा, पित्तजन्य दोष आदि से ग्रस्त तथा मंदिरा का व्यसनी हो सकता है। अपने पार्टनर के प्रति उसके मन में गलतफहमी रहती है। उसके तलाक स्थान परिवर्तन आदि की संभावना भी रहती है।

राहु के नक्षत्र में राहु
यदि राहु अपने नक्षत्र आर्द्रा, स्वाति या शतभिषा पर हो तो व्यक्ति मानसिक कष्ट, विष भय, स्वास्थ्य में गिरावट, जोड़ों के दर्द, चोट, भ्रम, दुश्चिंताओं आदि से ग्रस्त होता है। इस अपधि में उसके परिवार में किसी बुजुर्ग की मृत्यू, जीवन संगिनी का वियोग होता है। इसके अतिरिक्त उसके स्थान परिवर्तन और अपयश की संभावना रहती है। किंतु यदि राहु शुभ ग्रह की महादशा के अंतकाल में होता है तो आनंद, प्रोन्नति तथा विदेश भ्रमण आदि सुयोग देता है।

केतु के नक्षत्र में राहु
राहु केतु के नक्षत्र अश्विनी, मघा या मूल में हो तो जातक शंकालु, स्वभाव का होता है। उदसे सांप का भय होता है और उसकी हड्डी के टूटने तथा बवासीर की संभावना रहती है। उसे जीवन साथी से परेशानी तथा बड़े लोगों से शत्रुता रहती है और उसके धन तथा प्रतिष्ठा की हानि होती है। यदि जन्मकुंडली में केतु की स्थिति अच्छी हो तो व्यक्ति बहुमूल्य आभूषणों की खरीदारी करता है और उसे विवाह, प्रोन्नति, भूमि-भवन आदि का सुख प्राप्त होता है।

राहु कि शान्ति के लिए ओंम भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवें नमः मंत्र का 18 हजार जप रात्रि के समय 4 माला प्रतिदिन करके 45 दिन में जप पूर्ण करना चाहिए उसके पश्चात दशांश से हवन राहु के हवन में दूर्वा घास की आहुतियां अवश्य देनी चाहिए। राहु का दान के- तिल काले, मूली, सरसों का तेल नीले या काले वस्त्र या कम्बल, कच्चा कोयला, सतनजा, गुरूवार शाम को दान हवन करना  है l

शिव आराधना अवश्य करें

और राहु से विशेष लाभ प्राप्त करने हेतु राहु स्तोत्र का पाठ करे

अस्य श्रीराहुस्तोत्रस्य वामदेव ऋषिः । गायत्री छन्दः । राहुर्देवता । राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥
राहुर्दानव मन्त्री च सिंहिकाचित्तनन्दनः । अर्धकायः सदाक्रोधी चन्द्रादित्यविमर्दनः ॥ १ ॥
रौद्रो रुद्रप्रियो दैत्यः स्वर्भानुर्भानुमीतिदः । ग्रहराजः सुधापायी राकातिथ्यभिलाषुकः ॥ २ ॥

कालदृष्टिः कालरुपः श्रीकष्ठह्रदयाश्रयः । विधुंतुदः सैंहिकेयो घोररुपो महाबलः ॥ ३ ॥
ग्रहपीडाकरो द्रंष्टी रक्तनेत्रो महोदरः । पञ्चविंशति नामानि स्मृत्वा राहुं सदा नरः ॥ ४ ॥
यः पठेन्महती पीडा तस्य नश्यति केवलम् । विरोग्यं पुत्रमतुलां श्रियं धान्यं पशूंस्तथा ॥ ५ ॥
ददाति राहुस्तस्मै यः पठते स्तोत्रमुत्तमम् । सततं पठते यस्तु जीवेद्वर्षशतं नरः ॥ ६ ॥ ॥
इति श्रीस्कन्दपुराणे राहुस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

इसके साथ राहु कवच का पाठ भी अत्यन्तलाभकारी है

राहुकवचम्
अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः ।
अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं I नमः शक्तिः ।
स्वाहा कीलकम्। राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।।
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ।।
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ।। १।।
निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः।
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ।। २ ।।
नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम।

जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ।। ३ ।।
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ ।
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ।।४ ।।
कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ।।५ ।।
गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ।।६ ।।
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो।
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ।।७ ।।
।।इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं ।।

नवार्ण मंत्र का जप महामृत्युंजय का जाप भगवान नारायण का मंत्र जब करने से भी जातक को लाभ प्राप्त होता है


रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
9926910965

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