महाभारत काल के महायुद्ध में वीर शिरोमणि महानायक महायोद्धा बर्बरीक का साक्ष्य आज भी मौजूद हैं
हरियाणा के हिसार ( वीर बरबरान ) मे एक पीपल का पेड़ है जिसको वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण भगवान के कहने पर अपने वाणों से छेदन किया था । आज भी इन पत्तो में छेद है । सबसे बड़ी बात ये है की जब इस पेड़ में नए पत्ते निकलते है तो उनमे भी छेद होता है । सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि, इसके बीज से उत्पन्न नए पेड़ के भी पत्तों में छेद होता है ।
यह पीपल का पेड़ महाभारत काल की घटना का प्रत्यक्ष प्रमाण है और जो लोग रामायण और महाभारत जैसी घटनाओं को काल्पनिक करार देते है एवं यह कहते है कि इन घटनाओं को मानने वाले लोग काल्पनिक दुनिया में जीते हैं, उन लोगों के लिए यह किसी जोरदार तमाचे से कम नहीं होगा ।
जिन्होंने थोड़ी भी महाभारत पढ़ी होगी उन्हें वीर बर्बरीक वाला प्रसंग जरूर याद होगा । उस प्रसंग में हुआ कुछ यूँ था कि महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था और भगवान श्री कृष्ण युद्ध में पाण्डवों के साथ थे । जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है, लेकिन जीत पाण्डवों की ही होगी ।
ऐसे समय में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया कि युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा । इसके लिए, बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किये थे । परन्तु, भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वे ब्राह्मण का वेष धारण करके बर्बरीक के मार्ग में आ गये ।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उत्तेजित करने हेतु उसका मजाक उड़ाया कि वह तीन बाणों से भला क्या युद्घ लड़ेगा ? कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण है और, वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है तथा, सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा । इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं अगर, अपने बाण से उसके सभी पत्तों को छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि तुम एक बाण से युद्ध का परिणाम बदल सकते हो ।
इस पर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके भगवान का स्मरण किया और बाण चला दिया । जिससे, पेड़ पर लगे पत्तों के अलावा नीचे गिरे पत्तों में भी छेद हो गया । इसके बाद वो दिव्य बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा क्योंकि, एक पत्ता भगवान ने अपने पैरों के नीचे दबाकर रखा था ।
भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि धर्मरक्षा के लिए इस युद्ध में विजय पाण्डवों की होनी चाहिए और, माता को दिये वचन के अनुसार अगर बर्बरीक कौरवों की ओर से लड़ेगा तो अधर्म की जीत हो जाएगी ! इसलिए, इस अनिष्ट को रोकने के लिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की ।
जब बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया । तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया । जिससे बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है और, बर्बरीक ने ब्राह्मण से वास्तविक परिचय माँगा तब श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वह कृष्ण हैं ।
सच जानने के बाद भी बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह उनके विराट रूप को देखना चाहता है तथा, महाभारत युद्ध को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है ! भगवान ने बर्बरीक की इच्छा पूरी करते हुए, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया जहाँ से बर्बरीक के सिर ने पूरा युद्घ देखा ।
ये सारी घटना आधुनिक वीर बरबरान नामक जगह पर हुई थी जो हरियाणा के हिसार जिले में हैं ! अब ये जाहिर सी बात है कि इस जगह का नाम वीर बरबरान वीर बर्बरीक के नाम पर ही पड़ा है ।
फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये।
महाभारत युद्ध की समाप्ति पर पाण्डवों में ही आपसी विवाद होने लगा कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है? श्री कृष्ण ने उनसे कहा बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है? सभी इस बात से सहमत हो गये और पहाड़ी की ओर चल पड़े, वहाँ पहुँचकर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि श्री कृष्ण ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उपस्थिति, युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो शत्रु सेना को काट रहा था। महाकाली, कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं।
श्री कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि उस युग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है।
उनका शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफ़नाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर १७२० ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर इस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया गया था। मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बना है। खाटूश्याम, परिवारों की एक बड़ी संख्या के कुलदेवता है।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
9926910965
हरियाणा के हिसार ( वीर बरबरान ) मे एक पीपल का पेड़ है जिसको वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण भगवान के कहने पर अपने वाणों से छेदन किया था । आज भी इन पत्तो में छेद है । सबसे बड़ी बात ये है की जब इस पेड़ में नए पत्ते निकलते है तो उनमे भी छेद होता है । सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि, इसके बीज से उत्पन्न नए पेड़ के भी पत्तों में छेद होता है ।
यह पीपल का पेड़ महाभारत काल की घटना का प्रत्यक्ष प्रमाण है और जो लोग रामायण और महाभारत जैसी घटनाओं को काल्पनिक करार देते है एवं यह कहते है कि इन घटनाओं को मानने वाले लोग काल्पनिक दुनिया में जीते हैं, उन लोगों के लिए यह किसी जोरदार तमाचे से कम नहीं होगा ।
जिन्होंने थोड़ी भी महाभारत पढ़ी होगी उन्हें वीर बर्बरीक वाला प्रसंग जरूर याद होगा । उस प्रसंग में हुआ कुछ यूँ था कि महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था और भगवान श्री कृष्ण युद्ध में पाण्डवों के साथ थे । जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है, लेकिन जीत पाण्डवों की ही होगी ।
ऐसे समय में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया कि युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा । इसके लिए, बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किये थे । परन्तु, भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वे ब्राह्मण का वेष धारण करके बर्बरीक के मार्ग में आ गये ।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उत्तेजित करने हेतु उसका मजाक उड़ाया कि वह तीन बाणों से भला क्या युद्घ लड़ेगा ? कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण है और, वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है तथा, सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा । इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं अगर, अपने बाण से उसके सभी पत्तों को छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि तुम एक बाण से युद्ध का परिणाम बदल सकते हो ।
इस पर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके भगवान का स्मरण किया और बाण चला दिया । जिससे, पेड़ पर लगे पत्तों के अलावा नीचे गिरे पत्तों में भी छेद हो गया । इसके बाद वो दिव्य बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा क्योंकि, एक पत्ता भगवान ने अपने पैरों के नीचे दबाकर रखा था ।
भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि धर्मरक्षा के लिए इस युद्ध में विजय पाण्डवों की होनी चाहिए और, माता को दिये वचन के अनुसार अगर बर्बरीक कौरवों की ओर से लड़ेगा तो अधर्म की जीत हो जाएगी ! इसलिए, इस अनिष्ट को रोकने के लिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की ।
जब बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया । तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया । जिससे बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है और, बर्बरीक ने ब्राह्मण से वास्तविक परिचय माँगा तब श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वह कृष्ण हैं ।
सच जानने के बाद भी बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह उनके विराट रूप को देखना चाहता है तथा, महाभारत युद्ध को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है ! भगवान ने बर्बरीक की इच्छा पूरी करते हुए, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया जहाँ से बर्बरीक के सिर ने पूरा युद्घ देखा ।
ये सारी घटना आधुनिक वीर बरबरान नामक जगह पर हुई थी जो हरियाणा के हिसार जिले में हैं ! अब ये जाहिर सी बात है कि इस जगह का नाम वीर बरबरान वीर बर्बरीक के नाम पर ही पड़ा है ।
फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये।
महाभारत युद्ध की समाप्ति पर पाण्डवों में ही आपसी विवाद होने लगा कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है? श्री कृष्ण ने उनसे कहा बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है? सभी इस बात से सहमत हो गये और पहाड़ी की ओर चल पड़े, वहाँ पहुँचकर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि श्री कृष्ण ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उपस्थिति, युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो शत्रु सेना को काट रहा था। महाकाली, कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं।
श्री कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि उस युग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है।
उनका शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफ़नाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर १७२० ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर इस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया गया था। मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बना है। खाटूश्याम, परिवारों की एक बड़ी संख्या के कुलदेवता है।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
9926910965
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