श्रावण मास में दोनों शनि प्रदोष है इस सावन में अद्भुत सयोंग बन रहा है करे शिवार्चन ओर शनि मंत्र स्तोत्र पाठ कर पाये अनंत गुना लाभ
पौराणिक तथ्य है कि 'एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा. उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है.इस व्रत को करने से मनुष्य पापों से मुक्त हो मोक्ष प्राप्त कर मृत्योपरांत शिव के लोक में जाकर सदा वहीं वास करता है। इस बार सावन मास में प्रदोष व्रत शनिवार को है इसलिए इस दिन व्रत करने से समस्त सुख के साथ संतान प्राप्ति की मनोकामना जल्द ही पूर्ण होगी।
सावन मास में शनिवार का विशेष महत्व है
शनिवार के दिन शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए फलदायी बताया गया है. हर व्यक्ति पर कभी न कभी शनि की दशा जरूर आती है. हर तीस साल में शनि सभी राशियों में अपना भ्रमण चक्र पूरा करते हैं. इस तरह से शनि एक राशि में करीब ढाई साल तक रहते हैं. 24 जनवरी 2020 से शनि मकर राशि में गोचर हैं. धनु, मकर और कुंभ वालों पर शनि साढ़े साती चल रही है तो वहीं मिथुन और तुला वालों पर शनि ढैय्या चल रही है. जानिए सावन शनिवार के खास उपाय जो शनि दोषों से दिला सकते हैं मुक्ति…
श्रावण मास के शनिवार को नृसिंह भगवान, शनिदेव, हनुमान जी के साथ महादेव शिव शंकर की पूजा करनी चाहिए. श्रावण मास में दोनों प्रदोष पर शनिवार होने के कारण शनि प्रदोष व्रत पूजा का भी विशेष महत्व रहेगा. शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे काली बाती बनाकर सरसों तेल का दीप जलाएं. पीपल को जल और काली चिंटियों गुड़ खिलाएं तो शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है.
हनुमान चालीसा का पाठ करें
हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें. हनुमान चलीसा का पाठ करने से शनिदेव के प्रकोप कम होता है. अगर आप ढैया या साढे साती से गुजर रहे हैं और शनि द्वारा दिए कष्टों से पीड़ित हैं, तो हनुमान चालीसा का जाप करें. हनुमान चलीसा का नियमित पाठ करने पर शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है.
श्रावण मास के शनिवार
18 जुलाई – शनि प्रदोष व्रत
25 जुलाई – नाग पंचमी/कल्कि जयंती
01 अगस्त – शनि प्रदोष व्रत
सावन का महीना यूं भी शिवभक्तों के लिए महत्वपूर्ण और श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। लेकिन इस पर भी कुछ ऐसे संयोग बन जाते हैं जो सावन के कुछ खास दिनों को और भी खास बना देते हैं। ऐसा ही खास दिन बन गया है सावन का दूसरा शनिवार जो 18 जुलाई को है।
इस बार 18 जुलाई दिन शनिवार को कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि है। कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के बारे में कहा जाता है कि इस दिन शिवजी की पूजा भक्ति करने वाले की मुराद शिवजी बहुत ही जल्दी पूरी करते हैं। लेकिन सोने पर सुहागा तो तब हो जाता है जब यह त्रयोदशी तिथि शनिवार को लग जाए। शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि लग जाने पर यह शनि प्रदोष व्रत कहलाता है। शनि प्रदोष व्रत का धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्व है।
स्कन्द पुराण में शनि प्रदोष व्रत की कथा का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षाटन कर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया। लेकिन वह नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है। दरअसल वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था, जिसे शत्रुओं ने उसके राज्य से बाहर कर दिया था। एक भीषण युद्ध में शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। जिसके बाद उसकी माता की भी मृत्यु हो गई। नदी किनारे बैठा वह बालक उदास लग रहा था, इसलिए ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
जिसके बाद राजकुमार भी उसके साथ अति प्रसन्न था। कुछ समय के बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी मुलाकात ऋषि शाण्डिल्य से हुई। शाण्डिल्य उस वक्त के प्रतापी ऋषि थे, जिन्हें हर कोई मानता था। ऋषि ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे। राजा तो युद्ध में मारे गए लेकिन बाद में उनकी रानी यानी कि उस बालक की माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। यह सुन ब्राह्मणी बेहद दुखी हुई, लेकिन तभी ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। सभी ने ऋषि द्वारा बताए गए पूर्ण विधि-विधान से ही व्रत सम्पन्न किया, लेकिन वह नहीं जानते थे कि यह व्रत उन्हें क्या फल देने वाला है।
शनि प्रदोष व्रत वर्ष में कभी भी आए तो इसका फल अन्य प्रदोष व्रत से अधिक होता है लेकिन सावन में अगर प्रदोष व्रत शनिवार को मिल जाए तो इसे छोड़ना नहीं चाहिए। इस दुर्लभ संयोग का लाभ उठाकर व्रत करना चाहिए, अगर व्रत करना संभव ना हो तब इस दिन पीपल को जल जरूर देना चाहिए और भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।
शनि प्रदोष व्रत का लाभ
शनि प्रदोष के दिन भगवान शिव और पीलल को जल देने का फल अपार बताया गया है। ब्रह्मपुराण के खंड 7 में कहा गया है कि शनिवार के दिन पीपल का के वृक्ष का स्पर्श करके जो व्यक्ति 108 बार ओम नम: शिवाय मंत्र का जप करता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। शनि दोष की पीड़ा और जीवन में चल रही कठिनाइयों से भी व्यक्ति पार पा जाता है।
ऐसे बचें शनि की साढ़े साती से
शराब तथा अन्य नशे से दूरे रहें
किसी परस्त्री के साथ रिश्ता न रखें
किसी का दिल न दुखाएं
महिलाओं का आदर करें
सुबह जल्दी उठकर भगवान का ध्यान करें
परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिल जुलाकर रहें
भैरवजी की उपासना करें और शाम के समय काले तिल के तेल का दीपक लगाकर शनि दोष से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें
किसी धार्मिक कार्यक्रम में ईधन जैसे लकड़ी, कोयला आदि दान करने से शनि का बुरा प्रभाव टल जाता हैं
समय समय पर शनि मंदिर में दान करें.
इन मंत्रों का करें जाप
श्री नीलान्जन समाभासं ,रवि पुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम ।।
शनि को प्रसन्न करने के लिए शनि वैदिक मंत्र
‘ओम शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु न:’
शं शनैश्चराय नमः
ॐ शं शनैश्चरायै नम:
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सं: शनिश्चराय नम
का जाप करें
शिव सहस्त्रनाम या शिव के पंचाक्षरी मंत्र का पाठ करें. भगवान शिव का पंचाक्षर मन्त्र ‘नमः शिवाय’ है. इसी मन्त्र के ॐ लगा देने पर यह षडक्षर मन्त्र ‘ॐ नम: शिवाय’ हो जाता है.
श्रावण शनिवार के दिन तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें काले तिल डालकर शिवलिंग पर अर्पित करें. ऐसा करने से व्यक्ति को शनि से मिलने वाले कष्टों में कमी आएगी.
शिव आराधना के साथ करे शनि स्तोत्र पाठ
शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च। नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
दशरथकृत शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
श्रावण मास में शिव की उपासना करते समय निम्न मंत्र जप कल्याण कारी है
ॐ जुं स:
ॐ हौं जूं स:
ॐ ह्रीं नम: शिवाय
ॐ ऐं नम: शिवाय
ॐ पार्वतीपतये नमः
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय
ॐ नमोः भगवते रुद्राय और
महामृत्युंजय गायत्री मंत्र :-
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ
रूद्र गायत्री मंत्र : –
ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
आदि मंत्र जप बहुत महत्व्यपूर्ण माना गया है।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
9926910965
पौराणिक तथ्य है कि 'एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा. उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है.इस व्रत को करने से मनुष्य पापों से मुक्त हो मोक्ष प्राप्त कर मृत्योपरांत शिव के लोक में जाकर सदा वहीं वास करता है। इस बार सावन मास में प्रदोष व्रत शनिवार को है इसलिए इस दिन व्रत करने से समस्त सुख के साथ संतान प्राप्ति की मनोकामना जल्द ही पूर्ण होगी।
सावन मास में शनिवार का विशेष महत्व है
शनिवार के दिन शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए फलदायी बताया गया है. हर व्यक्ति पर कभी न कभी शनि की दशा जरूर आती है. हर तीस साल में शनि सभी राशियों में अपना भ्रमण चक्र पूरा करते हैं. इस तरह से शनि एक राशि में करीब ढाई साल तक रहते हैं. 24 जनवरी 2020 से शनि मकर राशि में गोचर हैं. धनु, मकर और कुंभ वालों पर शनि साढ़े साती चल रही है तो वहीं मिथुन और तुला वालों पर शनि ढैय्या चल रही है. जानिए सावन शनिवार के खास उपाय जो शनि दोषों से दिला सकते हैं मुक्ति…
श्रावण मास के शनिवार को नृसिंह भगवान, शनिदेव, हनुमान जी के साथ महादेव शिव शंकर की पूजा करनी चाहिए. श्रावण मास में दोनों प्रदोष पर शनिवार होने के कारण शनि प्रदोष व्रत पूजा का भी विशेष महत्व रहेगा. शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे काली बाती बनाकर सरसों तेल का दीप जलाएं. पीपल को जल और काली चिंटियों गुड़ खिलाएं तो शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है.
हनुमान चालीसा का पाठ करें
हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें. हनुमान चलीसा का पाठ करने से शनिदेव के प्रकोप कम होता है. अगर आप ढैया या साढे साती से गुजर रहे हैं और शनि द्वारा दिए कष्टों से पीड़ित हैं, तो हनुमान चालीसा का जाप करें. हनुमान चलीसा का नियमित पाठ करने पर शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है.
श्रावण मास के शनिवार
18 जुलाई – शनि प्रदोष व्रत
25 जुलाई – नाग पंचमी/कल्कि जयंती
01 अगस्त – शनि प्रदोष व्रत
सावन का महीना यूं भी शिवभक्तों के लिए महत्वपूर्ण और श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। लेकिन इस पर भी कुछ ऐसे संयोग बन जाते हैं जो सावन के कुछ खास दिनों को और भी खास बना देते हैं। ऐसा ही खास दिन बन गया है सावन का दूसरा शनिवार जो 18 जुलाई को है।
इस बार 18 जुलाई दिन शनिवार को कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि है। कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के बारे में कहा जाता है कि इस दिन शिवजी की पूजा भक्ति करने वाले की मुराद शिवजी बहुत ही जल्दी पूरी करते हैं। लेकिन सोने पर सुहागा तो तब हो जाता है जब यह त्रयोदशी तिथि शनिवार को लग जाए। शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि लग जाने पर यह शनि प्रदोष व्रत कहलाता है। शनि प्रदोष व्रत का धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्व है।
स्कन्द पुराण में शनि प्रदोष व्रत की कथा का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षाटन कर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया। लेकिन वह नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है। दरअसल वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था, जिसे शत्रुओं ने उसके राज्य से बाहर कर दिया था। एक भीषण युद्ध में शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। जिसके बाद उसकी माता की भी मृत्यु हो गई। नदी किनारे बैठा वह बालक उदास लग रहा था, इसलिए ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
जिसके बाद राजकुमार भी उसके साथ अति प्रसन्न था। कुछ समय के बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी मुलाकात ऋषि शाण्डिल्य से हुई। शाण्डिल्य उस वक्त के प्रतापी ऋषि थे, जिन्हें हर कोई मानता था। ऋषि ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे। राजा तो युद्ध में मारे गए लेकिन बाद में उनकी रानी यानी कि उस बालक की माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। यह सुन ब्राह्मणी बेहद दुखी हुई, लेकिन तभी ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। सभी ने ऋषि द्वारा बताए गए पूर्ण विधि-विधान से ही व्रत सम्पन्न किया, लेकिन वह नहीं जानते थे कि यह व्रत उन्हें क्या फल देने वाला है।
शनि प्रदोष व्रत वर्ष में कभी भी आए तो इसका फल अन्य प्रदोष व्रत से अधिक होता है लेकिन सावन में अगर प्रदोष व्रत शनिवार को मिल जाए तो इसे छोड़ना नहीं चाहिए। इस दुर्लभ संयोग का लाभ उठाकर व्रत करना चाहिए, अगर व्रत करना संभव ना हो तब इस दिन पीपल को जल जरूर देना चाहिए और भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।
शनि प्रदोष व्रत का लाभ
शनि प्रदोष के दिन भगवान शिव और पीलल को जल देने का फल अपार बताया गया है। ब्रह्मपुराण के खंड 7 में कहा गया है कि शनिवार के दिन पीपल का के वृक्ष का स्पर्श करके जो व्यक्ति 108 बार ओम नम: शिवाय मंत्र का जप करता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। शनि दोष की पीड़ा और जीवन में चल रही कठिनाइयों से भी व्यक्ति पार पा जाता है।
ऐसे बचें शनि की साढ़े साती से
शराब तथा अन्य नशे से दूरे रहें
किसी परस्त्री के साथ रिश्ता न रखें
किसी का दिल न दुखाएं
महिलाओं का आदर करें
सुबह जल्दी उठकर भगवान का ध्यान करें
परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिल जुलाकर रहें
भैरवजी की उपासना करें और शाम के समय काले तिल के तेल का दीपक लगाकर शनि दोष से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें
किसी धार्मिक कार्यक्रम में ईधन जैसे लकड़ी, कोयला आदि दान करने से शनि का बुरा प्रभाव टल जाता हैं
समय समय पर शनि मंदिर में दान करें.
इन मंत्रों का करें जाप
श्री नीलान्जन समाभासं ,रवि पुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम ।।
शनि को प्रसन्न करने के लिए शनि वैदिक मंत्र
‘ओम शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु न:’
शं शनैश्चराय नमः
ॐ शं शनैश्चरायै नम:
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सं: शनिश्चराय नम
का जाप करें
शिव सहस्त्रनाम या शिव के पंचाक्षरी मंत्र का पाठ करें. भगवान शिव का पंचाक्षर मन्त्र ‘नमः शिवाय’ है. इसी मन्त्र के ॐ लगा देने पर यह षडक्षर मन्त्र ‘ॐ नम: शिवाय’ हो जाता है.
श्रावण शनिवार के दिन तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें काले तिल डालकर शिवलिंग पर अर्पित करें. ऐसा करने से व्यक्ति को शनि से मिलने वाले कष्टों में कमी आएगी.
शिव आराधना के साथ करे शनि स्तोत्र पाठ
शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च। नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
दशरथकृत शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
श्रावण मास में शिव की उपासना करते समय निम्न मंत्र जप कल्याण कारी है
ॐ जुं स:
ॐ हौं जूं स:
ॐ ह्रीं नम: शिवाय
ॐ ऐं नम: शिवाय
ॐ पार्वतीपतये नमः
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय
ॐ नमोः भगवते रुद्राय और
महामृत्युंजय गायत्री मंत्र :-
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ
रूद्र गायत्री मंत्र : –
ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
आदि मंत्र जप बहुत महत्व्यपूर्ण माना गया है।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
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