आज भी 5000 साल पुरानी श्री कृष्ण महाराज की लीला का साक्षी हैं ये वन क्षेत्र

पांच हजार साल पुरानी परंपरा को जीवंत किए  हैं  गहवर वन

अजय विद्यार्थी:डीग/बरसाना : यहां अनेक स्थानों पर प्रिय प्रीतम ने रास रचाया था   गहवन में आज भी उसी परंपरा को जीवंत किए हुए हैं ।
डेढ सौ बालिकाएं गहवन .आज भी 5000 साल पुरानी श्री कृष्ण महाराज की लीला का साक्षी हैं ।
 यहां विरक्त संत रमेश बाबा पिछले 32 वर्षों से नियमित महाराज की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं ।
. यूं तो भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज क्षेत्र में अनेक जगहों पर गोपियों के साथ महाराज किया था अब केवल गहवन ही एक मात्र ऐसा स्थान है जहां करीब डेढ़ सौ बालिका प्रतिदिन शाम 6:00 से 7:00 बजे तक गोपियों को वेशभूषा में आंखें बंद कर श्रीकृष्ण को याद करते हुए नृत्य करती हैं ।
ब्रज की जगहो पर साल मे द्वापर युग
के अनुसार ही लीलाओं का आयोजन होता है ।


श्री कृष्ण भक्ति में लीन 150 बालिकाएं आंखे बंद कर करती हैं नृत्य

 विरक्त संत रमेश बाबा ने बताया कि रास का विस्तृत रूप महारास है ब्रज में 32 जगहों पर महाराज का वर्णन है ।
इसमें गहवर वन , बरसाना, सांखर ; खोरी, विलास गढ,मान गढ़ ,दान गढ़ करेहला , मडोई ,सकेत वन , रावण वन . पाडर वन रास वन, कांदब खंडी ; आदि स्थान प्रमुख है ।
 यहां पहले रास मंडलों द्वारा जांच के जरिए भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का मंचन किया जाता था I
जब श्री कृष्ण बहुत सारी गोपियों के साथ नृत्य करते हैं तो वह महारास कहलाने लगा ।



कई प्रांतों की बालिकाएं करती हैं महारास |
- - - - - -

गहवर वन महारास मे अलग अलग प्रांतों की बालिकाएं अपने आराध्या श्री कृष्ण के लिए एक माला के मोती की भांति कृष्ण मय हो जाती हैं । गोपियों की भांति नृत्य करती हैं । मान मंदिर में चौरासी कोस की परिक्रमा और देश भर में धर्म जागरण के लिए प्रचार प्रसार से प्रभावित होकर और महारास से प्रेरित होकर बालिकाएं मान मंदिर से जुड़ रही हैं ।
यहां बालिकाओं के आवास की अलग से व्यवस्था है ।

Post a Comment

0 Comments