मेजर ध्यानचंद खेलरत्न पुरस्कार पर लगी मोहर : माईकल सैनी
गुरुग्राम: देशवासियों की वर्षो से लंबित माँग को आखिरकार अमलीजामा पहना ही दिया गया आज मोदी सरकार द्वारा जो स्वागत योग्य सराहनीय कदम है हम इसकी प्रशंसा करते हैं यह निर्णय जो आज लिया गया है उसे बहुत पहले ही ले लिया जाना चाहिए था मगर मोदी जी की दूरगामी सोच और उचित समय के चयन करने की क्षमता का कोई सानी नहीं उन्हें यह भली-भांति ज्ञात रहता है कि कब किस महान व्यक्तित्व (हस्ती ) को महत्व देना है स्मर्ण रखना है और कब भूल जाना है तथा कब किसकी मूर्ति को सबसे ऊंचा उठाकर किसे नीचा दिखाना है सब जानते हैं मोदी जी सरदार सरोवर डैम पर बनी सरदार पटेल जी की विशालकाय मूर्ति को ही देख लीजिए और भी अनेकों उदाहरण पूर्व में प्रस्तुत किए जा चुके हैं मोदी जी के द्वारा , ऐसे निर्णय वह चुनावों के समय ही अधिकतर लेते दिखाई दिए हैं !
हम यह हर्गिज नहीं कह रहे हैं कि उप्र चुनावों के मद्देनजर लिया गया निर्णय है लेकिन इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता है चूँकि मेजर ध्यानचंद जी यूपी के प्रयागराज से आते थे और यूपी में ही चुनावी बिसातें बिछाई जा रही हैं फिर चाहें योगी कैबिनेट का विस्तार करने के नाम पर पिछड़ी जातियों व एससीएसटी वर्ग के विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल कर दिखाया जाना हो वोटों के धुर्वीकरण वास्ते क्योंकि उप्र में पार्टी की हालत बेहद खराब है भाजपा की हार मुहबाहे खड़ी है इसलिए भाजपा शाम दाम दंड भेद वाली नीतियाँ अपनाए या जातिगत रँग दे और या फिर कट्टर धार्मिकता को जन्म देकर चुनाव जीतने का प्रयास तो करेगी - तथा मेजर ध्यानचंद खेलरत्न पुरस्कार का नामकरण करना भी इसी ओर इंगित करता है ।
कारण चुनावी राज्यों में चुनावों से ठीक पहले वहाँ के महापुरुषों के बारे में अध्ययन करना उनके नाम पर योजनाओं की घोषणा करना फिर उनका प्रचार करना तथा जहाँ जिस जाती, धर्म की वोटों की बहुतायत होती है उन्हीं के महापुरुषों की तारीफ करना सम्मान देकर वोटों को प्रभावित करना मोदी जी का कार्य रहा है !
पश्चिम बंगाल में रह रहे मतुआ समाज के दो करोड़ लोगों को प्रभावित करने के लिए जो 50 सीटों को प्रभावित करते हैं उनके आराध्य मतुआ देव ठाकुर मन्दिर में माथा टेकने पहुंच गए थे मोदी जी पश्चिम बंगाल में पहले चरण में 30 सीटों पर चल रहे मतदान के दिन दूसरे चरण की तैयारियों के लिए वो भी बांग्लादेश मुक्ति दिवस की50वीं वर्षगांठ के अवसर पर और जहां उनके श्रीमुख से निकल गया था कि वह जेल भी गए थे - जो एक हास्यास्पद बयान भी साबित हुआ था खैर उनकी माया वही जाने ....।
चर्चाएं तो यह भी हैं कि छत्तीसगढ़ जाने पर उन्हें बिरसा मुंडा याद आ जाते हैं तो राजस्थान में महाराणा प्रताप याद आते हैं तो वहीं सटते राज्य महाराष्ट्र में वीर शिवाजी महाराज का स्मर्ण हो उठता है केरल में शबरीमाला याद रह जाता है पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह जी की याद आ जाती है तथा लेह-लद्दाख में दलाई लामा जी के साथ उनके संघर्षों में उनके संग बिताए पल याद आ जाते हैं तो बिहार में कर्पूरी ठाकुर जी को नहीं भूलते है रही पश्चिम बंगाल की बात तो सुभाष चंद्र बोस को कैसे ना याद करें वहीं की एक और महान विभूति रहे श्री रविन्द्र नाथ टैगोर जी से तो इतने प्रभावित हुए कि उन्ही की नकल करके दाढ़ी रखे हुए हैं यानी उनके जैसा ही दिखना भी चाहते हैं । खैर सवाल तो यह है कि जहाँ जिस राज्य में चुनाव होते वहीं की महान सख्सियतों को सम्मान चुनावों के ठीक पहले या चुनावों के दौरान ही क्यों देते हैं मोदी जी उससे पहले या बाद में क्या वैसे ही भूल जाते हैं जैसे जहां पहले चुनाव सम्पन्न हो चुके होते हैं उन्हें भूल गए , क्या मुड़कर देखा महापुरुषों के परिजनों को कभी के दो वक़्त की रोटी भी नसीब है कि नहीं , कभी उनके जीवन को सवारने की चेतना लोटी मोदी जी की और नहीं तो क्यों नहीं लोटी ?
तरविंदर सैनी (माईकल ) नेता आम आदमी पार्टी गुडगांवा का मानना है कि मोदी सरकार और भाजपा को अपनी राजनीति की चिंता रहती है और किसी के बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है इन्हें , रही बात सम्मान करने की तो जरूरत के हिसाब से करते हैं जरूरत खत्म सम्मान खत्म वाली नीति पर चलती है भाजपा ।
0 Comments