One line Review of #The_Kashmeer_Files ...
देश की तकदीर वही बदल सकता है, जिसके पास पावर हो।।।।
अब विस्तार से:-
मैं इस फ़िल्म के बारे में सब कुछ बिल्कुल साफ तौर पर बोलना चाहूँगा। फ़िल्म कश्मीर फाइल्स के शीर्षक में ही एक संदेश छिपा हुआ है, यह इतिहास की फ़ाइल में दबे हुए नरसंघार और अत्याचार के रक्तरंजित पन्नों को हिम्मत के साथ पलट कर आम जनता के समक्ष परोस देने जैसा है। मेरी नज़र में कश्मीर फाइल्स सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं, यह जज़्बा है उन कश्मीरी पंडितों की दर्द से कराहती हुई चीखों की इतिहास में गुम हो चुकी उस उत्कंठित आवाज़ को उठाने का, जिस आवाज़ को अभी तक शायद ही किसी निर्देशक ने उठाने की कोशिश की हो।
हम इंसान अपनी सुविधाओं के साथ अपने घरों में रहते हैं पर इंसानियत कहाँ रहती है ये कोई नहीं जानना चाहता, और जो यह जानने का प्रयास करता है या जान लेता है बस तथाकथित "प्रोपेगेंडा" शब्द को उसके जीवन के साथ ऐसे जोड़ दिया जाता है जैसे कि चोली दामन का साथ।
दोस्तों मैं इस फ़िल्म के किरदारों या अभिनेताओं एवं अभिनेत्रियों के बारे में क्या ही कहूँ, सिर्फ इतना ही कहूंगा कि ये भारत की अविश्वसनीय अकल्पनीय एवं असहनीय पीड़ा का एक हिस्सा मात्र है। मैंने इस महान फ़िल्म में अभिनेताओं को ना देख कर निर्देशक द्वारा दिखाए गए कश्मीर में हुए हर उस वाकिये को देखा, जिसमे क़तरा क़तरा कश्मीर का खून बहाया गया, कश्मीर के वजूद से खिलवाड़ किया गया। आज़ाद भारत में भी अपने अपने घरों में रह रहे लोगों को उन्ही के घरों से निकाल दिया गया। वहाँ के निर्दोष लोगों पर बिना किसी दयनीयता के तमाम अत्याचार किये गए, बच्चियों और युवा लड़कियों के साथ रेप किये गए ये भारत की आबरू से किये गए खिलवाड़ को सबके सामने लाने जैसा ही है।
लगभग 30-32 साल पहले के वक़्त में शुरू हुई
फ़िल्म की कहानी में शुरुआत से अंत तक के सफ़र का पता ही नहीं चलता कि कब फ़िल्म शुरू होकर खत्म हो गयी, बस रह जाता है तो निःशब्द सा रुदन एवं हृदयविदारक जज़्बात जो कि बहुत से दर्शकों के आँसुओं के माध्यम से बाहर आजाता है।
घाटी में जो घटा उसे सुनना, पर्दे पर देखना, और वास्तविकता में महसूस करना, इन तीनों में क्या फ़र्क है यह समझाने की सफल कोशिश में फ़िल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री के द्वारा की गई रिसर्च का भी बहुत बड़ा योगदान है।
फ़िल्म में एक संवाद आता है कि:-
तुमने अब तक कितने लोगों का कत्ल किया है?
लगभग 20 25।
अगर वो लोग तुमसे तुम्हारे भाई को मारने को कहते तो क्या कर देते??
कितना जिहाद से भरा हुआ जवाब दिया गया "हाँ मार देते"। इसी के आगे माँ के बारे में पूछे जाने पर भी ये ही जवाब।
मैं स्तब्ध था इस सब को देख कर, इस सब को सोचकर।
स्तब्धता ये नहीं कि अपने भाई अपनी माँ को मार डालने को भी तैयार, स्तब्धता ये थी कि वो अल्लाह के नाम पर इतना जिहाद करने को तैयार हैं तो जिहाद मामूली सा एक शब्द कैसे हो सकता है।
जितने भी अभिनेताओं एवं अभिनेत्रियों ने इस फ़िल्म में अभिनय किया है, उन सभी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं। निर्देशक विवेक अग्निहोत्री साहब को देशभक्ति से भरपूर सलाम एवं पूरे जोश के साथ बोल सकता हूँ कि यह फ़िल्म पूर्णतः विवेक रंजन अग्निहोत्री की ही है।
Honest Review by
Dr. ArMann Raaz Aaditya
Music Composer & Trainer
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