-पृथ्वी को बचाने के लिए हम सबको करने होंगे प्रयास
-दिन-प्रतिदिन विषैली गैसों, पर्यावरण प्रदूषण से खराब हो रही है पृथ्वी
-इस बार पृथ्वी दिवस पर हमारी पृथ्वी में निवेश करें रखा गया है थीम
गुरुग्राम। हमने बचपन से ही यह सुना और समझा है कि धरती हमारी मां है या धरती माता है। हम धरती माता को नमन करके आगे बढ़ते हैं। लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि जिस धरती पर रहकर हम सुख-सुविधाएं भोग रहे हैं, उसकी आज हालत क्या है। अपने प्रयासों से हमें पृथ्वी में सुधार करना है। यह बात उन्होंने शुक्रवार को विश्व पृथ्वी दिवस पर यहां नई बस्ती वाल्मीकि मंदिर के पास आयोजित कार्यक्रम में कही।
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इससे पूर्व नवीन गोयल ने नई बस्ती क्षेत्र में ईशू वाल्मीकि, सुल्तान वाल्मीकि, रिंकू वाल्मीकि, जुगेश कुमार, कुलदीप खेरालिया, राजकुमार खेरालिया, सुरेंद्र गहचंड, रमेश कुमार, ज्ञानेश्वर, सुशील सौदा, वीरभान, ईशु खेरालिया, गोपाल, मनीष सौदा, बहादुर, ब्रह्मप्रकाश, राजेंद्र सौदा, महेंद्र पंडित, सूरज खेरालिया के साथ मिलकर पौधारोपण करके लोगों को जागरुक किया। इस बार के पृथ्वी दिवस का थीम भी-हमारी पृथ्वी में निवेश करें रखा गया है। उन्होंने कहा कि चाहे थोड़ी सी जगह मिले, वहीं पर हमें हरियाली करनी है। हर व्यक्ति धरती के सुधार में किसी न किसी रूप में सहयोग करें। प्लास्टिक के थैलों, थैलियों का इस्तेमाल बंद हो, इस उद्देश्य से यहां कपड़े के थैलों का वितरण किया गया।
उन्होंने कहा कि विषैली गैसों से, पर्यावरण प्रदूषण के कारण धरती (पृथ्वी) की हालत बहुत खराब हो चुकी है। ऐसे में अब समय आ गया है पृथ्वी में निवेश करने का। बच्चों, बड़ों, बुजुर्गों के बीच श्री गोयल ने जानकारी दी कि गलोबल वार्मिंग सिर्फ हमारे देश की समस्या नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया की है। सभी अपने-अपने प्रयासों से पृथ्वी के सुधार में लगे हैं। इस बार के पृथ्वी दिवस पर थीम भी-पृथ्वी में निवेश रखा गया है। यानी हमें पृथ्वी में निवेश करके इसमें सुधार करना है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाईमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के पास धरती को बचाने के लिए मात्र 8 साल बाकी हैं। इसके बाद धरती पर ग्लोबल वार्मिंग का स्तर इतना अधिक बढ़ जाएगा कि हमारे पास सुधार के भी विकल्प खत्म हो जाएंगे। वैज्ञानिक इस बात से बार-बार चेताते रहते हैं। हमें अब अपनी उन आदतों में बदलाव कर लेना चाहिए, जिनके कारण हमारा पर्यावरण खराब होता है और उसका सीधा दुष्प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है।
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