27 साल बाद बना दिवाली का यह संयोग जाने पूजा की संपूर्ण विधि

 नारायण नारायण दीपोत्सव 2022…

जानिए शास्त्रीय महत्व एवं पोराणिक कथा तिथि निर्णय मुहूर्त विचार एवं 27 साल बाद दिवाली के अगले दिन सूर्यग्रहण, तुला राशि में विचित्र संयोग साथ ही जानिए लक्ष्मी प्राप्ति के विशेष प्रयोग ज्योतिर्विद राघवेंद्र रविश राय गौड़ से :-



पांच दिन तक चलने वाला दीपोत्सव ‘पंचपर्व’ कहलाता है। इन पांच दिनों में भिन्न-भिन्न देवताओं का पूजन होता है।


दीपों के उत्सव की पौराणिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महिमा सर्वविदित है। दीपावली ऐसा त्योहार है, जो उत्साह और उल्लास के साथ विभिन्न प्रांतों में अनेक कृत्यों के साथ मनाया जाता है। वैसे यह पांच दिनों तक अनतरत चलने वाला उत्सव-पर्व है, जो धन त्रयोदशी से आरम्भ होकर भाई दूज तक चलता है। दीपावली इनके केंद्र में है। पांच दिन तक चलने वाला दीपोत्सव ‘पंचपर्व’ कहलाता है। इन पांच दिनों में भिन्न-भिन्न देवताओं का पूजन होता है, जो धनाध्यक्ष कुबेर के पूजन से शुरू होकर न्याय  के प्रणेता  भगवान चित्रगुप्त  के लिए दीपदान तक चलता है।


कुबेर एवं धन्वंतारि की धन तेरसपूजा

22/ 23 अक्टूबर, रविवार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी धन तेरस के नाम से जानी जाती है। पौराणिक विद्वानों के अनुसार धसतेरस में ‘धन’ शब्द का संबंध संपत्ति के अधिपति कुबेर के साथ आरोग्य के प्रदाता धन्वन्तरि से भी है। इसीलिए इस दिन चिकित्सक लोग अमृतधारी भगवान धन्वन्तरि का पूजन करते हैं। प्राय: इस दिन से दीप जलाने की शुरुआत होती है, और पांच दिनों तक जलाए जाते हैं।

लोकाचार में प्रसिद्ध है कि इस दिन खरीदे गए सोने या चांदी के धातुमय पात्र अक्षय सुख देते हैं। इस नाते लोग नए बर्तन या दूसरे नए सामान धनतेरस के दिन ही खरीदते हैं। एक परंपरा यह भी है कि इस दिन नव-निधियों के नाम का उच्चारण किया जाए। नौ निधियों के नाम हैं – महापद्म, पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व।


कब है धनतेरस 2022


कार्तिक माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि आरंभ - 22 अक्टूबर 2022 को शाम 6 बजकर 02 मिनट से

समाप्त - 23 अक्टूबर 2022 को शाम 6 बजकर 03 मिनट तक


पूजन का शुभ मुहूर्त - 23 अक्टूबर 2022 को रविवार शाम 5 बजकर 44 मिनट से 6 बजकर 5 मिनट तक

प्रदोष काल: शाम 5 बजकर 44 मिनट से रात 8 बजकर 16 मिनट तक।

वृषभ काल: शाम 6 बजकर 58 मिनट से रात 8 बजकर 54 मिनट तक।


नरक चतुर्दशी  24 अक्टूबर दीपावली से ठीक एक दिन पहले आने वाली चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माता अदिति के आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध किया था। परम्परा में इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का दिन भी माना गया है, इसलिए इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है।


नरक चतुर्दशी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त

धनतेरस के बाद नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस साल नरक चतुर्दशी और दिवाली का पर्व  एक ही दिन मनाया जा रहा है।


ज्योति पर्व है दीपोत्सव 24 अक्टूबर 
कार्तिक अमावस्या सनातन प्रकाश पर्व के रूप में स्थापित है। यह दिन अंधेरे की अनादि सत्ता को अंत में बदल देता है, जब छोटे-छोटे ज्योति-कलश दीप जगमगाने लगते हैं। यह दिन लक्ष्मी पूजा के लिए प्रशस्त है। किसानों की बरसाती फसल दीवाली से पहले पककर तैयार हो जाती है। इस नाते यह आनंद-वितरण करने वाला उत्सव है। इस दिन सायं (जिसे प्रदोषकाल कहा जाता है) माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है।

गणपति, कुबेर और भगवान विष्णु की पूजा भी माता लक्ष्मी के साथ होती है। सुख, सौभाग्य और सम्पत्ति की प्रदात्री भगवती सिंधुजा की पूजा नए धान और उपलब्ध पत्र-पुष्पों से होती है। स्पष्ट है कि माता लक्ष्मी के रूप में यह प्रकृति पूजन है जो शताब्दियों से चला आ रहा है। अथर्ववेद में लिखा है कि जल, अन्न और सारे सुख देने वाली पृथ्विी माता को ही दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। इसी कारण लक्ष्मी पूजन की मुख्य सामग्री गन्ना और अन्य ऐसे पदार्थ हैं, जो सर्वकाल और सार्वभौम सुलभ हैं।


तिथि निर्णय एवं मुहूर्त :-


कृष्ण पक्ष की अमावस्या- 24 तारीख को शाम 5 बजकर 28 मिनट से शुरू होकर 25 अक्टूबर शाम 4 बजकर 18 मिनट तक

प्रदोष व्रत पूजा- 24 अक्टूबर शाम 5 बजकर 50 मिनट से रात 8 बजकर 22 मिनट तक

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त-  24 अक्टूबर शाम 06 बजकर 53 मिनट से रात 08 बजकर 16 मिनट तक

अभिजीत मुहूर्त- 24 अक्टूबर सुबह 11 बजकर 19 मिनट से दोपहर 12 बजकर 05 मिनट तक

अमृत काल मुहूर्त - 24 अक्टूबर को सुबह 08 बजकर 40 मिनट से 10 बजकर 16 मिनट तक

विजय मुहूर्त- 24 अक्टूबर दोपहर 01 बजकर 36 मिनट से 02 बजकर 21 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त- 24 अक्टूबर शाम 05 बजकर 12 मिनट से 05 बजकर 36 मिनट तक


सूर्य ग्रहण

27 साल बाद दिवाली के अगले दिन सूर्यग्रहण, तुला राशि में विचित्र संयोग


सूर्यग्रहण 25 अक्टूबर को तुला राशि में लगने जा रहा है। इससे पहले 27 साल पहले सूर्यग्रहण दिवाली के अगले दिन तुला राशि में लगा था। 27 साल पहले भी चार ग्रहों का विचित्र संयोग बना था और इस बार भी तुला राशि में 4 ग्रहों का विचित्र संयोग बना है।


सूर्यग्रहण 25 अक्टूबर को तुला राशि में लगने जा रहा है। इससे पहले 27 साल पहले सूर्यग्रहण दिवाली के अगले दिन तुला राशि में लगा था। 27 साल पहले भी चार ग्रहों का विचित्र संयोग बना था और इस बार भी तुला राशि में 4 ग्रहों का विचित्र संयोग बना है।


वर्ष 1995 में जब सूर्यग्रहण लगा था। तब तुला राशि में चार ग्रह एक साथ थे। इस समय तुला राशि में राहु, सूर्य, शुक्र और चंद्रमा था। 25 अक्टूबर को लगने जा रहे सूर्यग्रहण के दौरान भी तुला राशि में राहु, सूर्य, शुक्र और चंद्रमा रहेंगे। इसके अलावा 27 साल पहले शनि अपनी राशि कुंभ में विराजमान थे और इस बार भी शनि अपनी ही राशि मकर में रहेंगे। इसके अलावा वर्ष 1995 में बुध कन्या राशि में थे और इस बार भी बुध कन्या राशि में ही विराजमान हैं।


इस साल सूर्यग्रहण का देश और दुनिया पर असर

सूर्यग्रहण के कारण मालवा  और उसके आसपास के क्षेत्रों पर अधिक दिखाई देगा। इस दौरान राजस्थान, कच्छ और गुजरात के व्यापारी वर्ग के लोगों को कुछ कष्ट हो सकता है। इतना ही नहीं सूर्यग्रहण के बाद सरकारी एजेंसियों की कार्यवाही व्यापारी वर्ग के लोगों को कुछ कष्ट प्रदान कर सकती है। साथ ही खाद्य पदार्थ जैसा गेहूं, सरसों आदि के दामों में तेजी देखी जा सकती है। इसके अलावा सूर्यग्रहण का असर यूरोप, मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया और उत्तरी महासागर में सबसे ज्यादा असर दिखाई देगा। कहा जा रहा है कि यह सूर्यग्रहण यूरोपीय देशों के लिए अच्छा नहीं रहने वाला है।


दीपावली के अगले दिन 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण रहेगा। मालवा सहित भारत में दिखाई देने वाले ग्रहण की अवधि एक घंटा 12 मिनट रहेगी। ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले लगेगा, इसलिए 24 अक्टूबर को प्रदोषकाल तथा मध्य रात्रि में माता लक्ष्मीजी की पूजा करने में किसी प्रकार का कोई दोष नहीं है।


25 अक्टूबर को भारतीय समय अनुसार खंडग्रास सूर्य ग्रहण शाम 4 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगा। ग्रहण का सम्मिलन 5 बजकर 38 मिनट तथा मोक्ष 5 बजकर 53 मिनट पर होगा। ग्रहण की कुल अवधि एक घंटा 12 मिनट की रहेगी। ग्रहण का वेधकाल अर्थात सूतक 25 अक्टूबर को सुबह 4.41 बजे से शुरू होगा। ग्रहण का समय कम होने से इसके नकारात्मक प्रभाव कम रहेंगे।


गोवर्धन पूजा और अन्नकूट 26 अक्टूबर

अमूमन  दिवाली के दूसरे दिन ही गोवर्धन पूजा या अन्नकूटा पूजा की जाती है। लेकिन इस साल 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण पड़ने के कारण अगले दिन यानी 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा। अन्नकूट पूजा गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण से समर्पित है।

दीपावली का दूसरा दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है। ऋग्वेद में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर तीन पदों में सारी सृष्टि को नाप लिया था। अत: तब से आज तक यह विष्णु विजय दिवस कहलाता है। यशोदानंदन श्रीकृष्ण ने इसी दिन देवेन्द्र के मानमर्दन हेतु गोवर्धन को धारण किया था। अत: स्थान-स्थान पर नव धान्य के बने हुए पर्वत शिखरों का भोग अन्नकूट प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। वामनपुराण में इसे वीर-प्रतिपदा भी कहा गया है। इस दिन गो माता एवं बैलों की विशिष्ट पूजा की जाती है। यह दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है। ऋग्वेद में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर 3 पगों में सारी सृष्टि को नाप लिया था। श्रीकृष्ण ने इसी दिन देवेंद्र के मानमर्दन के लिए गोवर्धन को धारण किया था। शहर में जगह-जगह नवधान्य के बने पर्वत शिखरों का भोग अन्नकूट प्रसाद के रूप में वितरित होता है।


कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 25 अक्टूबर 2022 को शाम 4 बजकर 18 मिनट कर

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि समाप्त - 26 अक्टूबर 2022 को दोपहर 02 बजकर 42 मिनट तक

गोवर्धन पूजा मुहूर्त - सुबह 06 बजकर 33 मिनट से 26 अक्टूबर सुबह 08 बजकर 48 मिनट तकभाई दूज 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त


भाई-बहन के प्रेम का भाई दूज 27 अक्टूबर कार्तिक शुक्ल द्वित्या  को एक सुन्दर उत्सव होता है, जिसका नाम है यमद्वितीया या भाई दूज। भविष्य पुराण में आया है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया था। अत: आज भी इस दिन समझदार लोग अपने घर मध्याह्न का भोजन नहीं करते। लोगों को इस दिन अपनी बहन के घर में ही स्नेहवश भोजन करना चाहिए, जिससे कल्याण और समृद्धि प्राप्त होती है।


इसी दिन भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए और इनके नाम से अर्घ्य और दीपदान भी करना चाहिए। लेकिन अगर दोनों दिन दोपहर में द्वितीया तिथि हो तब पहले दिन ही द्वितीया तिथि में यम द्वितीया भाई दूज का पर्व मनाना चाहिए।


27 अक्टूबर को यह है पूजा का शुभ मुहूर्त

उदया तिथि को  मानते हुए  27 अक्टूबर को भाई दूज की पूजा कर सकते हैं। 27 अक्टूबर को जो लोग भाई दूज का पर्व मनाएंगे, उनके लिए शुभ मुहूर्त 11 बजकर 07 मिनट से 12 बजकर 46 मिनट तक ही रहेगा। इस तरह इस साल रक्षा बंधन की तरह भाई दूज का त्योहार भी दो दिन मनाया जाएगा। आप अपनी परंपरा और लोकाचार के अनुसार, 26 और 27 अक्टूबर में से जिस दिन चाहें भाई दूज का पर्व मना सकते हैं।


भाई दूज पूजा मुहूर्त - 26 अक्टूबर दोपहर 01 बजकर 18 मिनट तक दोपहर 03 बजकर 33 मिनट तक

कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि शुरू - 26 अक्टूबर 2022 को दोपहर 02 बजकर 42 मिनट से शुरू

कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि समाप्त - 27 अक्टूबर 2022 को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक।


दीपावली पर इस बार विशेष रूप से करे  ये सात  अचूक उपाय और आर्थिक समस्या से निजात पाएं


इस बार दिवाली पर आप करें परंपरागत ऐसे उपाय जिन्हें करने से आप कर्ज से आपको कर्ज से मुक्ति मिल सकती है और धन संबंधी समस्या का समाधन हो सकता है। दीपावली को माता लक्ष्मी को कमल का फूल चढ़ाया जाता है और घर में नई झाड़ू लाई जाती है साथ ही एक झाड़ू मंदिर में भी दान की जाती है।...

तो आजमाएं ये लक्ष्मी प्रिय 07 उपाय।


1. चांदी का ठोस हाथी : विष्णु तथा लक्ष्‍मी को हाथी प्रिय रहा है इसीलिए घर में ठोस चांदी या सोने का हाथी रखना चाहिए। ठोस चांदी के हाथी के घर में रखे होने से शांति रहती है और यह राहू के किसी भी प्रकार के बुरे प्रभाव को होने से रोकता है।

 

2. कौड़ियां : पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कुछ सफेद कौड़ियों को केसर या हल्दी के घोल में भिगोकर उसे लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी में रखें। ये कौड़ियां धनलक्ष्मी को आकर्षित करती हैं।


3. चांदी की गढ़वी : चांदी का एक छोटा-सा घड़ा, जिसमें 10-12 तांबे, चांदी, पीतल या कांसे के सिक्के रख सकते हैं, उसे गढ़वी कहते हैं। इसे घर की तिजोरी या किसी सुरक्षित स्थान पर रखने से धन और समृद्धि बढ़ती है। दीपावली पूजन में इसकी भी पूजा होती है।


4. मंगल कलश : एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर उसके गले पर मौली बांधी जाती है।


5.सात मुखी दीपक : माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहे, इसके लिए हमें उनके समक्ष सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए। दीपक में घी होना चाहिए। दीपावली पर यह कार्य अवश्य कीजिए। यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मी माता की मूर्त‌ि के सामने नौ बाती वाली घी का दीपक जलाने से जल्दी धन लाभ म‌िलता है और आर्थ‌िक मामले में उन्नत‌ि होती है। 

 

6.रंगोली : वर्तमान में रंगोली का प्रचलन सबसे अधिक है, लेकिन पुरानी परंपरानुसार आज भी आंतरिक इलाकों में मांडने बनाए जाते हैं। द्वार, देहरी, चौक और माता लक्ष्मी के पूजा स्थल के पास रंगोली अवश्य बनाएं।


7.दीपक : दीपावली की रात को घर में और घर के आसपास खास जगहों पर दीपक जलाकर रखे जाते हैं। कहते हैं कि दीपावली की रात को देवालय में गाय के दूध का शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे तुरंत ही कर्ज से छुटकारा मिलता है और आर्थिक तंगी दूर हो जाती है। दीपावली की रात को दूसरा दिया लक्ष्मी पूजा के दौरान जलाएं। तीसरा दिया तुलसी के पास, चौथा दिया दरवाजे के बाहर, पांचवां दिया पीपल के पेड़ के नीचे, छठा दिया पास के किसी मंदिर में, सातवां कचरा रखने वाले स्थान पर, आठवां बाथरूम में, नौवां मुंडेर पर, दसवां दिवारों पर, ग्यारहां खिड़की, बारहवां छत पर और तेरहावं किसी चौराहे पर। दीपावली पर कुल देवी या देवता, यम और पितरों के लिए भी दीपक जलाए जाते हैं।


सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।

सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥


नारायणनारायण

सर्वे भवन्तु सुखीनः

 राघवेंद्ररविश रायगौड़

ज्योतिर्विद

 9926910965

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