बहन शूर्पणखा की कटी नाक का बदला लेने को सीता हरण कर ले गया रावण

 बहन शूर्पणखा की कटी नाक का बदला लेने को सीता हरण कर ले गया रावण



गुरुग्राम। अपनी कटी हुई नाक लेकर शूर्पणखा अपने भाई खर और दूषण के पास जाती है। उन्हें अपने साथ हुए अत्याचार की दास्तां सुनाती है। बहन की कटी नाक का बदला लेने के लिए दोनों भाई खर और दूषण राम-लक्ष्मण से भिड़ते हैं और लड़ते-लड़ते मारे जाते हैं। आठवें दिन की रामलीला में लीला का यहां से शुभारंभ होता है। 

यहां जैकबपुरा स्थित श्री दुर्गा रामलीला कमेटी की लीला में दिखाया गया कि खर दूषण 14 हजार सैनिकों को साथ लेकर राम जी से युद्ध करने जाते हैं। एक बार तो यह दृश्य देखकर देवता भी सहम जाते हैं कि राक्षस इतनी अधिक संख्या में और राम-लक्ष्मण दो ही हैं। सब देवताओं के भय को भांपकर श्री राम ने एक माया रची और सभी राक्षस एक-दूसरे को राम ही दिखाई देने लगे। इस तरह से कुछ तो आपस में ही लड़कर मर गए कुछ को राम-लक्ष्मण ने मार डाला। खर-दूषण के मारे जाने की खबर शूर्पणखा ने लंकापति रावण तक पहुंचाई और अपनी कटी नाक का बदला लेने के लिए उसे उकसाया। रावण ने पूछा कि किसने तेरी नाक काटी है। वह बोली, अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण हैं। उनके साथ एक सुंदर स्त्री भी है। छोटे भाई लक्ष्मण ने मेरी नाक काटी है। मैं तेरी बहन हूं। यह सुनकर वे हंसी भी करने लगे। खर दूषण सहायता के लिए गए तो उन्हें भी मार डाला। रावण ने सोचा कि खर और दूषण भी बलशाली थे। उन्हें किसी भगवान के अलावा कोई नहीं मार सकता। 



रावण अपनी बहन की कटी नाक का बदला लेने के लिए एक योजना बना चुके हैं। वे अपने मामा मारिच के पास जाते हैं। मारिच को वे कहते हैं कि वह सोने का मृग बनके चित्रकूट पर विचरण करे और राम-लक्ष्मण को वहां से दूर जाने पर विवश करे। रावण के साथ संवाद करते हुए मारिच कहते हैं-हे महाराज, मैं आपको कुछ ज्ञान की बातें बताता हूं। सती, संत, गुरु, ब्राह्मण, खास पड़ौसी, वैद्य, हकीम और आपका दास। इन सब से इंसान को कभी बैर नहीं रखना चाहिए। जो इनसे बैर बढ़ाता है, वो आखिर मारा जाता है। मारिच की बातों को अनसुना करके रावण मारिच से कहता है कि जल्दी से निर्णय ले ले, अगर सोने का मृग बनना है तो सही है नहीं तो अभी उसका वध कर देगा। 



डर के मारे मारिच रावण की बात को मानकर सोने का मृग बनकर उस स्थान की ओर चला जाता है, जहां पर राम, सीता, लक्ष्मण रह रहे थे। मृत को देखते ही सीता जी का मन ललचाया और उन्होंने राम से वह मृग पकड़कर लाने को कहा। राम ने बहुत समझाया मगर सीता नहीं मानी। इस पर राम उस मृत को पकडऩे को चल दिए। मृत राम के आगे-आगे बहुत दूर तक निकल गया और फिर आवाज आई भैया लक्ष्मण बचाओ, भैया लक्ष्मण बचाओ। सीता जी के कहने पर जाने से पहले लक्ष्मण ने सीता के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींच दी। लक्ष्मण के जाने के बाद रावण साधू के भेष में वहां आते हैं और नाचते हुए सीता जी से भीक्षा मांगते हुए कहते हैं- 

ऐ माई मुझको भिक्षा दे, मर्तबा बुलंद हो तेरा,

भगवान तुझे जीता रखे, हो सदा ही भला तेरा।

तुम दूधो-नहाओ, पूतो-फलो, दिन पर दिन बड़भागिन हो,

जोगी को थोड़ा भोजन दे, देवी तू अटल सुहागिन हो।

सीता जब उन्हें भिक्षा देता है तो बीच में लक्ष्मण रेखा तो परेशानी हो जाती है। इस पर रावण कहते हैं कि वे बंधी हुई भिक्षा नहीं लेते। इसलिए बाहर आकर भिक्षा दें। न चाहते हुए भी सीता मजबूर होकर लक्ष्मण रेखा पार कर गई और फिर रावण ने उनका हरण कर लिया। 


सीता हरण को देखने के लिए रामलीला में सामान्य दिनों से दुगुनी भीड़ थी। वन से जब राम और लक्ष्मण वापस पहुंचे तो देखा कि सीता वहां नहीं थी। व्याकुल राम और लक्ष्मण ने सीता को खूब ढूंगा, लेकिन नहीं मिली। रास्ते में उन्हें घायल जटायु मिला तो पता चला कि सीता जी का रावण अपहरण करके ले गया है। इसके बाद वे आगे चले और रास्ते में शबरी से मुलाकात हुई। शबरी के झूठे बेर और सुग्रीव मित्रता तक की लीला दिखाई गई। 

श्री दुर्गा राम लीला में रावण का दमदार अभिनय करके बनवारी लाल सैनी लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुके हैं। इस बार उन्होंने खुद जोगी रावण की भूमिका अदा की। बनवारी लाल सैनी ने हर बार की तरह इस बार भी जोगी रावण की दमदार भी पूरी शिद्दत के निभाई।

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