रामलीला में दमदार रहा रावण-सीता संवाद, धूं-धूंकर जली लंका

 रामलीला में दमदार रहा रावण-सीता संवाद, धूं-धूंकर जली लंका

-श्रीदुर्गा रामलीला के मंच पर प्राकृतिक नजर आई अशोक वाटिका

-श्रीदुर्गा रामलीला जैकमपुरा को फेसबुक पर ऑनलाइन देख रहे लोग



गुरुग्राम। शबरी के झूठे बेर खाते हुए की लीला के बाद रविवार को दिखाया कि भगवान राम ने उस वन को भी छोड़ दिया और आगे बढ़ गए। रास्ते में उन्हें ब्राह्मण के भेष में हनुमान जी मिले। जैकमपुरा स्थित श्री दुर्गा रामलीला में लंका दहन की तक की लीला का मंचन किया गया। यहां प्राकृतिक रूप से अशोक वाटिका दिखाई गई। हरियाली, पेड़-पौधे व कबूतर, खरगोश मंच पर विचरते नजर आये। 



लीला में दिखाया गया कि जब राम और लक्ष्मण ऋ ष्यमूक पर्वत के पास से गुजरते हैं तो उन पर सुग्रीव की नजर पड़ती है। सुग्रीव अपने भाई के छिपकर उस पर्वत पर रहते हैं। वे हनुमान जी से कहते हैं कि आप जाकर पता लगाओ कि वे कौन हैं। अगर वे बाली के भेजे हुए हों तो मैं तुरंत ही इस पवज़्त को छोड़कर भाग जाऊंगा। यह सुनकर हनुमान जी ब्राह्मण का रूप धारकर उनके पास पहुंचे और पूछने लगे कि-हे वीर, आप कौन हैं, जो क्षत्रिय के रूप में वन में फिर रहे हैं। इस पर राम जी ने जवाब दिया-हम कोसलराज दशरथ जी के पुत्र राम-लक्ष्मण हैं। हम पिता का वचन मानकर वन आए हैं। हमारे साथ सुंदर सुकुमारी स्त्री थी।



 यहां वन में राक्षस ने मरी पत्नी जानकी को हर लिया है। हे ब्राह्मण हम उसे ही खोजते हुए यहां फिर रहे हैं। अब आप बताएं कि आप कौन हैं। भगवान राम को पहचानकर हनुमान जी उनके चरणों में गिर गए और प्रणाम किया। हनुमान जी ने कहा मैनें आपका परिचय पूछा। वर्षों के बाद आपको देखा, वह भी तपस्वी के वेष में और मेरी वानरी बुद्धि इससे मैं आपको पहचान न सका। आप तो अंतर्यामी हैं, सब जानते हैं फिर भी आपने मुझे नहीं पहचाना। इसके बाद हनुमान जी कहते हैं कि-

बल अपना पूर्ण लगा देंगें माता का पता लगाने को,

बलिदान सुखों का कर देंगें स्वामी का कष्ट मिटाने को। 

इसके बाद हनुमान जी राम, लक्ष्मण को ऋ ष्यमूक पर्वत पर मंत्रियों सहित रह रहे वानरराज सुग्रीव के पास ले जाते हुए कहते हैं वे सीता जी की खोज करवा देंगें। इसके बाद हनुमान जी ने दोनों को अपने कंधों पर बिठाया और ले गए पर्वत पर। वहां पर श्री राम की मुलाकात सुग्रीव से हुई। 



सुग्रीव ने सारी बात सुनी और आश्वस्त किया कि वे सीता जी अवश्य मिल जाएंगीं। उन्होंने यह भी बताया कि एक बार वे यहां मंत्रियों के साथ कुछ विचार कर रहे थे, तब उनकी नजर एक शत्रु पर पड़ी, जिसके वश में विलाप करती हुई सीता जी को आकाश मार्ग से ले जाया जा रहा था। हमें देखकर उन्होंने राम-राम पुकारकर एक वस्त्र नीचे गिरा दिया था। श्री राम ने वह वस्त्र मांगा। सुग्रीव ने तुरंत ही वह वस्त्र दे दिया। उसकी पहचान के बाद राम जी ने सुग्रीव से पूछा कि आप क्यों दुखी रहते हो। इस पर सुग्रीव ने अपने भाई बाली की सारी कहानी बताई। उसका दुख सुनकर श्री राम ने कहा कि आज शाम तक तुम्हारी पत्नी और राज्य तुम्हें दिला देेंगें। कहेनुसार सुग्रीव बाली को युद्ध के लिए ललकारते हैं। बाली द्वारा सुग्रीव को पीट-पीटकर घायल कर दिया जाता है, लेकिन श्री राम उसे मारने से चूक जाते हैं। वापस आकर सुग्रीव कहते हैं आपने तीर क्यों नहीं चलाया। राम के कहने पर सुग्रीव ने एक बार फिर से बाली को ललकारा। इस बार बाली को युद्ध करने से उनकी पत्नी तारा रोकती है। बाली नहीं मानता और युद्ध को चला जाता है। इस बार सुग्रीव के गले में राम जी ने माला पहना दी, ताकि उसकी पहचान रहे। मौका पाकर उन्होंने बाली को तीर मार दिया और वे घायल होकर गिर पड़े। काफी संवाद के बाद बाली ने अपने बेटे अंगद को श्री राम को सौंप दिया। इसके बाद पूरी वानर सेना सीता जी को ढूंढने की तैयारी करने लगी। 



लंका में सीता के पास जाने की तैयारी हनुमान जी की कर दी गई। राम जी ने उन्हें अपनी मुद्रीका देकर कहा कि यह सीता को दे देना, वे समझ जाएंगी कि हमने ही तुम्हें भेजा है। इस तरह से समुद्र पार करते हुए सुरसा राक्षसी से छुटकारा पाकर हनुमान जी लंका में अशोक वाटिका में सीता जी के पास पहुंच गए। जब वहां रावण आया तो वे पेड़ पर चढ़ गए। इसके बाद रावण-सीता को मनाने का प्रयास करते हैं। फिर वे गुस्से में सीता जी को रावण तलवार से मारने दौड़ते हैं। इसी बीच वहां बैठी उनकी पत्नी मंदोदरी बीच में आकर कहती है कि औरत पर हाथ उठाना उन्हें शोभा नहीं देता। इसके बाद सीता जी को मान जाने की बात कहकर रावण महल में चले जाते हैं। फिर हनुमान जी नीचे आते हैं और सीता जी को कहते हैं मुझे भूख लगी है मैं यहां से फल खाता हूं। फि क्या था, हनुमान जी ने सारी अशोक वाटिका उजाड़ दी। इसकी सूचना रावण को दी गई और हनुमान जी को बंदी बनाकर उनके समक्ष पेश किया गया। इस बीच रावण और हनुमान के बीच संवाद होता है। इसके बाद रावण सजा के रूप में हनुमान जी की पूंछ में आग लगवा देते हैं। फिर क्या था, बंदर की तरह से ही उछल-कूद करते हुए हनुमान जी ने सारी लंका को जला दिया और समुद्र में जाकर अपनी पूंछ में लगी आग बुझाई।

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