पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के डॉक्टरों ने 76 वर्षीय महिला में दुनिया का सबसे छोटा वायरलेस पेस मेकर बिना सर्जरी के लगा करके बचायी जान
4 नवम्बर 2022, गुरुग्राम: गुरुग्राम स्थित पारस हॉस्पिटल में एक 76 वर्षीय बूढी महिला की जान डॉक्टरों के बेहतरीन प्रयासों की वजह से बच पाई। पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के कार्डियोलॉजी, यूनिट हेड &डायरेक्टर डॉ अमित भूषन शर्मा के नेतृत्व में यह प्रक्रिया अंजाम दी गयी। उन्होंने माइक्रा ट्रांस कैथेटर पेसिंग सिस्टम का एडवांस वर्जन महिला में लगाया। यह पेस मेकर दुनिया का सबसे छोटा पेस मेकर है। दिलचस्प बात यह रही कि इस पेस मेकर को लगाने के लिए किसी भी प्रकार की सर्जरी नहीं करनी पड़ी। इस प्रक्रिया में पैर की नसों के जरिये कैस्प्सूल के आकर का पेस मेकर महिला में लगाया गया है ताकि उनकी ह्रदय गति (हार्ट बीट) को सामान्य किया जा सके। पारस हॉस्पिटल देश का इकलौता ऐसा हॉस्पिटल है जहाँ पर अनगिनत संख्या में माइक्रा इम्प्लान्ट्स हुए हैं।
बूढी महिला को हॉस्पिटल तब लाया गया जब वह ह्रदय गति धीमी या कमजोर होने के कारण गिर गयी थी। उन्हें चोट लगी थी। उस वजह से वह तुरंत बेहोश हो गयी थी। बेहोशी की अवस्था में उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। महिला को कई ब्लैकआउट्स पहले भी हो चुके थे। डॉ शर्मा को दिखाने से पहले वह 9 महीने के लिए एंजियोप्लास्टी पहले भी करा चुकी थी। एंजियोप्लास्टी के बाद उन्हें नियमित तौर पर थिनर्स प्रिसक्राइब्ड किया जाता था।
पारस हॉस्पिटल , गुरुग्राम के कार्डियोलॉजी, यूनिट हेड-डायरेक्टर डॉ अमित भूषन शर्मा ने इस केस के बारे में बताते हुए कहा, "पीड़ित महिला उस समय हॉस्पिटल में आई जब उनकी पसलियों में चोट आई थी, उनके पैर की हड्डी टूट गयी थी, सिर में भी चोट लगी थी। जब पहली बार वह बाथरूम में गिरी तो उन्होंने परिवार वालों को नहीं बताया लेकिन जब उनके साथ दुबारा ऐसा हुआ और उन्हें चोटें आई तो घरवालों ने उन्हें तुरंत हॉस्पिटल में भर्ती किया। उनके कब और कैसे ब्लैकआउट हुआ, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। वह बहुत कमजोर हो चुकी थी क्योंकि वह लगातार ब्लड थिनर ले रही थी।
डॉ शर्मा ने आगे बताया कि महिला में सीने में दर्द जैसे कोई विशेष लक्षण नहीं थे लेकिन उन्हें ब्लैक आउट हो रहे थे और उन्हें इसके बारे में कुछ याद भी नहीं रहता था कि वह कब और कहाँ गिरी। ऐसा अक्सर तब होता है जब कोई एक्सरसाइज करता है और ह्रदय गति अचानक घट जाती है। इससे व्यक्ति नींद में भी मर सकता है। ह्रदय गति कम होने से होने वाले ब्लैक आउट से शरीर के कई अंग ख़ास करके दिमाग काम करना बंद कर देता है।
डॉ शर्मा ने आगे बताया, "महिला को जब इमरजेंसी डिपार्टमेंट मे लाया गया, तो डॉक्टरों ने तुरंत एक अस्थायी पेसमेकर लगाया ताकि हृदय गति बढ़ जाए और एक बार जब ह्रदय गति स्थिर हो गयी तो हमने एक स्थायी पेसमेकर लगाया। स्थायी पेसमेकर एक विटामिन सी कैप्सूल के आकार का होता है। इसे लगाने के लिए कोई सर्जरी नहीं की गयी। महिला में पहले से ही कई सारे घाव हो गए थे इसलिए हमने कोई और चीरा न लगाने का फैसला किया। वह खून को पतला करने वाली दवा खा रही थी। हमने पैर की नस की जांच की और पैरों की नसों के जरिये पेसमेकर को लगाया और फिर कुछ दिनों में उन्हें हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई।"
उन्होंने आगे बताया, "वैसे तो आम तौर पर एक पेसमेकर माचिस के आकार का होता है, और इसमें कॉलर बोन के नीचे छाती को चीरा लगा करके इम्प्लांट किया जाता है, लेकिन हमने इस महिला में जो पेस मेकर लगाया उसमे चीर फाड़ नहीं करनी पड़ी। हम कह सकते हैं, नया पेसमेकर नो स्कार नो बम्प प्रक्रिया पर काम करता है।"
नार्मल पेसमेकर से छाती की हड्डी के पास एक गांठ बन जाती है। जिससे मरीज को इस गाँठ को कुछ समय बाद इसकी आदत डालनी पड़ती है, लेकिन चूंकि नया पेसमेकर सीधे हृदय की मांसपेशी के अंदर लगाया जाता है, इसलिए यह सर्जरी के बाद मरीजों या अन्य लोगों को दिखाई नहीं देता है। यह सर्जरी से जुड़े ट्रामा को कम करने में भी मदद करता है।
उन्होंने आगे बताया, "अगर हम इस केस को सरल शब्दों में समझें तो यह एक इलेक्ट्रिकल कंडकशन सिस्टम समस्या की तरह हैं। इसमें ह्रदय कमजोर हो जाता है। बढ़ती उम्र के साथ यह अक्सर होता है। इससे कभी कभी हार्ट रेट 25 से 30 हो जाती है और फिर दिल धड़कना ही बंद हो जाता है। जब दिमाग में खून की सप्लाई नहीं होती है तो मरीज बेहोश हो जाता है। ऐसे मरीजों की छाती में दर्द नहीं उठता है।"
इस पेसमेकर को लगाते समय ब्लड थिनर को रोकने की जरूरत नहीं होती है। इसके अलावा न ही छाती में किसी चीरे को ही लगाने की जरूरत होती है। इस वजह से यह पेस मेकर बहुत ही एडवांस पेस मेकर की कैटेगरी में आता है। आम तौर पर पेसमेकर पर बहुत सारी पाबंदियां होती हैं, जैसे कि मरीज अगले 4 हफ्तों तक अपने हाथों को कंधों से ऊपर नहीं उठा सकते, बाईं ओर से मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं कर सकते, मोबाइल फोन को लेफ्ट साइड पॉकेट में नहीं रख सकते हैं आदि। कभी-कभी मरीजों को यह कहा जाता है कि पेस मेकर लगाये मरीज हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर एक्स-रे मशीनों से नहीं गुजर सकते हैं। उन्हें एक्स-रे मशीन को बायपास करना पड़ता है। नार्मल पेसमेकर के मामले में 6 फीट की दूरी से टेलीविजन देखना पड़ता है। पुराने पेसमेकर से घाव में संक्रमण होने की संभावना10% और लेड (तार) के फ्रैक्चर की संभावना को 15% तक होती हैं। माइक्रा ट्रांस कैथेटर पेस मेकर मे कोई पाबंदी नहीं रहती है।
हार्ट अटैक पर अपना इनपुट देते हुए पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के फैसिलिटी डॉयरेक्टर श्री सुनित अग्रवाल ने बताया, "हाल के समय मे कई मशहूर हस्तियों में कार्डिएक अरेस्ट की घटनाएं हुईं हैं, जिनमे उनकी मौत हो चुकी हैं। इस तरह की ख़बरों से लोगों में कार्डिएक अरेस्ट या ह्रदय से सम्बन्धित अन्य बीमारियों के लक्षण और कारण के बारे में जागरूकता बढ़ी है। हमसे में से कई लोग स्वस्थ डाइट का सेवन करते हैं और नियमित वर्कआउट करते हैं। लेकिन क्या हमे यह मालूम हैं जो हम खा रहे हैं या जो वर्कआउट हम कर रहे हैं, वह सही है या गलत? क्या हम अपने डायटिशियन से सलाह मशविरा करते हैं या नहीं और क्या हमे अपने करीबियों की बीमारियों का इतिहास पता है या नही। ह्रदय गति ज्यादा उम्र होने के नाते कम हो सकती है और मरीज़ में कोई स्पष्ट संकेत या लक्षण देखने को नही मिल सकता है। हां यह हो सकता है कि पीड़ित को ब्लैक आउट हो जिस तरह से इस 76 वर्षीय महिला के साथ केस मे हुआ। बेहतर मानसिक स्वास्थ और अच्छे ह्रदय के स्वास्थ्य के लिए युवाओं के साथ मजेदार गतिविधियों मे हिस्सा लेना कारगर साबित हो सकता है।"
0 Comments