श्रद्धा जघन्य हत्त्याकांड से सबक लें भविष्य की श्रद्धाएं ,
यदि शिक्षित हैं तो शिक्षित दिखना भी चाहिए !
विचार:- लिव-इन घिनौना,असभ्य, नीच, अव्यवहारिक, असमाजिक, रहन, सहन, दहन, वासना और भृमित कर देने वाली भूल-भुलैया है मिरिचिका है: माईकल सैनी
लंबे समय तक मन भर कर वासनापूर्ति का परिवेश है लिव इन फिर बाद में पीछा छुड़वाने के लिए कर दी जाती हैं हत्त्याएँ - वरना हत्त्या तो कुछ क्षणों के लिए वासना की शिकार हुई लड़कियों, अबोध बच्चियों की भी की जाती रही है नाम-पहचान खुल जाने के डर से ?
लिव इन रिलेशनशिप भारतीय संस्कृति और सभ्यताओं में कहीं भी उल्लेखित नहीं हैं परन्तु आज के आज़ादी वाले युग में संस्कृति और परम्पराओं की परवाह किसे है ?
सभ्य समाज में आज का लिव इन इतिहास में घृणात्मक दृष्टिकोण से आंका और परिभाषित किया जाने वाला अनैतिक - घिनौना - अमान्य - अव्यवहारिक माना जाने वाला कुकृत्य के समान परिवेश कहलाता था जो कभी कोई रिश्ते-नाते का दर्जा हांसिल नहीं कर पाया बल्कि उसके प्रति जो घृणात्मक नजरिया था वह बदला आज भी नहीं है मगर देश के संविधान में मिली छूट का लाभ कुछ व्यस्क बखूबी उठा रहे हैं और समाज को किनारे रख उसे धता बता रहे हैं !
शहर-गांव से दूरी और पैसा कमाने की चाहत और मजबूरी के इतर आधुनिकता के दौर में तिलिस्मी चकाचौंध की ओर आकर्षित होना कहें अथवा अभिभावकों का अपने एक-दो बच्चों के लिए आधुनिक युग में जीने लायक सुख-सुविधाओं के संसाधनों को जुटाने की जद्दोजहद में ही जीवन खपा देना कहें और बच्चों पर ही ध्यान न दे पाने की वजह कहें ? कारण अनेक हैं !
इसके इतर कुछ अभिभावकों की अपंगता और आर्थिक मजबूरियां , उनकी बच्चों पर निर्भरता और आश्रित हो जाना भी इस प्रकार के नाजायज रहन-सहन को जन्म देता है , कारक बनता है और फिर इन्हीं मजबूरियों की वजह से यह मामले पनपते हैं !
अधिकांश मामलों में अनबन की अधिकता के कारण अवांछित व्यवहार और हत्त्याएँ कर दी जाती हैं और कई मामलों में तो कुरुरता की सभी सीमाएं लांघ दी जाती हैं जैसे ताज़ा उदाहरण श्रद्धा हत्त्याकांड जो नजीर है युवा पीढ़ी के लिए !
अब भी भविष्य में युवा अपने को मिली आज़ादी के साथ अपने बुद्धि-विवेक से अपना जीवन सुरक्षित नहीं बना सकते हैं तो क्या लाभ शिक्षित होने का - लिव इन जैसे संपर्क बढ़ाने से पहले हर पहलू पर विचार कर लेना चाहिए अन्यथा बगैर पछतावे के कुछ नहीं हांसिल होगा ।
माता-पिता परिजनों को भी प्राकृतिक जरूरतों का ध्यान रखते हुए समय पर संज्ञान लेने की आवश्यकता है , छोड़ दें विचार महंगे दहेज, आडम्बरी खर्चों वाली शादीयां करने का - लिव इन मे रहने वाले कब ऐसा करते हैं भलां ऐसा तो केवल धनाड्य लोग और झूठी शान वाले ही करते हैं अतः उनकी होड़ में नहीं पिसना चाहिए ।
श्रद्धा के प्रति श्रद्धा तो रखते हैं मगर तब कहीं और अधिक होती जब श्रद्धा की श्रद्धा अपने यार के आशक्त न होकर परिवार के प्रति होती : माईकल सैनी
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