कल होने वाले खग्रास चंद्रग्रहण के बारे में जानिए क्या प्रभाव पड़ेगा आप की राशि पर



कार्तिक पूर्णिमा 8 दिसंबर 2022 को है और इसी दिन कार्तिक मास का समापन होगा। जो लोग एक महीने से कार्तिक स्नान कर रहे थे उनके एक मास के संकल्प की पूर्णता प्राप्त होगी। इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर खग्रास चंद्रग्रहण भी है जिसका सूतक प्रातः काल  के समय से ही प्रारंभ हो जाएगा। सायंकाल ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करके ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दें कर एवं दीप दान कर के ही परिपूर्ण करना उचित रहेगा ।



खग्रास चन्द्रग्रहण

दिनांक 8 नवम्बर 2022, कार्तिक पूर्णिमा को खग्रास चन्द्रग्रहण है ।

यह साल 2022 का अंतिम चंद्र ग्रहण है.

स्थान और काल के आधार पर चंद्र ग्रहण के प्रारंभ समय में अंतर हो सकता है.

चंद्र ग्रहण का सूतक काल 09 घंटे पहले शुरू होगा.

मालवा निमाड़ क्षेत्र में शाम 5.43 से 6.19 बजे तक 36 मिनट रहेगा ग्रहण ।


ग्रहण पूरे भारत में दिखेगा । भारत के अलावा एशिया, आस्ट्रेलिया, पैसेफिक क्षेत्र, उत्तरी और मध्य अमेरिका में भी ग्रहण दिखेगा ।चंद्र ग्रहण का सूतक काल ग्रहण समय से 09 घंटे पहले ही प्रारंभ हो जाता है. जिस स्थान पर ग्रहण प्रारंभ का जो समय होगा, उससे 09 घंटे पूर्व से सूतक काल की गणना करनी चाहिए.


🌑 भारत में ग्रहण समय -



 उज्जैन 5-47 से 6-18 तक 

कोलकाता 4-56 से 6-18 तक 

पटना 5-05 से 6-18 तक 

राँची 5-07 से 6-18 तक 

भुवनेश्वर -5-10 से 6-18 तक 

प्रयागराज -5-18 से 6-18 तक 

कानपुर -5-23 से 6-18 तक 

विशाखापट्टनम -5-24 से 6-18 तक 

रायपुर (छ.ग.) -5-25 से 6-18 तक 

हरिद्वार -5-26 से 6-18 तक 

नई दिल्ली -5-32 से 6-18 तक 

जोधपुर -5-53 से 6-18 तक 

बेंगलुरु -5-53 से 6-18 तक 

नासिक -5-55 से 6-18 तक 

अहमदाबाद -6-00 से 6-18 तक 

पुणे -6-01 से 6-18 तक 

मुंबई -6-05 से 6-18 तक


 भारत के जिन शहरों के नाम ऊपर सूची में नहीं दिये गये हैं, वहाँ के लिए अपने नजदीकी शहर के ग्रहण का समय देखें ।

 🌑 सूतक सम्बंधी कुछ महत्वपूर्ण बातें -

चंद्रग्रहण प्रारम्भ होने से तीन प्रहर (9 घंटे) पूर्व सूतक प्रारम्भ हो जाता है

 ।सूतक प्रारम्भ होने के बाद भोजन नहीं करना चाहिए ।परंतु बालक, वृद्ध, रोगी और गर्भवती महिलायें ग्रहण प्रारम्भ होने से डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं ।

 सूतक के पहले जिन पदार्थों में कुश, तिल या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते । परंतु पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए ।

 सूतक प्रारम्भ होने से पहले पानी में कुशा, तिल या तुलसीपत्र डाल के रखें ताकि सूतककाल में आवश्यक होने पर उसे पीने आदि में उपयोग ला सकें ।

 ग्रहण शुरु होने से अंत तक अन्न या जल ग्रहण करना निषिद्ध है ।

 ग्रहण के समय भोजन करने से अधोगति, सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री-प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है ।

 ग्रहण के अवसर में दूसरे का अन्न खाने से 12 वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है ।

 ग्रहण समाप्त होने पर पहने हुए वस्त्रों सहित स्नान करना चाहिए । 

ग्रहणकाल को साधनाकाल बनायें इसमें मंत्र जप , स्तोत्रपाठ , हरिनाम संकीर्तन अवश्य करना चाहिए ।

                           राशियों पर ये  रहेगा ग्रहण का प्रभाव:-

मेष : इस राशि के लोगों के लिए अधिक सोचने से बचने वाला समय है। इसी राशि पर ग्रहण रहेगा। 

वृषभ : इस राशि के लोगों के लिए आय में वृद्धि होगी तथा नए-नए स्रोत खुलेंगे। 

मिथुन : इस राशि के लोगों के लिए शुरू हो चुके स्टार्टअप का लाभ मिलने लगेगा। 

कर्क : इस राशि के लोगों के लिए विवादों को टालने का प्रयास करें, सफलता अवश्य मिलेगी।

 सिंह : इस राशि के लोगों के लिए पुराने धन की प्राप्ति का समय है, प्रयास करने पर सफलता मिलेगी। कन्या : इस राशि के लोगों के लिए ब्लाइंड इन्वेस्टमेंट करने से बचें, नुकसान की संभावना अधिक रहेगी।         

तुला : इस राशि के लोगों के लिए निर्णय क्षमता विकसित करें, सोच समझकर आगे बढ़ें। 

वृश्चिक : इस राशि के लोगों के लिए प्रापर्टी के विवाद से बचकर अपने कार्य को आगे बढ़ाएं। 

धनु : इस राशि के लोगों के लिए आध्यात्मिक व धार्मिक उन्नाति के साथ आय के रास्ते खुलेंगे।         

मकर : इस राशि के लोगों के लिए राजकीय पद मिलने की संभावना प्रयास तेज करें।

कुंभ : इस राशि के लोगों के लिए पारिवारिक संपत्ति मिलेगी, पुराने प्रयास सफल होंगे।

 मीन : इस राशि के लोगों के लिए अनुभव के साथ योग्यता का लाभ अवश्य मिलेगा।


कार्तिक पूर्णिमा महत्व

कार्तिक का महीना भगवान विष्णु का अत्यंत प्रिय महीना है। मान्यता है कि कार्तिक माह में भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। साल में कुल 12 पूर्णिमा होती है। इनमें कार्तिक माह की पूर्णिमा का विशेष महत्व है। पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो व्यक्ति किसी पवित्र नदी में स्नान और दान पुण्य करता है तो उसे इस पूरे महीने की गई पूजा पाठ के बराबर फल मिलता है। धार्मिक मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत और पूजन करके बछड़ा दान करने से शिवतत्व और शिवलोक की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा को महत्व जितना शैव मत में है उतना ही वैष्णवों में भी है।


भगवान विष्णु के दस अवतारों में पहला अवतार मत्स्य अवतार माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण किया था। नारायण के पहला अवतार कार्तिक पूर्णिमा के दिन होने की वजह से वैष्णव मत में इसका विशेष महत्व है। मान्यता यह भी है कि कार्तिक मास में नारायण मत्स्य रूप में जल में विराजमान रहते हैं और इस दिन मत्स्य अवतार को त्यागकर वापस बैकुंठ धाम चले जाते हैं।


देवी तुलसी का प्राकट्य


पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को देवी तुलसी का भगवान के शालिग्राम स्वरूप से विवाह हुआ था और पूर्णिमा तिथि को देवी तुलसी का बैकुंठ में आगमन हुआ था। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवी तुलसी की पूजा का खास महत्व है। मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देवी तुलसी का पृथ्वी पर भी आगमन हुआ है। इस दिन नारायण को तुलसी अर्पित करने से अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

।। सशङ्खचक्रं सकिरीटकुण्डलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।

सहारवक्षःस्थलकौस्तुभश्रियं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम्॥


उन चतुर्भुज भगवान् विष्णुको मैं सिरसे प्रणाम करता हूँ, जो शङ्क-चक्र धारण किये हैं, किरीट और कुण्डलोंसे विभूषित हैं, पीताम्बर ओढ़े हुए हैं, सुन्दर कमल-से जिनके नेत्र हैं और जिनके वक्षःस्थलमें वनमालासहित कौस्तुभमणिकी अनूठी शोभा है॥ 


नारायणनारायण

राघवेंद्ररविश रायगौड़

 ज्योतिर्विद

 9926910965

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