विजय सोमाणी,एक गैर अहीर सितारा जो अपने अहम् और वहम के कारण नहीं चमक रहा
दिल का साफ और जुबान का चिढ़चिढ़ापन जो उन्हें अपनों से दूर ले गया
रेवाड़ी: रेवाड़ी विधानसभा में अगर गैर अहीर नेता के चुनाव लड़ने कि बात आये तो विजय सोमाणी कि चर्चा ना हो, ऐसा हो नहीं सकता। पहले सोमाणी परिवार आर्थिक रूप से ज्यादा मजबूत नहीं था और नौबत यहां तक आ गई थी कि विजय सोमाणी को बहादुरगढ़ में सोमाणी टाइल्स में पांच सौ रूपये महीन में नौकरी करनी पड़ी, यह मैं नहीं कहता,यह स्वयं उनके मुख से कहे गये शब्द है । फिर किस्मत ने ऐसा जोर मारा कि उनको लीज पर पत्थरों की खान मिल गई,जिसने सोमाणी परिवार को फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया I खानो को चलाने के लिए राजनैतिक ताल-मेल कि जरुरत पड़ी है ताकि प्रशासनिक भ्रष्टतंत्र उनपर हावी ना हो सके, यहीं से विजय सोमाणी की राजनीति शुरू हुईं ।
अपने पैतृक गांव खोल को छोड़ कर रेवाड़ी में अपना निवास बनाया । राष्ट्रीय नवचेतना सामाजिक संस्था के माध्यम से अपनी राजनीति शुरु की I अभी राजनीति में आये कुछ ही समय बीता था कि उस समय कि उभरती पार्टी भाजपा ने उन्हें लपक लिया और युवा प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया । भाजपा में आने के बाद उन्हें विधायक बनने का रास्ता नज़र आने लगा । राष्ट्रीय नव चेतना के राष्ट्रीय सयोंजक विजय सोमाणी ने इसे अपनी राजनैतिक उपलब्धी माना और अहम् का शिकार हो गये और अपने जनाधार को भाजपा से जोड़ दिया इस आशा से कि 1996 के विधानसभा चुनाव में रेवाड़ी से विधानसभा टिकट उन्हें ही मिलेंगी । उस समय रामपुरा हॉउस और एंटी रामपुरा हॉउस कि राजनीति चलती थी और राव बीरेंद्र के अपोजिट में केवल कर्नल राम ही मुकाबले के थे,इस लिए गुरुग्राम लोकसभा की टिकट कर्नल रामसिंह को देना भाजपा की मजबूरी थी, पर किसी ने यह नही सोचा था कि वह रेवाड़ी विधानसभा कि टिकट भी अपनी पत्नी शारदा के लिए ले आएंगे I 1996 में विजय सोमाणी के अलावा,जन जा ग्रति मंच से रणधीर कापड़ीवास और हरियाणा विकास पार्टी से राजेंद्र ठेकेदार भी जोर-शोर राजनीति में उभर रहे थे । जहां भाजपा-हरियाणा विकास पार्टी गठबंधन के कारण राजेंद्र ठेकेदार चुनाव नहीं लड़ सके वहीं श्रीमती शारदा यादव को भाजपा की टिकट मिलने के कारण विजय सोमाणी भी चुनाव लड़ने से वंचित रह गये और उन्होंने स्वयं चुनाव ना लड़कर रणधीर कापड़ीवास को माला पहनाकर अपना समर्थन दे दिया I
इसके बाद 2000 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा कप्तान अजय को कड़ी टक्कर दी और दूसरे नम्बर पर रहे और वह अपने बड़बोलेपन के कारण चुनाव जीतते-जीतते रह गये । फिर उसके बाद 2004 में निर्दलीय,2009 में बसपा से 2014,2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और उनका वोट बैंक धीरे-धीरे घटता गया और अब तक के वे अपने आखिर दो चुनावो में एक हज़ार वोट का आकड़ा भी पार नहीं कर पाये और उनका विधायक बनने का सपना,एक सपना बनकर ही रह गया I धीरे-धीरे उनका जनाधार भी घटता गया और अपने बातों से अपने आपको सबसे बढ़ा साबित करने लगे और अपनी बात को ज़बरन ऊपर रखना उनकी आदत बन गईं और नौबत यहां तक आ गईं कि उनसे उनके कार्यकर्त्ता कटते गये और लोगों कि सोच यह बनगई कि ना कुछ आनी,ना जानी वह है विजय सोमाणी।इस तरह राजनीति में उभरता सितारा जो अहम् और वहम के कारण चमकने से पहले ओझल हो गया I
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