प्रवासी कथा संसार – एक दृष्टिकोण पुस्तक का आज विमोचन हुआ।

प्रवासी कथा संसार – एक दृष्टिकोण पुस्तक का आज विमोचन हुआ।


आज केंद्रीय हिंदी संस्थान,दिल्ली केंद्र में लेखिका डॉ. मुक्ति शर्मा द्वारा लिखित एवं प्रकाशित पुस्तक "प्रवासी कथा संसार एक दृष्टिकोण"का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया था।इस अवसर पर डॉ पूनम माटिया जी ने उपस्थित वक्ताओं का परिचय देते हुए कार्यक्रम की शुरुआत दीपप्रज्वलन कर की।



इस कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन डॉ. मंजू राय-क्षेत्रीय निदेशक ने किया इसके अलावा पुस्तक परिचय डॉ.अमलेश पाण्डेय दिल्ली विश्व विद्यालय, डॉ. कुसुम सबलानिया-शोधार्थी दिल्ली विश्वविद्यालय,और डॉ. पवनकुमार जी ने करवा कर पुस्तक के बारे में अपना उद्बोधन दिया था।इस पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में जवाहर कर्नावल-निदेशक हिंदी भवन न्यास भोपाल, श्रीमती अरुण सब्बरवाल-कहानीकार ब्रिटेन, और डॉ. आशीष कंधवे जी -निदेशक स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र म्यामांर ने प्रासंगिक उद्बोधन किया।जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मुकेश मराठे एवं पानीपत से दीपक शर्मा जी विशेष उपस्थित रहे थे। और मुख्य वक्ता के तौर पर केंद्रीय हिंदी संस्थान की निदेशक प्रो.बिना शर्मा जी ने अपना वक्तव्य दिया था।एवं अध्यक्षीय उद्बोधन केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष डॉ.अनिल जोशी जी ने किया था।इस पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के अवसर पर लेखिका डॉ. मुक्ति शर्मा जी के पुस्तक के विषय में उन्होंने कहा कि प्रवासी हिन्दी साहित्य अब वैश्विक स्तर पर अपने पाँव जमा चुका है। भारत के भिन्न विश्वविद्यालयों में इसे पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है और बहुत से शोधार्थी प्रवासी साहित्य पर शोध भी कर रहे हैं। बहुत से प्रवासी साहित्यकार मुख्यधारा के लेखकों के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके हैं। ऐसे में डॉक्टर मुक्ति शर्मा द्वारा संपादित एवं संकलित कहानी संग्रह प्रवासी कथा संसार – एक दृष्टिकोण का प्रकाशित होना एक सुखद घटना है। 

डॉक्टर मुक्ति शर्मा कवयित्री भी हैं और उपन्यासकार भी। बीच-बीच में उनकी लिखी कहानियां भी पढ़ने को मिल जाती हैं। अपने इस संकलन के लिये उन्होंने अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के हिन्दी कथाकारों की कहानियां शामिल की हैं। उन्होंने बताया कि भविष्य में वे इस श्रृंखला में युरोप, रूस, यूक्रेन, खाड़ी देशों व मॉरीशस के कहानियां भी शामिल करेंगी।वर्तमान कहानी संग्रह की विशेषता यह रही है कि डॉक्टर मुक्ति शर्मा ने भूमिका लिखने के साथ-साथ प्रत्येक कहानी पर एक समीक्षात्मक लेख भी लिखा है। इससे विद्यार्थियों एवं सजग पाठकों को इन कहानियों को पढ़ते समय एक नया दृष्टिकोण मिलने की संभावना बढ़ जाती है। 

कहानियों का चयन बहुत सतर्कता से किया गया है। डॉक्टर मुक्ति का प्रयास रहा है कि कहानियां अपने में प्रवासी जीवन के संघर्ष, अनूठे अनुभवों, और तल्ख़ सच्चाइयों समेटे हों। इस संग्रह में शामिल तमाम कहानीकार एक लंबे अरसे से अपने अपनाए हुए देश में रह रहे हैं और वहां के नागरिक भी हैं। सभी कहानीकार पहली पीढ़ी के प्रवासी हैं इसलिये उनका जीवन समझने की भारतीय दृष्टि अभी भी सक्रिय है। 

प्रवासी साहित्य के साथ एक स्थिति जुड़ी हुई है जो परेशान भी करती है। जो प्रवासी साहित्यकार जीवित हैं उन पर तो बात होती है मगर जो नहीं रहे उन पर चर्चा लगभग नगण्य ही दिखाई देती है। यह मुख्यधारा के साहित्य के बिल्कुल विपरीत है। वहां महान बनने की पहली शर्त मरना है।मगर डॉक्टर मुक्ति शर्मा ने अपने इस संकलन में नीना पॉल एवं प्राण शर्मा की कहानियां शामिल की हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। यह प्रकाशकों का भी उत्तरदायित्व है कि वे अपने प्रवासी साहित्यकारों की रचनाओं की उपलब्धता बनाए रखें। 

पाठक को एक बात याद रखनी होगी कि जिन देशों की कहानियां  इस संग्रह में शामिल की गयी हैं, वहां की समस्याएं और स्थितियां भिन्न होते हुए भी भावनात्मक स्तर पर उनमें एक ऐसा तार है जो वैश्विक है। यही इन कहानियों की विशेषता भी है। जहां एक ओर ये कहानियां हिन्दी कथा संसार में कुछ नया जोड़ती हैं, वहीं भावनाओं की सघनता को बरकरार रखते हुए उन्हें एक सूत्र में पिरो भी देती हैं। यानी कि हर कहानी किसी न किसी देश में घटित हो रही है, मगर घटनाक्रम पूरी तरह से सार्वभौमिक है। 

सुधा ओम ढींगरा, सुदर्शना प्रियदर्शिनी, सुमन कुमार घई, शैलजा सक्सेना, रेखा राजवंशी, ज़किया ज़ुबैरी, नीना पॉल, प्राण शर्मा, अरुण सब्बरवाल और तेजेन्द्र शर्मा – सभी लोकप्रिय एवं सक्षम साहित्यकार हैं। उनकी कहानियां पाठ्यक्रम का हिस्सा भी हैं और उन पर शोध भी हो रहे हैं। इनकी कहानियां सामान्य पाठकों के दिल को छूने की क्षमता रखती हैं तो विद्यार्थियों को एक अछूते संसार से परिचय करवाने की।

डॉक्टर मुक्ति शर्मा को इस महत्वपूर्ण प्रयास के लिये बधाई देते हुए डॉ योगेंद्र कुमार एसो. प्रोफेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान दिल्ली ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी महानुभावों का धन्यवाद ज्ञापन किया था।

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