विश्व को भारत की सबसे बड़ी देन भारतीय कालगणना:गौप्रेमी आचार्य मनीष
गुरुग्राम:भारतीय कालगणना पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है, विश्व को भारत की सबसे बड़ी देंन में से एक है हमारी कालगणना, समय के साथ साथ हमारी दूरदर्शिता पूरे विश्व को समझ आ रही है, हमारे ऋषियों का चिंतन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक रहा है,चार युगों की परिकल्पना, वर्ष मासों और विभिन्न तिथियों का निर्धारण काल गणना का ही प्रतिफल है । यह काल कल्पना वैज्ञानिक सत्यों पर आधारित है ।हमारे देश में नव संवत्सर का प्रारम्भ विक्रम संवत् के आधार पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से स्वीकार किया जाता है,जिस समय प्रकृति पूरे बसंत पर होती है, प्रकृति हमारे साथ नया वर्ष मनाती है,नया वर्ष हमे शुभ संकल्प की और प्रेरित करता है,भारतीय हिंदू कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है।भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत ही हैं। जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश की अवंतिका नगरी से हुई। यह हिंदू कैलेन्डर राजा विक्रमादित्य के शासन काल में जारी हुआ था तभी इसे विक्रम संवत के नाम से भी जाना जाता है। हम भारतीय हिंदू नववर्ष के दिन शुभकामनाएं देने से हिचकिचाते हैं शायद इसलिए की कहीं हम पर रूढ़ीवादी का टैग न लग जाए? जबकि अपनी संस्कृति संस्कारों का अनुसरण करना रूढ़िवादीता नहीं। यह तो वह बहुमूल्य धरोहर है ,अपने धर्म व संस्कृति के प्रति हम गर्व करें, गौमाता को राष्ट्रमाता के रूप में प्रतिष्ठित करने हेतु इस नववर्ष में शुभ संकल्प ले,अपनी संस्कृति के मूल आधार गौ, गंगा, गीता, गायत्री , गुरु,और गांव को जीवित रखे, इन्हीं शब्दों के साथ सभी को नवसवत्सर २०८० की अनेकानेक मंगलकामनाये,इति शुभमस्तु
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