बच्चों को शिक्षा के साथ - साथ संस्कार भी सिखाए जाए : अरविन्द कुमार पुष्कर एडवोकेट



कठिन से कठिन परिस्थिथिति में भी शिक्षा आपको कभी झुकने नहीं देगी और संस्कार कभी गिरने नहीं देगे : अरविन्द कुमार पुष्कर एडवोकेट 

आगरा। देश को सुसंस्कृत व सुसंपन्न बनाने के लिए शिक्षा की महती आवश्यकता है, परंतु शिक्षा के साथ संस्कार भी हो तो वह देश ज्ञान संपन्न होकर विश्व का सिरमौर बन सकता है। इसलिए बच्चों को शिक्षा के साथ - साथ संस्कार भी सिखाए जाए।

इस सन्दर्भ में लोकप्रिय एवं सुप्रशिद्ध राष्ट्रवादी सामजिक चिंतक एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द कुमार पुष्कर साहब ने कहा कि दोस्तों, ये हाथ की लकीरें भी कितनी अजीब हैं, मुट्ठी में होकर भी कहते हैं कि सब कुछ नसीब है। एक उम्मीद है जो किसी से संतुष्ट ही नहीं होती और एक संतुष्टि है, जो कभी किसी से उम्मीद ही नहीं करती। जबकि शिक्षा और संस्कार जिंदगी जीने के मूल मंत्र है, शिक्षा कभी झुकने नहीं देगी और संस्कार कभी गिरने नहीं देते। इसलिए झूठ और दिखावे की रफ्तार कितनी भी तेज़ हो मगर मंजिल तक केवल सच ही पहुंचता है। इसलिए जीवन में एक-दूसरे के सहयोगी रहे और बच्चों को शिक्षा के साथ साथ अच्छे संस्कार भी सिखाए जाए। अक्सर रिश्तों में कई बार ग़लतफैमियां बहुत हो जाती हैं। क्युकी पढ़े लिखें समाज में मैंने देखा हैं कि हमारे रिश्तों में न हम दूसरों कि बाते सोचत हैं और हम मन ही मन कल्पना कर लेते हैं, लेकिन साथ - साथ मिल बैठकर बात नहीं करते और नाहीं बात को समझने की कोशिश करते हैं। इसलिए खुद की खुशी के लिए औरों के जीवन मे खुशियां लाने के लिए विचारों से स्वतंत्र रहे लेकिन बुजुर्गों द्वारा दिये अच्छे संस्कारों से बंधे रहे। क्युकी कठिन से कठिन परिस्थिथिति में भी संस्कार आपको कभी गिरने नहीं देंगे। इसीलिए अच्छे संस्कार जिंदगी जीने के मूल मंत्र है। लेकिन आज़ के आधुनिक दौर में अगर बच्चे को मोबाइल न दिए जाएं तो वह कुछ समय तक रोएगा लेकिन अगर संस्कार न दिए जाएं तो वह जीवन भर रोएगा। शिक्षा लेना और शिक्षा खरीदना दो अलग-अलग विषय हैं। शिक्षा लेने पर संस्कार मिलते हैं, जबकि शिक्षा खरीदने पर विद्यार्थी सेवा का उपभोक्ता बन जाता है। 

ठीक उसी प्रकार, जब उपभोक्ता किसी वस्तु को खरीदेगा, तो उसका मोल-भाव करेगा ही। यह भी देखा जाता है कि माता-पिता अपने बच्चे को उसी कोचिंग सैंटर में दाखिला दिलवाते हैं जिसकी फीस अधिक होती है। उनके अनुसार विद्या के वही सबसे अच्छे मंदिर हैं। लेकिन उनको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका बच्चा वहां कैसी शिक्षा हासिल कर रहा है। क्या उसको वहां नैतिकता की शिक्षा मिल रही है। जिस विद्या से सिर्फ आजीविका चलाना सिखाया जाए और रट कर अंक लाए जाएं, वहां मानवीय मूल्यों और संस्कारों की शिक्षा का विचार करना दिन में सपने देखने जैसा है। शायद भ्रष्ट आचरण का कारण भी इसी प्रकार की संस्कारहीन शिक्षा है, जो समाज में व्यक्ति को सिर्फ धन अर्जन करने के लिए मजबूर करती है। शिक्षा का बाजारीकरण होने से उस पैसे को वापस पाने की चाहत में उसका आचरण भ्रष्ट होता जा रहा है। अत: व्यक्ति के जीवन में पढ़ाई ही सब कुछ नहीं, संस्कारों का भी महत्वपूर्ण स्थान है और संस्कार कहीं से खरीदे नहीं जाते। कुछ अभिभावकों को मालूम नहीं है कि कोचिंग सैंटरों से निकला बच्चा मोटी तनख्वाह तो हासिल कर लेगा, लेकिन वह संस्कार कहां से लेगा, जो परिवार और बुजुर्गों में मिलते थे। अपने घर के बड़े-बुजुर्गों से व घर पर आए मेहमानों एवं आस-पड़ोस के लोगों से मिलते थे। क्युकी संस्कार किसी बड़े शिक्षा केंद्र या बाजार में किसी दुकान पर भी नहीं मिलते, बल्कि अच्छे संस्कार तो बच्चों को परिवार, अच्छे स्कूल व अच्छे वातावरण में रहकर ही मिलते हैं। 

इसीलिए आज का बच्चा संस्कार व संस्कृति से दूर होता जा रहा है। आज़ उनमें राष्ट्र प्रथम का भाव जगाने की जरूरत है। परन्तु आज़कल देखा जा रहा हैं कि आज के समय में शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान तक ही सीमित रह गई है, जबकि शिक्षा का असली उद्देश्य चारित्रिक ज्ञान है। जो आज की इस भागदौड़ वाली जिंदगी में हम भूल चुके हैं। बताया जाता हैं कि आज के कुछ विद्यार्थी में वे संस्कार नहीं हैं, जो देश और समाज का कल्याण कर सकें। जैसा की आप हम सब जानते हैं कि शॉर्टकट पतन का रास्ता है और ईमानदारी, बफ़ादारी, कड़ी मेहनत, दृढ़ निश्चय, निरन्तर प्रयास, सदा शांत रहना जीवन की सफलता का राज हैं और चुनौतियां व्यक्ति को मजबूत बनाती हैं, जबकि शॉर्टकट का रास्ता पतन की ओर ले जाता है। चुनौतियों का सामना करें। अगर रोल मॉडल बनना है, तो जीवन में शॉर्टकट नहीं कठिन रास्ता अपनाना होगा। जो आजकल के कुछ युवा विशेष रूप से अपनाते हैं। जबकि सफलता आपके लक्ष्य तक पहुंचाने के प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम है। अगर आपको सफल बनना है, तो उसके लिए समय प्रबंधन जरूरी है। इसलिए आपको चाहिए कि समय प्रबंधन व कौशल सीखें। साथ ही कमजोर ग़रीब जरूरतमंदों की मदद करना भी सीखें। समाज में प्रत्येक अमीर ग़रीब माता पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर उच्च पदों पर आसीन हो कर नाम रोशन करें। क्युकी शिक्षा का अधिकार सभी को है। लेकिन हमारे समाज में हमेशा ही असमानता रही है। 

किसी के पास भरपूर सुख - साधन हैं, तो किसी के पास जरूरत पूरी करने के लिए भी सामग्री नहीं है। ऐसे में जिनके पास आवश्यश्कता से अधिक है उन्हें जरूरतमंदों की मदद करना चाहिए। ऐसा करके ही समाज में समानता का भाव आ सकेगा। कई ऐसे कमजोर ग़रीब बच्चे हैं जिनके पास आवश्यक शिक्षण सामग्री भी नहीं होती। इसलिए उनकी शिक्षा पूरी नहीं हो पाती या शुरू ही नहीं हो पाती। इसलिए जितना हो सके ऐसे बच्चों तक शिक्षण सामग्री पहुंचाना चाहिए। जिससे वे भी शिक्षा प्राप्त कर सकें और अपना जीवन रोशन कर सकें और जिससे कमजोर ग़रीब बच्चों का नैतिक, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास हो सके।इसलिए बचपन से ही बच्चों में ग़रीब वंचित वर्गों की मदद के संस्कार डाले जाने चाहिए। बच्चों में यह भाव और भावना होनी चाहिए कि ग़रीब वंचित वर्ग, महिला और बुजुर्गो की जो भी जितनी भी मदद वह कर सकते हैं, उन्हें आगे बढ़ कर करनी चाहिए। जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करना और उन्हें शिक्षण सामग्री दान स्वरूप देना ही महादान है। ऐसा कार्य भगवान की पूजा जैसा है। इसलिए शिक्षकों को भी अध्ययन और अध्यात्म के प्रति समर्पित होते हुए शिक्षा में संस्कारों को सम्मिलित कर नए भारत के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए और स्वयं के अनुभवों से बच्चों में ग़रीब, कमजोर वंचित वर्गों के प्रति संवेदनशीलता और आत्म-निर्भरता की भावनाओं को मज़बूत बनाना चाहिए

श्री पुष्कर साहब ने आगे बताया कि प्राचीन काल से ही भारत में संस्कारों का पाठ पढ़ाया जा रहा है। विद्यार्थी को सबसे पहले मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्य देवो भव एवं अतिथि देवो भव की शिक्षा दी जाती थी, ताकि वह उम्रभर नेकी के रास्ते पर चल कर एक मर्यादित इंसान बने और अपने बड़ों का नाम रोशन करे। प्राचीन समय में बच्चों को गुरु के आश्रम में शिक्षा के लिए भेजा जाता था। उस समय बालक पर पढ़ाई का किसी प्रकार का बोझ न डाल कर संस्कारों की शिक्षा दी जाती थी, क्योंकि व्यक्ति के जीवन में संस्कार ही वह संपत्ति है, जो मनुष्य को एक सफल नागरिक बनाती है। आज के माता-पिता और शिक्षकों का यह कर्तव्य होना चाहिए कि बच्चों को सदा सच्चाई के मार्ग पर चलना सिखाएं, उन्हें दूसरों की मदद के लिए प्रेरित करें। माता-पिता, शिक्षक, महिला, बड़ों और बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाएं। 

ईश्वर पर विश्वास रखना सिखाएं। उन्हें सहनशील, कर्तव्यनिष्ठ बनाएं तथा सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना सिखाएं। व्यक्ति अपने जीवन में जो डिग्री हासिल करता है वह सिर्फ एक कागज का टुकड़ा मात्र है, जबकि व्यक्ति की असली डिग्री उसके संस्कार हैं, जो उसके व्यवहार में झलकती हैं। कही - कही देखा जाता हैं कि आज का विद्यार्थी उच्च शिक्षा हासिल करके चिड़चिड़ा व अहंकारी बनता जा रहा है, जबकि सच्चाई यह है कि आप कितनी ही उच्च शिक्षा हासिल क्यों न कर ले। जब तक आपके संस्कार उच्च नहीं होंगे, आप जीती हुई बाजी भी हार जाओगे क्योंकि व्यवहार मनुष्य का एक ऐसा गुण है। जिससे दुश्मन को भी अपना बनाया जा सकता है और आज के बच्चों में इसी गुण की कमी सबसे अधिक दिखाई देती है। आज के कुछ विद्यार्थी में वे संस्कार नहीं हैं, जो देश और समाज का कल्याण कर सकें। इसीलिए आज की स्थिति बहुत गंभीर हो चुकी है। आज का विद्यार्थी भौतिकवादी प्रवृत्ति का बन चुका है। वह कुछ विद्यार्थी तो केवल पढ़ाई इसलिए करता है ताकि आने वाले समय में अपने जीवन में बहुत पैसे कमाये और माँ बाप से अलग विदेश में आराम से रह सके। इसलिए अभिभावकों और गुरुजनों का उत्तरदायित्व है कि वे बच्चों को सही और अच्छा आकार देकर समाज का जिम्मेदार नागरिक बनाएँ। संस्कार उसको बाजारी शिक्षा से नहीं, बल्कि संस्कारों की शिक्षा से मिलेंगे और वह शिक्षा उसको अपने घर पर ही मिलेगी। 

इसके बिना समाज और राष्ट्र का विकास संभव ही नहीं है। इसलिए बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार देना भी अति आवश्यक है। इस के लिए बच्चों को भी खूब मन लगाकर पढ़ना चाहिए और अध्यापकों को भी बच्चे को नौकरी वाली शिक्षा के साथ - साथ संस्कृति व संस्कारों वाली शिक्षा भी प्रदान करनी चाहिए। शिक्षा जीवन के निर्माण का साधन है। इसके लिए हम सभी को अध्ययन और अध्यात्म के प्रति समर्पित होते हुए शिक्षा में संस्कारों को सम्मिलित कर नए भारत के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए। स्कूली शिक्षा के साथ ही यह जरूरी है कि विद्यार्थियों को संस्कार व संस्कृति का ज्ञान होना चाहिए। संस्कार और संस्कृति ही असली मायने में हमारा धन, पंजी, विरासत है। इसकी सुरक्षा करना ही हमारा दायित्व है। बच्चों को शिक्षा के साथ - साथ हमें संस्कृति और संस्कारों की भी पूंजी देनी चाहिए। शिक्षा के साथ संस्कार भी जरूरी हैं। शिक्षा बच्चे के जीवन का सबसे कीमती तोहफा है, जो बच्चे के जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल देती है और संस्कार व्यक्ति के जीवन का सार हैं। अच्छे संस्कारों द्वारा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण और विकास होता है और जब व्यक्ति में शिक्षा और संस्कार दोनों का विकास होगा, तभी वह परिवार, समाज और देश का विकास कर सकेगा। इसी विचार के साथ आपका दिन मंगलमय हो। सभी सुखी रहेँ। स्वस्थ रहेँ। गतिमान व ऊर्जावान रहे। सभी का कल्याण हो, सभी सुखी रहे। सभी बच्चों के लिए हमारी ईश्वर से दुआएं हैं कि सभी पढ़े-आगे बढ़े और बच्चे भारतीय संस्कृति और इसके मूल्यों को पहचानें और भारतीय संस्कृति के प्रति जागरूक कर रहे हैं।

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