श्रीजन्माष्टमी पर्व और परमात्मा श्रीकृष्ण
सगुण ब्रह्म इस जगत् का अभिन्न निमित्तोपादान कारण है ,वही बनता है और वही बनाता है।हिरण्यगर्भ से लेकर कीट पतंग ,प्रकृतिसे तृण पर्यन्त सब भगवान का ही रूप है।आकृति संस्कृति विकृति प्रकृति अलग अलग होनेपर भी उनके भेदसे तत्वमें किसी प्रकार का भेद नहीं होता,वह अपने निश्चित स्वरूपका परित्याग नहीं करता। सत् अविनाशी है,चेतन निर्विकार है ,आनन्द निर्विषय है।आकार सत् है,निर्वृत्तिक चित् है और आनन्द अभोग है।परन्तु ये आकार विकार भोगमें जो देखने मे आते हैं ये ही सब वही अभिन्नोपादानकारण परमात्मा हैं।उपादान जैसे घड़े में माटी,निमित्त जैसे घड़ा बनाने वाला कुम्हार। इसीप्रकार यह जो जगत् रूपी घट है इसके कर्ता धर्ता, संहर्ता,कर्मसंस्कार फल सब परमेश्वर ही है। परमात्मा जो चराचर जगतका मूल अभिन्नोपादानकारण हैं वही
जीवात्माओं के चित्तको अपनी ओर खींचनेके कारण कृष्ण है,अर्थात प्रलयकाल मे सृष्टि के समस्त जीवों को आकर्षण के द्वारा अपने उदरस्थ कर क्षीर सागर में शयन करते है इसलिये कृष्ण हैं।उनके हृदय में रमण करनेके कारण राम और चराचर जगतमें व्याप्त होने के कारण विष्णु हैं" कर्षणात् कृष्णो रमणात् रामो व्यापनात् विष्णुः”।।
{कर्षत्यरीन् महाप्रभावशक्त्या । यद्वा कर्षति आत्मसात् करोति आनन्दत्वेन परिणमयतीति मनो भक्तानां इति"}
अपनी जादुमयी महाप्रभाव से भक्तोंके चित्तको अपनी ओर खींचते है अथवा आत्मसाथ करते हैं वही परमात्मा श्री कृष्ण हैं।
{कृषिर्भूवाचकः शब्दो
णश्च निर्वृतिवाचकः ।
कृष्णस्तद्भावयोगाच्च
कृष्णो भवति सात्त्वतः”।
महाभारत में वेदव्यास जी ने कृषि का अर्थ भवसागर है ,उसकी निवृत्ति वाचक शब्द ही "ण" है। अतः भवसागर से मुक्ति देने वाले ही भगवान श्री कृष्ण सिद्ध हैं।}
इसी भावको श्रीधर स्वामीपाद ने भी कहा है।
कृषिर्भूवाचकः शब्दो
णश्च निर्वृतिवाचकः ।
तयोरैक्यात् परं ब्रह्म
कृष्ण इत्यभिधीयते”।
वही परब्रह्म अजन्मा, समस्त सृष्टिके कारणस्वरूप श्रीकृष्ण अपने भक्तों के समस्त कल्मषों को शमन करने के लिये , समस्त जीवों का जन्म मरण रूपी चक्रका छेदन करने के लिये समय समय पर सगुण साकार रूपमें अवतार ग्रहण करते है।
आज से 5250 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्णका इस भूमंडल पर आविर्भाव हुआ और 125 वर्ष तक पृथ्वी देवीको अपने चरणों से स्पर्श कर आनन्द समस्त जीवों को आनन्द प्रदान किया। ठाकुर जी के गोलोक जाते ही कलयुग आ गया (यानी 5247 में से 125 कम कर दो यानी 5122 वर्ष का कलयुग हुआ है और कलयुग की अवधि 432000 वर्ष है तो अभी तो कलयुग का प्रारंभ भी नहीं है यह द्वापर से संधि काल ही चल रहा है)
भगवान श्री कृष्ण पर ज्योतिष परख विश्लेषण
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने भाद्रपद की अष्टमी तिथि ,बुधवार ,रोहिणी नक्षत्र में अवतार ग्रहण किया था
भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में पूर्ण पुरुष कृष्ण योगी और पंचम भाव में स्थित उच्च के बुध ने जहां उन्हें वाक्चातुर्य, विविध, कलाविद् बनाया, वहीं बिना हथियार से वाक्चातुर्य से कठिन से कठिन कार्य भी सिद्ध किए तथा स्वगृही बृहस्पति ने आय भाव में, नवम भाव में स्थित उच्च के मंगल ने और शत्रु भाव में स्थित उच्च के शनि ने वीराग्रणी और परम पराक्रमी बनाया।
माता के स्थान में स्थित स्वगृही सूर्य ने माता-पिता से दूर रखा। सप्तमेश मंगल और लग्र में स्थित उच्च के चन्द्र ने तथा स्वगृही शुक्र ने गोपी गण सेवित रसिक शिरोमणि और कलाप्रेमी सौन्दर्य-उपासक बनाया। लाभ घर के बृहस्पति, नवम भाव में उच्च के मंगल, छठे भाव में स्थित उच्च के शनि, पंचम भाव में स्थित उच्च के बुध और चतुर्थ भाव में स्थित उच्च के सूर्य ने महान पुरुष, शत्रुहन्ता, तत्वज्ञ, विजयी, जननायक और अमर र्कीतकारक बनाया।
इन्हीं ग्रहों के विराजमान होने के कारण तथा लग्र में उच्च के सूर्य के कारण चंचल नेत्र, समृद्धशाली, ऐश्वर्यवान एवं वैभवशाली चक्रवर्ती राज योग का निर्माण किया।
इन सब दिव्ययोगो के साथ भगवान श्री कृष्ण का अवतार हुआ था फिर भी हम और आप जन्माष्टमी कहते हैं जन्म तो कर्म से होता है
हम लोगों का जन्म हुआ है
तो भगवान का जन्माष्टमी शब्द से क्यों व्यवहार करते हैं
तो जन्म का मतलब ही होता है आविर्भाव अर्थात कोई किसी ऊंची जगह से नीचे की ओर उतरे अर्थात गो लोक (वैकुंठ) से माया लोक (पृथ्वी) की ओर उतरे तो आपके मन मे प्रश्न उठेगा
तो हमारा भी अवतार हुआ है ?
तो उत्तर है हाँ क्यों कि बनता बिगड़ता तो शरीर है में नाम का तत्व तो दिव्य है वो माँ के गर्भ में बहार से आया है और फिर एक दिन जाएगा।।
कृष्ण जन्म के विषय मे भगवान स्वयं श्रीमद्भगवद्गीता में कह रहे है
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।४.९।।
हे अर्जुन ! मेरा जन्म और कर्म दिव्य है, इस प्रकार जो पुरुष तत्त्वत: जानता है, वह शरीर को त्याग कर फिर जन्म को नहीं प्राप्त होता; वह मुझे ही प्राप्त होता है।।
कोन है भगवान श्री कृष्ण ?
दृष्टं श्रुतं भूतभवद् भविष्यत् स्थास्नुश्चरिष्णुर्महदल्पकं च।
विनाच्युताद् वस्तु तरां न वाच्यं स एव सर्वं परमार्थभूत:।।
(भागवत १०/३६/४३)
"जो कुछ देखा सुना जाता है,वह चाहे भूत से सम्बन्ध रखता हो या वर्तमान अथवा भविष्य से ,स्थावर हो या जङ्गम, महान हो या अल्प ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो भगवान श्री कृष्ण से पृथक हो।श्रीकृष्ण से अतिरिक्त कोई वस्तु नहीं है जिसे वस्तु कह सकें।वास्तवमें सब वही है मन वचन दृष्टि अन्य इन्द्रियोंसे जो कुछ प्रतीत होता है वह सब परमात्मा श्री कृष्ण ही है।
शुकदेव भगवान उसी परब्रह्म श्री कृष्णकी स्तुति करते हुए कहते है
"यत्कीर्तनं यत्स्मरणं यदीक्षणं यद् वंदनं यच्छ्रवणं यदर्हणम् ।
लोकस्य सद्यो विधुनोति कल्मषं तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः ॥ २.४.१५ ॥
जिनका कीर्तन ,स्मरण , दर्शन ,वंदन , श्रवण और पूजन जीवों के पापों को तत्काल नष्ट कर देता है , उन पुण्य कीर्ति भगवान श्रीकृष्ण को बार-बार नमस्कार है"
गोपालतापिन्युपनिषत् में उसी परमात्मा तत्वको अनेक भावसे स्तुति कर के कहा गया है,
सच्चिदानन्दरूपाय कृष्णायाक्लिष्टकर्मणे ।
नमो वेदान्तवेद्याय गुरवे बुद्धिसाक्षिणे ॥
जो सनातन हैं अर्थात् नित्य हैं , ज्ञानस्वरूप हैं, तथा आनन्द स्वरूप हैं ,क्लेश रहित होकर कर्म करनेवाले हैं | अर्थात् अक्लिष्टकर्मा हैं उन श्रीकृष्ण को नमस्कार है।।
अष्टधा प्रकृति के स्वामी वेदपुरुष भगवान श्री कृष्णका अवतरण भवसागर में डूब रहे जीवोंका उद्धार करने के लिये है अर्थात
जिस प्रकार दुर्घटना जहाँपर हुई है उस स्थान पर पहुँचे बिना दुर्घटना ग्रस्त जीवका उद्धार नहीं हो सकता उसी प्रकार संसारके इस भँवर में फंसे हुए जीवका उद्धार करने के लिये भगवान इस भवचक्र में स्वयं अवतार ग्रहण करते हैं।।
दुनिया के पहले 'मैनेजमेंट गुरू' भगवान श्री कृष्ण
आधुनिक युग विज्ञान का युग है। इसलिए कुछ लोगों को वर्तमान समय में गीता की प्रासंगिकता पर संदेह है। लेकिन वर्तमान में मनुष्य की अधिकांश समस्याओं को उनके प्रबंधन के जरिए हल किया जा सकता है।
कृष्ण एक अवतार से कहीं ज्यादा एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु हैं जिन्हें उनके अचूक मैनेजमेंट मंत्रा के लिए जाना जाता है। अपने प्रत्येक स्वरूप में वे हर उम्र के व्यक्ति के लिए रोल मॉडल हैं। किसी भी लक्ष्य के प्रति उनकी रणनीति, प्रबंधन और साधनों को उपयोग करने की क्षमता हम सभी के लिए प्रेरणादायी है।
भगवान श्री कृष्ण से प्रबंधन के तीन मुख्य सूत्र जो हमें जीवन में सफलता की ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।
लक्ष्य से कभी मत भटको
कृष्ण के जीवन में तीन प्रमुख उद्देश्य थे और वे जीवन भर उन्हें पूरा करने के लिए ही लीलाएं करते रहे। उनका हर कदम, प्रत्येक विचार, हर युक्ति उन्हें अपने लक्ष्य के और करीब लेकर आती थी। वे तीन लक्ष्य थे- परित्राणं साधुनाम् यानि जन कल्याण, विनाशाया दुष्कृताम यानि बुराई और नकरात्मक विचारों को नष्ट करना एवं धर्म संस्थापना अर्थात जीवन मूल्यों एवं सिद्धातों की स्थापना करना। कृष्ण के इस व्यवहार से यह शिक्षा मिलती है कि एक प्रबंधक के तौपर हमारे लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट हों और हमेशा उसी पर ध्यान क्रेन्द्रित करें। अपनी इंन्द्रियों के हाथ में विचारों की डोर न दें।
श्रेष्ठ प्रबंधक बनिए
वे चाहते तो सिर्फ एक सुदर्शन चलाकर 18 दिन चलने वाले महाभारत के युद्ध को क्षण भर में समाप्त कर देते। लेकिन उन्होंने एक अच्छे शिक्षक के रूप में विश्व को धर्म का पाठ पढ़ाने के लिए पांडवों को खड़ा किया। यह एक अच्छे प्रबंधक का सर्वश्रेष्ठ गुण है कि वह अपने पास मौजूद सभी साधनों और प्रतिभाओं का जन कल्याण एवं समाज के विकास में भरपूर उपयोग करे। 100 कौरवों के विरुद्ध कृष्ण जिस प्रबंधकीय कौशल के साथ पांच पांडवों का पथ प्रदर्शन किया वह मंत्रमुग्ध करने वाली है।
हमेशा मृदु एवं सरल बने रहें
ईश्वरीय अवतार होने, राज परिवार और नंदगांव में समृद्ध घर में पालन पोषण के बावजूद वे हमेशा साधारण जीवन जीते थे। उनके व्यवहार में अहंकार नहीं था और सभी उनकी नजरों में एक समान थे। एक अच्छे प्रबंधक के लिए यह सबसे जरूरी गुण है क्योंकि सभी को आगे बढऩे का समान अवसर देना भी उसकी महती जिम्मेदारी है। इसलिए हमेशा सरल और मृदु भाषी बने रहिए। वे हमेशा 'आम लोगों के प्रिय' बनकर रहे और किसी विशिष्ट स्थान को कभी स्वीकार नहीं किया। यही वजह है कि आज उन्हें सारा विश्व पूजता है। राज परिवार का होने के बावजूद वे अर्जुन के सारथी बने।
जन्माष्टमी पर 30 बाद बन रहा ये विशेष संयोग,
वैदिक पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी पर 30 साल सर्वार्थ सिद्धि योग, रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा वृष राशि में होंगे।
वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल जन्माष्टमी 6 और 7 सितंबर दोनों दिन ही मनाई जाएगी। क्योंकि अष्टमी तिथि 6 और 7 दोनों तारीख को पड़ रही है। वहीं आपको बता दें कि भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इसलिए परंपरा अनुसार किसी भी दिन जन्माष्टमी मना सकते हैं।
जन्माष्टमी 2023 तिथि निर्णय :-
भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी तिथि शुरू - 06 सितंबर 2023, दोपहर 03.37
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि समाप्त - 07 सितंबर 2023, शाम 04.14
जन्माष्टमी 6 या 7 सितंबर 2023 कब ?
6 सितंबर 2023 - गृहस्थ जीवन वालों को इस दिन जन्माष्टमी मनाना श्रेयस्कर रहेगा. इस दिन रोहिणी नक्षत्र और रात्रि पूजा में पूजा का शुभ मुहूर्त भी बन रहा है.
7 सितंबर 2023 - पंचांग के अनुसार इस दिन वैष्णव संप्रदाय के अनुयाई जन्माष्टमी मनाएंगे. साधू, संत और सन्यासियों में कृष्ण की पूजा का अलग विधान है और इस दिन दही हांडी उत्सव भी मनाया जाएगा.
जन्माष्टमी 2023 पर रोहिणी नक्षत्र
रोहिणी नक्षत्र शुरू- 06 सितंबर 2023, सुबह 09:20
रोहिणी नक्षत्र समाप्त - 07 सितंबर 2023, सुबह 10:25
जन्माष्टमी 2023 शुभ मुहूर्त
श्रीकृष्ण पूजा का समय - 6 सितंबर 2023,रात्रि 11.57 - 07 सितंबर 2023, प्रात: 12:42
पूजा अवधि - 46 मिनट
मध्यरात्रि का क्षण - प्रात: 12.02
निशिता पूजा का समय- 7 सितंबर को रात 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक (गृहस्थ लोगों के लिए)
निशिता पूजा का समय- 8 सितंबर को सुबह 12 बजकर 02 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक (वैष्णव संप्रदाय के लिए)
क्या है शुभ मुहूर्त
इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त 6 सितंबर को रात 11:57 बजे से मध्य रात्रि 12:42 बजे तक मनाया जाएगा.
कब मनाएं गृहस्थ और वैष्णव के लोग कृष्ण जन्मोत्सव?
गृहस्थ और वैष्णव लोग अलग-अलग कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। जन्माष्टमी के पहले दिन गृहस्थ लोग और दूसरे दिन साधु-संत लोग भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। ऐसे में इस बार गृहस्थ लोग 6 सितंबर को और वैष्णव लोग 7 सितंबर 2023 को जन्माष्टमी मनाएंगे।
यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः।
- पितामाह भीष्म, महाभारत
जहाँ कृष्ण हैं वहीं धर्म है और
जहाँ धर्म है उसी की विजय होगी।
राघवेंद्ररविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
9926910965
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