रामलीला में शिव धनुष तोड़ सिया के हुए श्रीराम
-भव्य रूप से हुआ सीता स्वयंवर
गुरुग्राम। जैकमपुरा स्थित श्री दुर्गा रामलीला कमेटी की ओर से रविवार रात को तीसरे दिन की लीला में सीता स्वयंवर की भव्य लीला दिखाई गई। रामलीला में लीला की शुरुआत ताडक़ा वध के बाद गुरु विश्वामित्र के साथ काफी समय तक राम-लक्ष्मण ने ऋषियों के बीच वनों में ही समय बिताया। गुरु विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को गंगा मईया के दर्शन कराकर उन्हें इसके इतिहास से अवगत कराया।
तीसरे दिन की लीला में समाजसेवी जगमोहन मित्तल, कृष्णा एवं नरेश माचीवाल, राममेहर, डा. डीपी गोयल, नवीन गोयल, श्याम सुंदर कारगवाल, किरनपाल, धीरज कुमार, विजय गर्ग, अमरजीत यादव, प्रीतम राव व पवन कुमार अतिथि के रूप में पहुंचे। अतिथियों की स्वागत रस्म के बाद लीला में दिखाया गया कि गुरु विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण घूमते हुए जनकपुरी में राजा जनक के दरबार में पहुंचे। उसी समय राजा जनक ने सीता का स्वयंवर भी रखा हुआ था।
इसकी जानकारी गुरु विश्वामित्र को भी दी गई। स्वयंवर में खुद के लिए अच्छा वर पाने की इच्छा लिए सीता अपनी सखियों के साथ बगिया में मां गिरिजा जी की पूजा करने जाती है। पूजा करके जब वह फूल चुन रही होती है तो उसी समय राम-लक्ष्मण भी वहां घूमते हुए पहुंच जाते हैं। राजा जनक के दरबार में स्वयंवर की तैयारियां पूरी हो जाती हैं और शंकर जी के धनुष को लेकर सीता जी दरबार में रख देती हैं। सीता जी के स्वयंवर की शर्त यह थी कि जो भी इस धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, सीता उसी के गले में वर माला डालेगी। दूर-दराज के क्षेत्रों से राजा-राजकुमार वहां पहुंचे हुए थे। इसी बीच सिंह गर्जना के साथ रावण राजा जनक के दरबार में प्रवेश करते हैं। स्वयंवर में न बुलाने जाने के कारण खुद को अपमानित समझते हुए रावण धनुष को उठाने का ऐलान करते हैं। उनसे पहले अन्य राजा-राजकुमारों ने धनुष को उठाने का प्रयास किया, लेकिन सफल न हो पाए।
स्वयंवर में न बुलाने जाने के कारण खुद को अपमानित समझते हुए रावण धनुष को उठाने का ऐलान करते हैं। बानासुर रावण को समझाते हुए कहते हैं कि लंकेश ये धनुष तुम्हारे आराध्य भगवान शंकर का है। इसे उठाना तो दूर तुम्हारे लिए छूना भी पाप है। लेकिन रावण उसकी बातो को ना मानते हुए धनुष उठाने को आगे बढ़ता है। खुद के बल पर इतराए रावण धनुष को उठाने के लिए जैसे ही झुकते हैं तो आकाशवाणी हो जाती है। आकाशवाणी से आवाज आती है कि रावण तेरी लंका में आग लग गई है। रावण कहते हैं उनके पुत्रों को भेज दिया जाए। पुत्रों के वहां न होने की स्थिति में खुद रावण स्वयंवर छोडक़र जाते हैं। साथ ही सीता को धमकी भरे शब्दों में यह भी कह जाते हैं कि सीते, एक दिन तुझे लंका जरूर दिखाऊंगा।
सभी राजा-राजकुमारों द्वारा धनुष उठाने में असफलता मिलने पर राजा जनक उठते हैं और दुखी मन से कहते हैं कि लगता है सीता का स्वयंवर पूरा नहीं हो पाएगा। राजा जनक कहते हैं-हे दीप-दीप के राजा जन हम किसें कहें बलशाली हैं, हमको तो यह विश्वास हुआ पृथ्वी वीरों से खाली है। राजा जनक की यह बात सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हुए और उठकर बोले राजा जनक यह बात कहना उन्हें शोभा नहीं देती। अगर उनके भइया राम उन्हें आज्ञा दें तो वह अभी इस धनुष को उठाकर कई टुकड़े कर दें। काफी समय तक राजा जनक के साथ लक्ष्मण की बहस हुई। इसके बाद राम उठे और लक्ष्मण को शांत किया। राजा जनक से वार्ता के बाद राम आगे बढ़े और शिवजी के धनुष को प्रणाम किया। धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाना शुरु किया। प्रत्यंचा चढ़ाने के दौरान ही धनुष के बीच में से दो टुकड़े हो गए। इसके बाद सीता ने राम को वरमाला पहनाई।
बेहतरीन रहा लक्ष्मण-परशुराम संवाद
रामलीला में लक्ष्मण-परशुराम संवाद भी बेहतरीन रहा। दोनों ने एक-दूसरे पर तंज कसते हुए अपना अभिनय बखूबी निभाया। जब राम-सीता ने एक-दूसरे का माला पहना दी तो राजा जनक के दरबार में भगवान परशुराम पहुंचते हैं। टूटा हुआ धनुष देखकर वे क्रोधित हुए और बोले-ओ जनक जरा जल्दी बता ये धनुष किसने तोड़ा है, इस भरे स्वयंवर में किसने सीता से नाता जोड़ा है। जवाब में राम जी ने कहा-जो कृपा पात्र हैं गुरुओं का वह कब किससे डर सकता है, जिस पर कृपा हो ब्राह्मणों की यह काम वही कर सकता है। लक्ष्मण ने उनके साथ संवाद करते हुए उन्हें काफी समझाया, लेकिन वे नहीं माने। अंत में भगवान परशुराम अपना फरसा लेकर लक्ष्मण पर ही वार करने को दौड़ पड़े। बीच में गुरु विश्वामित्र ने आकर उन्हें ऐसा करने से रोका। इसके बाद उनका राम से संवाद हुआ और राम जी के समक्ष अपना फरसा फेंकते हुए उनके चरणों में झुक गए।
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