राम नाम आधार जिन्हें वो जल में राह बनाते हैं, जिन पर कृपा राम करे वो पत्थर भी तर जाते हैं...

 राम नाम आधार जिन्हें वो जल में राह बनाते हैं, जिन पर कृपा राम करे वो पत्थर भी तर जाते हैं...

-श्री दुर्गा रामलीला में लंका दहन के बाद रावण-अंगद संवाद

-राम व रावण की दोनों ओर से युद्ध का हुआ ऐलान  

गुरुग्राम। जैकमपुरा स्थित श्री दुर्गा रामलीला के 10वें दिन की लीला हनुमान जी द्वारा लंका जलाए जाने के बाद वापस अपनी वानर सेना के पास पहुंचने के साथ शुरु होती है। जय श्री राम के उद्घोष के साथ हनुमान जब वहां पहुंचे तो सभी को यह उम्मीद हो गई कि हनुमान जी जरुर कोई शुभ समाचार लेकर आए हैं। लीला में रावण-अंगद संवाद के बाद युद्ध का ऐलान हुआ। 

10वें दिन की लीला में दिखाया गया कि हनुमान जी अपनी वानर सेना के साथ श्रीराम जी के पास पहुंचकर लंका में हुई सारी घटना का जिक्र करते हैं। सभी खुश हो जाते हैं कि सीता माता का पता चल गया है। साथ में सीता जी का संदेश कि अगर एक महीने में उन्हें वहां से नहीं ले जाया गया तो वे प्राण त्याग देंगी, इसे सुनकर श्री राम सुग्रीव से मंत्रणा करते हैं कि आखिर किस तरह से युद्ध की तैयारी करके आगे कदम बढ़ाया जाए। 

इसके बाद की लीला रावण के महल से शुुरु होती है। वे अपनी रानी मंदोदरी के साथ मंत्रणा करते हैं। मंदोदरी रावण से कहती है कि हे प्राणनाथ-

हनुमत जैसे जिनके पायत हैं वे कैसे मारे जाएंगें,

तुम लडक़े जिन्हें समझते हो वे लडक़े तुम्हे हराएंगें। 

इसलिए मेरी एक बात माने लो और सीता को उन्हें वापस लौटा दो। रावण मंदोदरी से कहते हैं कि कल की घटना से तुम विचलित हो गई हो। और उन्हें तुम तो भगवान समझती हो-



भगवान मानकर भी पगली क्यों बातें करती हो हल्की,

मेरे कारण वो आया है ये महिमा है मेरे बल की।

इसके बाद रावण दरबार में पहुंचकर मंत्रियों से मंत्रणा करते हैं कि आखिर अब आगे क्या किया जाए। क्या नया समाचार है। रावण बोले-

हे राज सभा के सचिवो कहो क्या राय तुम्हारी है,

शत्रु सागर के पार खड़ा करता रण की तैयारी है।

हे सहायको, सेनापतियो, संगठित, बलित हो जाओ,

जिस तरह शत्रु बल हो परास्त ऐसी नीति अपनाओ।

इसी बीच दरबार में विभीषण प्रवेश करते हुए कहते हैं-हे भ्राता रावण, आपने अपने मंत्रियों की राय तो जान ली है। ये राय सिवाय आपके नाश के कुछ नहीं है। इसलिए मेरी बात मानो और श्री राम से माफी मांगकर सीता उन्हें लौटा दो। गुस्से से लाल रावण कहते हैं-

बैरी के आगे सिर झुकाए ये रावण को मंजूर नहीं,

मिट जाना मंजूर है मुझे पर सीता देना मंजूर नहीं।

इसी बीच रावण विभीषण को लात मारकर लंका से ही निकाल देते हैं। विभीषण वहां से निकलकर रामा दल की ओर चल देते हैं। उसे दूर से आता देख राम कहते हैं कि यह कौन है जो लंका की ओर से आ रहा है। सुग्रीव कहते हैं कि लंका से आ रहा है तो हमारा शुभचिंतक नहीं हो सकता। इसलिए इसको सजा देते हैं। इस पर राम कहते हैं कि मेरी शरण में आए हुए को सजा नहीं, प्रेम मिलता है। हनुमान जी विभीषण के पास जाकर यहां आने का कारण पूछते हैं तो बताया जाता है कि रावण ने उन्हें लंका से निकाल दिया है। फिर विभीषण श्री राम से मिलते हैं और राम उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लेते हैं। इसके बाद होती है समुद्र पार करने की तैयारी। समुद्र में पुल बनाने के लिए नल और नील को पत्थर देकर उनके हाथों रखवाए जाते हैं। क्योंकि उनके हाथों से रख गए पत्थर एक श्राप के तहत डूबते नहीं हैं। गीत बजता है- 



राम नाम आधार जिन्हें वो जल में राह बनाते हैं, 

जिन पर कृपा राम करके वो पत्थर भी तर जाते हैं। 

कर्तव्य परायण निज भक्तों को सारा श्रेय दिलाते हैं, 

जिन पर कृपा राम करे वो पत्थर भी तर जाते हैं।  

इस तरह से लंका तक पुल बनाकर वानर सेना कूच कर जाती है। समुद्र पार करने के बाद एक बार शांतिदूत अंगद को रावण के दरबार में भेजा जाता है। वहां रावण-अंगद का संवाद होता है। रावण से अंगद कहते हैं कि वे श्री राम से क्षमा मांगकर सीता जी को लौटा दें-

हे रावण लंका में अंधेरा होने वाला है, दिशाएं कह रही हंै नाश तेरा होने वाला है। 

इस पर रावण ने क्रोधित होकर कहा-

मुझसा पंडित, मुझसा योद्धा त्रिभुवन में और न दूजा है,

अपने शीशों को काट-काट कर शंकर को मैंने पूजा है।

इस तरह से रावण और अंगद के बीच करीब एक घंटे तक संवाद चलता रहा। फिर अंगद ने रावण के दरबार में पैर जमाते हुए कहा कि जो भी मेरे इस पैर को उठा देगा, श्री राम सीता जी को हार जाएंगें। रावण के कई योद्धाओं ने प्रयास किया, लेकिन पैर को हिला तक न सके। इसके बाद खुद रावण आए और अंगद का पांव उठाने लगे। अंगद ने पांव पीछे खींककर कहा कि मेरे नहीं जाकर श्री राम के पैर पकड़ो। इसके बाद रावण गुस्से में आ गए। बात न बनती देख अंगद की ओर से युद्ध का ऐलान कर दिया गया, जवाब में रावण ने भी यह ऐलान कर दिया।

Post a Comment

0 Comments