भारतीय गाय को समझने का दर्शन गौपाष्ठमी पर्व :-गौप्रेमी आचार्य मनीष

भारतीय गाय को समझने का दर्शन गौपाष्ठमी पर्व :-गौप्रेमी आचार्य मनीष



शास्त्रज्ञों एवं आचार्यों के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है । इस दिन से भगवान वासुदेव ने गोपालन की सेवा प्रारम्भ की, इसके पूर्व वे केवल बछड़ों की देखभाल करते थे ।”

गोपाष्टमी,  ब्रज  में भारतीय संस्कृति  का एक प्रमुख पर्व है। अतिप्रिय गाय की रक्षा तथा गोचारण करने के कारण भगवान श्री कृष्ण को ‘गोविन्द या गोपाल’ नाम से संबोधित किया जाता है । भगवान ने कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा ।

कथा है कि बालक श्री कृष्ण आज से पहले केवल बछड़ों को चराने जाते थे और उन्हें अधिक दूर जाने की भी अनुमति नहीं  थी ।

इसी दिन बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की और कहा कि, माँ मुझे गाय चराने की अनुमति चाहिए। उनके अनुग्रह पर नन्द बाबा, और यशोदा मैया ने पुज्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने के लिए जो समय निकाला, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था,

   भगवान कृष्ण का गायों के पीछे पीछे नंगे पैर भागना,उनकी रक्षा करना,सेवा करना ये संकेत है, स्वयं नारायण भी गाय के पीछे ही है, आगे नहीं है,और गायों के लिए कष्ट उठाने वाला ही तो गोपाल बनता है, कृष्ण से श्री कृष्ण बनता हैं, अतः आओ अपने सामर्थ्य अनुसार गौसेवा में सलंग्न हो जाओ,

बिप्र धेनु सूर संत हित, लिन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार॥

गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है।


शास्त्रों में कहा गया है- ' *मातर: सर्वभूतानां गाव:'* यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं।

हम गाय को 'गोमाता' कहकर संबोधित करते हैं। मान्यता है कि दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान हैं।

सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है- 'सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:।' गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है।

मान्यता है कि जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है।

संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शाक्तियां होने का वर्णन मिलता है।

गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज़ में प्रजापति और थनों में समुद्र प्रतिष्ठित हैं।

मान्यता है कि गौ के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है। यानी सनातन धर्म में गौ को दूध देने वाला एक निरा प्राणी न मानकर सदा से ही उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है।

वास्तव में गाय को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने की बजाए राजनीति से जोड़ दिया गया है, जिसके कारण इसे जबरन बहस का विषय बना दिया गया। गाय सबके लिए उपयोगी है इसलिए गाय पर बहस करने की बजाए इसके संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए। जिस देश मे गौ को धन माना जाता रहा है, जिसके सम्बंध में दूध की नदिया बहती, लोकोक्ति प्रसिद्ध रही है, उस देश मे शुद्ध दूध की उप्लब्धता ही न हो पाए,ये चिंता का विषय है,गौशाला तो गौमाता के लिए सहारा मात्र है, वास्तव में गौमाता का संवर्धन, संरक्षण तो किसान के आंगन ने ही सम्भव है, गौ कृषि की इस समय आवश्यकता है, गौ आधारित कृषि से ही राष्ट्र उननन्त हो सकता है, हजारों, लाखों करोड़ो रुपये का हानिकारक रसायन कृषि मे उपयोग लाना, फिर उससे होने वाले रोगों हेतु पैसा  खर्च करना, इस कुचक्र से जितना जल्दी निकलना होगा, ओर गौ आधारित व्यवस्था समाज में स्थापना करनी होंगी,हर मनुष्य को चाहिए कि जिस गाय को हम गौ माता मानते हैं और उसकी पूजा-अर्चना करते हैं, उस गौ माता को बचाने का संकल्प सभी को लेना चाहिए, 

जो मानव जीवन और प्रकृति तथा पर्यावरण की दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है। गाय बचेंगी तभी देश बचेगा, राष्ट्र बचेगा और हम सब भी जी पाएंगे। अत: आज के दिन यह संकल्प लें कि हम हर हाल में गाय की रक्षा करेंगे और पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली पॉलिथिन का उपयोग न करके गायों को जीवनदान देने के साथ-साथ हम अपना योगदान देकर हर प्राणिमात्र की रक्षा का संकल्प करेंगे। इति शुभमस्तु, आचार्य मनीष

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