10 विधि से स्नान कराया जाता है। श्रीमद् भागवत कथा के अंतरराष्ट्रीय कथा प्रवक्ता एवं विद्वान ब्राह्मण एवं विद्यापीठ संस्कृत छात्रावास के ब्रह्मचारी एवं पूज्य गुरुदेव आचार्य मोहनलाल गौड के संरक्षण में बड़े हर्षोल्लास से श्रावणी उपाकर्म संपन्न किया गया पंचगव्य प्राशन किया जाता है, और ऋषि पूजन किया गया, यज्ञ हवन और ऋषि वंश परंपरा की कथा श्रवण की जाती है , बटुब्रह्मचारियो का बेदाध्ययन शुरू कराया जाता है , इस उपाकर्म में गुरुकुल के विद्यार्थी व गांव एवं क्षेत्र के लोग मौजूद रहे। आचार्य पंडित मोहनलाल गौड़ ने बताया की सनातन धर्म मे श्रावणी उपाकर्म का विशेष महत्व है। जिन लोगो का यज्ञोपवीत संस्कार या जनेऊ संस्कार हो चुका होता है, वे अपना पुराना यज्ञोपवीत या जनेऊ बदलते हैं ।
16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है उपनयन संस्कार। इसे यज्ञोपवित या जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है | जनेऊ धारण करवा कर जनेऊ के तीन धागे का मतलब तीन ऋण देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के बारे में बताया गया हैं | इसके लिए सावन महीने की पूर्णिमा के दिन को विशेष शुभ माना जाता है। इस दिन पुराना जनेऊ उतारकर नया धारण किया जाता है और दस विधि से स्नान कराया जाता है।
कार्यक्रम के दौरान आचार्य बृजेश त्रिपाठी ,आचार्य देवेंद्र शर्मा ,महंत विश्वेश्वर गिरी महाराज, आचार्य नीरज पाराशर , आचार्य पंकज शर्माजी, आचार्य सुनील सरस महाराज , ,आचार्य मधुरम् , राजकुमार शर्मा , देवेंद्र पाल शर्मा , आचार्य मनीष , आचार्य दादाजी कालिया महाराज, आचार्य विजय ,आचार्य बृजेश जी बिहार वाले , मुकेश कुमार शर्मा पवन गॉड ,आचार्य सुखनंदन मयूर , विमल व्यास आदि विद्वान उपस्थित रहे।