“जनगणना में पंजाबी पहचान: अब नहीं कोई चूक”– बोध राज सीकरी
भारत में जनगणना एक अहम राष्ट्रीय प्रक्रिया है, लेकिन यह सिर्फ आँकड़ों तक सीमित नहीं है — यह पहचान, हक़ और हिस्सेदारी का भी सवाल है। “पंजाबी बिरादरी महा संगठन गुरुग्राम” और “विभाजन विभीषिका कल्याण समूह, हरियाणा” इस जनगणना को एक अवसर के रूप में देख रहे हैं, जिससे पंजाबी खत्री समाज अपनी सही संख्या और सामाजिक भूमिका को दर्ज करा सके।
एक अनुमान के अनुसार, भारत में 12 करोड़ से अधिक पंजाबी खत्री देश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं। यदि हम सभी जनगणना के दौरान सही जानकारी दर्ज करें, तो यह संख्या औपचारिक रूप से सामने आ सकती है। यह सिर्फ आँकड़ों की बात नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक और राजनीतिक उपस्थिति को मजबूती देने का सवाल है।
हमें गर्व है कि आज पंजाबी समाज एकजुटता की ओर बढ़ रहा है। गुरुग्राम में मेरे नेतृत्व में “पंजाबी बिरादरी महा संगठन” का गठन हुआ, जिसमें 16,000 से अधिक सदस्य हैं। इस संगठन के अंतर्गत अनेक सामाजिक योजनाएं बिना किसी भेदभाव के चलाई जा रही हैं। वहीं पूरे हरियाणा में फैली 65 पंजाबी बिरादरियों को “विभाजन विभीषिका कल्याण समूह” के माध्यम से एक मंच पर लाया गया है, जिसका अध्यक्ष बनने का सौभाग्य भी मुझे मिला है।
इस एकता के पीछे कई समर्पित लोगों का योगदान है। अंबाला के श्री संदीप सचदेवा, सोनीपत के श्री वेद वाधवा, श्री जोगिंदर पॉल अरोड़ा, श्री चंद्र सेन अरोड़ा, फतेहाबाद से श्री दिनेश नागपाल और रोहतक से श्री राजेश खुराना — इन सभी ने 22 जिलों में जाकर पंजाबी समाज को संगठित किया है।
डॉ. सर्वानंद आर्य जी के अथक प्रयासों से एक पुरानी मांग — जातिगत जनगणना में पंजाबी खत्रियों की गिनती — को केंद्र सरकार ने स्वीकारा है। हाल ही में उन्होंने एक महत्वपूर्ण संदेश यूट्यूब के माध्यम से पूरे भारत में दिया, जिसमें उन्होंने समाज से आग्रह किया कि हम अब दोबारा पिछली गलतियां न दोहराएं।
हम सभी से विनम्र अनुरोध है — जब जनगणना का फार्म भरें तो भाषा के कॉलम में “पंजाबी” दर्ज करें, चाहे आप उसे बोलते हों या नहीं। यह हमारी मातृभाषा है, हमारे पूर्वजों की पहचान है। और जाति के कॉलम में स्पष्ट रूप से सिर्फ “खत्री” लिखें। अरोड़ा, मल्होत्रा, वर्मा, ग्रोवर, खुल्लर जैसे सरनेम आपकी पहचान का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन जाति के रूप में सिर्फ "खत्री" ही मान्य और प्रभावी होगा।
हमारी एकजुटता केवल हमारी सामाजिक पहचान के लिए नहीं, बल्कि हमारे वंचित भाई-बहनों के लिए भी जरूरी है। कई सरकारी योजनाओं का लाभ इस कारण नहीं मिल पाता क्योंकि पंजाबी समाज बिखरा हुआ नज़र आता है। हमारी मांग है कि सरकार “विभाजन विभीषिका बोर्ड” का गठन करे ताकि जिन परिवारों ने बंटवारे का दर्द सहा और आज भी पीड़ित हैं, उन्हें राहत मिल सके।
हमें गर्व है कि पंजाबी समाज हमेशा देशहित के कार्यों में आगे रहा है। चाहे वह देश की सीमाओं की सुरक्षा हो, व्यापार में योगदान हो या समाज सेवा — पंजाबी कहीं पीछे नहीं रहा। अब समय आ गया है कि इस योगदान को गिनती में भी दर्ज किया जाए।
मेरे विचार में यह जातिगत गणना केवल समाज की पहचान तक सीमित न रहे। इसमें यह भी दर्ज हो कि किसने देश को कितना दिया — जैसे करदाता कौन हैं, अंगदान देने वाले कौन हैं, सब्सिडी लेने और देने वाले कौन हैं। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों सुनिश्चित होगी।
हम सभी का लक्ष्य है — राष्ट्र सर्वोपरि, संविधान सर्वोपरि, तिरंगा सर्वोपरि। लेकिन साथ ही हमारी जातिगत पहचान भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। यदि हम संगठित रहेंगे, सही जानकारी देंगे, तो भविष्य की नीतियों में हमारी उचित भागीदारी सुनिश्चित होगी।
अंत में, मेरा आग्रह है — इस संदेश को हर पंजाबी तक पहुँचाएँ। एक नया आंदोलन खड़ा करें — “पहचान दर्ज करवाओ, पंजाबी शक्ति बढ़ाओ”। जनगणना सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य तय करेगी। आइए, एक हों, नेक बनें और मिलकर समाज, राष्ट्र और संस्कृति की सेवा करें।