राष्ट्र सर्वोपरि: स्थगित हुआ गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज का जन्मोत्सव समारोह, राष्ट्रधर्म की पूर्ति हेतु लिया गया निर्णय - बोध राज सीकरी
"राष्ट्र सर्वोपरि, राष्ट्र धर्म सर्वोपरि, राष्ट्र के प्रति कर्तव्य परायणता सर्वोपरि" — यह उद्घोष केवल एक वाक्य नहीं बल्कि समर्पण की भावना है जिसे महापुरुषों ने अपने जीवन में आत्मसात किया है। इसी भाव के साथ गीता मनीषी महा मंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने अपने जन्मोत्सव के भव्य आयोजन को राष्ट्र धर्म की प्राथमिकता देते हुए स्थगित करने का सत्संकल्प लिया है।
स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज, जो कि सनातन धर्म, गीता प्रचार, राष्ट्र सेवा, गौ सेवा तथा मानव कल्याण के लिए जीवन पर्यंत समर्पित हैं, उनके 2025 के जन्मोत्सव पर विशाल सेवा कार्यक्रमों की योजना बनाई गई थी। 15 मई को गुरुग्राम की पुण्यभूमि, लेज़र वैली, सेक्टर 29 में इस आयोजन को संपन्न किया जाना था।
सेवा परिकल्पना की रूपरेखा
उनके शिष्यों द्वारा इस महोत्सव को सेवा, सद्भाव और सनातन स्मरण का स्वरूप देने हेतु विशेष योजनाएं बनाई गई थीं, जिनमें शामिल थे:
गौ सेवा और गीता सेवा
स्वास्थ्य शिविर
थैलेसीमिया ग्रस्त रोगियों के लिए रक्तदान शिविर
धार्मिक स्मरण व जाप आयोजन
आध्यात्मिक संवाद व सांस्कृतिक कार्यक्रम
इस आयोजन में हरियाणा के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी, दिल्ली की यशस्वी मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता, केंद्र सरकार के मंत्री श्री मनोहर लाल व श्री भूपिंदर यादव, तथा राष्ट्र स्तर के 12 से अधिक परमहंस संतों की गरिमामयी उपस्थिति प्रस्तावित थी।
राष्ट्रधर्म की सर्वोपरिता
हालांकि, देश की वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए—जो कि जनमानस की सुरक्षा, सामाजिक समरसता तथा राष्ट्र की अखंडता से जुड़ी हुई हैं—स्वामी श्री ने इस आयोजन को स्थगित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे उनके सभी शिष्यों ने श्रद्धापूर्वक स्वीकार किया।
यह निर्णय एक बार पुनः यह सिद्ध करता है कि धर्म का प्रथम कर्तव्य राष्ट्र के प्रति होता है। जब देश किसी विशेष परिस्थिति से गुजर रहा हो, तब समाज के प्रत्येक वर्ग का यह उत्तरदायित्व बनता है कि वह अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहे और राष्ट्रधर्म को निभाए।
सभी साधकों से विशेष आग्रह
स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज की प्रेरणा अनुसार, 15 मई को सभी भक्तों, शिष्यों और साधकों से यह निवेदन है कि वे अपने-अपने निवास स्थलों पर ही साधना, प्रभु सिमरन, जाप व श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करें। यह साधना राष्ट्र के प्रति उनके जागरूक योगदान का प्रतीक होगी।
इस प्रकार, यह आयोजन स्थगित अवश्य हुआ है, किंतु इसके पीछे की भावना और सेवा का संकल्प अटल है। जैसे ही परिस्थितियाँ अनुकूल होंगी, पुनः इस कार्यक्रम को और अधिक संकल्प, ऊर्जा और श्रद्धा के साथ संपन्न किया जाएगा।
राष्ट्र धर्म ही सनातन धर्म है
आज की पीढ़ी के लिए यह निर्णय एक प्रेरणा है कि धार्मिक आयोजनों का उद्देश्य केवल उत्सव नहीं होता, बल्कि समय-काल के अनुरूप अपने धर्म का पालन करना ही वास्तविक साधना है। स्वामी श्री के इस निर्णय में वह तप, त्याग और तटस्थता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है जो एक राष्ट्रभक्त संत में होती है।
अंत में यही कह सकते हैं कि —
"जहाँ राष्ट्र का हित सर्वोपरि होता है, वहाँ संतों का मौन भी राष्ट्र जागरण बन जाता है।"
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥