जीएसटी भुगतान की मौजूदा व्यवस्था से टूट रही छोटे उद्योगों की कमर : दीपक मैनी

 


जीएसटी भुगतान की मौजूदा व्यवस्था से टूट रही छोटे उद्योगों की कमर : दीपक मैनी

- बिना भुगतान मिले भरना पड़ रहा है टैक्स, कर्ज लेकर कारोबार चला रहे उद्यमी

- रिफंड और इनपुट क्रेडिट में देरी से कार्यपूंजी ठप, क्रेडिट नोट का भी नहीं मिल रहा समाधान

गुरुग्राम, रेखा वैष्णव : प्रोग्रेसिव फेडरेशन ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (पीएफटीआई) ने छोटे उद्योगों की आर्थिक स्थिति पर गहरी चिंता जताई है। फेडरेशन के चेयरमैन दीपक मैनी ने कहा कि चालान जारी होते ही जीएसटी कर भुगतान की अनिवार्यता ने छोटे कारोबारियों को कार्यपूंजी (वर्किंग कैपिटल) को गहरे संकट में डाल दिया है। कई व्यापारी ब्याज या उधार लेकर टैक्स भरने को मजबूर हैं, जिससे उनके व्यापार संचालन की गति प्रभावित हो रही है जिससे उनकी कमर टूट रही है।

दीपक मैनी ने बताया कि मौजूदा व्यवस्था के अनुसार चालान बनते ही टैक्स का भुगतान करना जरूरी हो जाता है, जबकि संबंधित भुगतान व्यापारियों को तीन से चार महीने बाद मिलता है। यानी पैसा मिले बिना ही टैक्स चुकाना पड़ रहा है। यह व्यवस्था छोटे व्यवसायियों पर भारी आर्थिक बोझ डाल रही है और उन्हें मजबूरी में कर्ज लेकर टैक्स अदा करना पड़ता है जिससे उनका व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। यदि कोई व्यापारी 10 लाख रुपये की सेल करता है तो उसे तुरंत 1, 80,000 रुपये जीएसटी के रूप में चुकाने होते हैं। यदि उसकी बिलिंग किसी माह की 31 तारीख की है तो उसे अगले माह की 20 तारीख तक यह कर उसे अदा करना होता है।

छोटे कारोबारियों को यह समस्याएं ...

- व्यापारी आमतौर पर 45 से 90 दिन की क्रेडिट पर माल बेचते हैं जबकि सरकार चालान बनते ही टैक्स की मांग करती है

- इनपुट टैक्स क्रेडिट या रिफंड में देरी व्यापारियों की कार्यपूंजी को और सीमित कर रही है

- क्रेडिट नोट से जुड़ी विसंगतियों का समाधान अब तक नहीं किया गया है जिससे व्यापारी बेहद परेशान हैं



सरकार के लिए फेडरेशन के सुझाव...

- चालान बनते ही टैक्स भुगतान की अनिवार्यता समाप्त की जाए और भुगतान प्राप्ति आधारित टैक्स प्रणाली लागू की जाए

- छोटे व्यापारियों के लिए टैक्स भुगतान की समयसीमा को 90 दिन तक बढ़ाया जाए

- इनपुट टैक्स क्रेडिट और रिफंड की प्रक्रिया को तेज किया जाए ताकि व्यापारियों की फंसी पूंजी मुक्त हो

- क्रेडिट नोट से जुड़ी जटिलताओं को दूर करने के लिए स्पष्ट और सरल व्यवस्था की जाए

दीपक मैनी ने कहा कि देश की आर्थिक रीढ़ कहे जाने वाले छोटे कारोबारी आज बुनियादी पूंजी संकट से जूझ रहे हैं। जहां एक तरफ उनकी मार्जिन काफी कम होती है,  वहीं भुगतान में देरी और बिना भुगतान के कर चुकाने की प्रणाली छोटी उद्योगों के लिए बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। यदि उन्हें समय पर राहत नहीं दी गई तो व्यापार क्षेत्र में मंदी के साथ बड़े पैमाने पर रोजगार संकट खड़ा हो सकता है।

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