महर्षि दयानन्द जी की 200वीं जयंती एवं आर्य समाज के 150वें स्थापना दिवस के अवसर पर वैदिक
विचारधारा को विश्व भर में गुंजायमान करने के साथ अंतरराष्ट्रीय आर्य महा-सम्मेलन का भव्यता से किया गया। दिल्ली में चार दिन का आयोजन - बोध राज सीकरी अध्यक्ष और प्रमोद सलूजा, वरिष्ठ उप- प्रधान पंजाबी बिरादरी महा संगठन l
इस निमित्त गुरुग्राम के हर आर्य समाज से बस सेवा मुहैया करवाई गई ताकि वेद की ओर लौटें हमारा समाज - अशोक आर्य, प्रधान, केंद्रीय आर्य सभा।
श्री नरेंद्र मोदी जी, भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री की मुख्य अतिथि के नाते गरिमामयी उपस्थिति हर आर्य के लिए गर्व का विषय - धर्मेन्द्र बजाज, महामंत्री।
महर्षि दयानंद सरस्वती, आर्य समाज के संस्थापक जिनका विश्वास स्वधर्म, स्वभाषा, स्व-राष्ट्र, स्व-संस्कृति, और स्ववेदेशोंनती के अग्रदूत, ने नारा दिया था वेदों की ओर लौटों, ठीक इसी प्रकार स्वराज्य का नारा भी दयानंद सरस्वती जी ने देकर राष्ट्र में नागरिकों को राष्ट्र भक्ति और राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्य क्या है, इस प्रकार के संस्कार उन्होंने अंकुरित कर एक सच्चे राष्ट्र भक्त का उदाहरण पेश किया। उनका समाज सुधार के व्यापक योगदान रहा । हिंदी को उन्होंने आर्यभाषा का नाम दिया। “क्रणवंतों विश्वामर्यम” उनका अंतिम विधान रहा ।
सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदभाष्यभूमि, ऋग्वेद और यजुर्वेद भाष्य चतुर्वेद विषय सूची, संस्कार विधि आदि साहित्य में उनका विशेष और सराहनीय योगदान रहा ।
महिला सशक्तिकरण, बाल विवाह के विरोधी, छुआछूत के पूर्णतया विरोध आदि उनकी विशेषताएँ ने उन्हें पूजनीय स्थान समाज में दिया ।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इस अवसर पर मुख्य अतिथि बन कर लोगों के हृदय को छू लिया और लोग इस आयोजन में भारी भरकम भीड़ में पहुँच कर यह सिद्ध किया कि दयानन्द सरस्वती जी न केवल भारत के प्रखर साधु, संत योगी या मुनि है, बल्कि उनका नाम विश्व के प्रख्यात संतों की श्रेणी में आता है ।
इस अवसर पर जब बस रवाना हुई तो बोध राज सीकरी और उनके सहयोगी श्री प्रमोद सलूजा ने ओम झंडा दिखा कर मंत्रोचारण के साथ श्रद्धालुओं को विदा किया। हर आयु के व्यक्ति और महिलाओं में जोश देख कर लग रहा था कि सनातन वैदिक परम्परा वापस दयानंद जी में सुझाए हुए हुए मार्ग पर आ रही है ।
